भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के हालिया दौर में अमेरिकी दखल एक बार फिर सुर्खियों में है. इस बार चर्चा का केंद्र बने हैं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर दावा किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात को उन्होंने टालने में निर्णायक भूमिका निभाई. उनका कहना है कि उनके प्रशासन ने दोनों परमाणु संपन्न देशों को चेतावनी दी थी. "अगर संघर्ष नहीं रुका, तो व्यापार भी बंद होगा."
भारत ने खारिज किया ट्रंप का दावा
हालांकि भारत ने ट्रंप के इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया है. भारत सरकार के सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में चल रहे 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान अमेरिका से जो संवाद हुआ, उसमें कहीं भी व्यापार को लेकर कोई दबाव नहीं बनाया गया.
डिप्लोमेसी की असल तस्वीर
एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने 9 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की थी. वहीं, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने 8 और 10 मई को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से और 10 मई को एनएसए अजीत डोभाल से बातचीत की थी. लेकिन इन वार्ताओं में कहीं भी व्यापारिक प्रतिबंध या दबाव का मुद्दा नहीं उठाया गया.
10 मई को जब भारत ने पाकिस्तान के एक प्रमुख एयरबेस को निशाना बनाया, तो अमेरिकी विदेश मंत्री ने पहले पाकिस्तान के सेना प्रमुख से संपर्क किया और बाद में भारत से चर्चा की. अमेरिकी पक्ष ने केवल यह जानना चाहा कि अगर पाकिस्तान हमले रोकता है, तो क्या भारत भी रुकने को तैयार है. भारत की स्पष्ट प्रतिक्रिया थी—"अगर वे हमला नहीं करेंगे, तो हम भी नहीं करेंगे."
ट्रंप का दावा और भारत की प्रतिक्रिया
डोनाल्ड ट्रंप का दावा है कि उनके दबाव और व्यापारिक चेतावनी की वजह से ही भारत और पाकिस्तान सीजफायर पर सहमत हुए. उनके अनुसार, "हमने कहा था—या तो लड़ाई बंद करो, या व्यापार खत्म." ट्रंप ने यह भी जोड़ा कि व्यापारिक दबाव को हथियार की तरह इस्तेमाल करने की यह उनकी अनोखी रणनीति थी, जो सफल रही.
लेकिन भारत ने इस पूरे दावे को खारिज कर दिया है. सरकार के सूत्रों का कहना है कि अमेरिका के साथ संवाद पारदर्शी और कूटनीतिक था, लेकिन इसमें कोई धमकी, व्यापारिक चेतावनी या दबाव की बात नहीं थी.
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