नई दिल्ली: पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत सरकार ने सिंधु जल संधि पर अपनी नीति में बड़ा बदलाव करते हुए इसे तत्काल प्रभाव से स्थगित करने का निर्णय लिया है. इस दिशा में केंद्र सरकार ने तीन-चरणीय रणनीति तैयार की है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति रोकना है. जलशक्ति मंत्रालय की इस अहम बैठक का आयोजन शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निवास पर हुआ, जिसमें विदेश मंत्री एस. जयशंकर और जलशक्ति मंत्री सी. आर. पाटिल भी मौजूद रहे.
बैठक के बाद जलशक्ति मंत्री ने स्पष्ट किया कि भारत पाकिस्तान को 'एक बूंद पानी' भी नहीं देगा. पाटिल ने बताया कि इसे लेकर 3 तरह की रणनीति बना रहे हैं. पाकिस्तान को एक बूंद पानी नहीं मिलेगा. हालांकि रणनीति के तीन चरणों का विवरण सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन सरकार द्वारा यह संदेश साफ है कि अब भारत सिंधु जल संधि के मौजूदा स्वरूप को यथावत बनाए रखने के पक्ष में नहीं है.
जम्मू-कश्मीर का पुराना विरोध
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि राज्य शुरू से ही इस संधि का विरोध करता रहा है. उनके अनुसार, सिंधु जल संधि जम्मू-कश्मीर के हितों के खिलाफ रही है और इससे राज्य को जल संसाधनों के उपयोग में नुकसान हुआ है.
पाकिस्तान को भेजा गया पत्र
जलशक्ति सचिव देवश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय को औपचारिक पत्र लिखकर सूचित किया है कि मौजूदा हालात में सिंधु जल संधि को बनाए रखना संभव नहीं है. पत्र में उल्लेख है कि यह समझौता आपसी विश्वास और अच्छे संबंधों की नींव पर टिका था, जो वर्तमान परिस्थितियों में अनुपस्थित हैं. भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब तक पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता, तब तक इस संधि को लागू रखना असंभव है.
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
भारत के इस कदम पर पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. इस्लामाबाद ने भारत के फैसले को "युद्ध की कार्यवाही" (Act of War) करार देते हुए चेतावनी दी है कि वह इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाएगा.
पृष्ठभूमि: सिंधु जल संधि
सिंधु जल संधि वर्ष 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हस्ताक्षरित हुई थी. इसके तहत सिंधु नदी प्रणाली की 6 नदियों को दो भागों में विभाजित किया गया था.
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