हिंदी-चीनी भाई भाई, 1962 की जंग से लेकर गलवान की झड़प तक... भारत-चीन रिश्तों में उतार चढ़ाव की कहानी

    भारत और चीन एशिया की दो बड़ी शक्तियाँ, जिनके आपसी संबंध कभी गहरे विश्वास पर टिके हुए थे, तो कभी गहरे अविश्वास और संघर्ष से प्रभावित हुए.

    The story of ups and downs in India-China relations
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    नई दिल्ली: भारत और चीन एशिया की दो बड़ी शक्तियाँ, जिनके आपसी संबंध कभी गहरे विश्वास पर टिके हुए थे, तो कभी गहरे अविश्वास और संघर्ष से प्रभावित हुए. इन दोनों पड़ोसी देशों का रिश्ता समय के साथ कई मोड़ों से गुजरा है, कभी दोस्ती की मिसाल बनी, तो कभी युद्ध और झड़पों की कड़वाहट ने इसे जटिल बना दिया.

    हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात ने एक बार फिर से वैश्विक मंच पर भारत-चीन संबंधों को केंद्र में ला दिया है. इस मुलाकात को कूटनीतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम माना जा रहा है, खासकर जब दोनों देशों के बीच सीमा विवादों को लेकर पुराना तनाव अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है.

    भारत-चीन संबंधों की ऐतिहासिक नींव

    भारत और चीन के संबंधों की नींव आज़ादी से पहले के वर्षों में ही रख दी गई थी. वर्ष 1938 में जब चीन जापान के आक्रमण का सामना कर रहा था, तब भारत ने मानवीय सहायता के तहत एक मेडिकल टीम भेजी थी. इस दल में प्रमुख थे डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस, जिन्होंने चीन में रहकर युद्ध में घायल सैनिकों और आम नागरिकों की निस्वार्थ सेवा की. डॉ. कोटनीस चीन के इतिहास में भारतीय मदद की एक अमिट छाप छोड़ गए.

    'हिंदी-चीनी भाई-भाई' और पंचशील समझौता

    भारत और चीन के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों की एक महत्वपूर्ण शुरुआत 1954 में हुई, जब पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इस समझौते में पांच सिद्धांत शामिल थे, जिनमें एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, समानता और आपसी लाभ, तथा शांतिपूर्ण सह-जीवन की बात की गई थी. इस समझौते को लेकर दोनों देशों में आशा की किरण जगी थी कि एशिया में स्थायी शांति स्थापित हो सकती है.

    1962 का युद्ध: दोस्ती टूटी और भरोसा बिखरा

    हालांकि पंचशील समझौते के कुछ ही वर्षों बाद सब कुछ बदल गया. जब भारत ने तिब्बत से भागे दलाई लामा को 1959 में शरण दी, तो चीन ने इसे अपनी आंतरिक राजनीति में दखल मान लिया. इसके बाद दोनों देशों के बीच सीमा विवाद गहराने लगे. कूटनीतिक प्रयासों और बातचीत के बावजूद मतभेद सुलझ नहीं सके, और 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर हमला कर दिया.

    इस युद्ध ने भारतीय जनमानस को झकझोर दिया और 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा इतिहास के पन्नों में सिमट गया. भारत को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा, और तब से दोनों देशों के संबंधों में एक गहरी दरार पैदा हो गई.

    सीमा विवाद और भरोसे की बहाली के प्रयास

    1962 के युद्ध के बाद भारत और चीन के रिश्तों में लंबे समय तक ठंडापन बना रहा. समय-समय पर कूटनीतिक वार्ताएं और समझौते होते रहे, जैसे कि 1993, 1996 और 2005 में सीमा शांति समझौते, लेकिन ज़मीन पर इनका कोई स्थायी असर नहीं दिखा.

    चीन द्वारा बार-बार अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख को लेकर अपने दावे करना और भारत की संप्रभुता को चुनौती देना संबंधों में फिर से तनाव को जन्म देता रहा. सीमावर्ती इलाकों में सड़क, सैन्य ठिकानों और बुनियादी ढांचे के निर्माण ने भी आपसी अविश्वास को और गहरा किया.

    गलवान घाटी की हिंसा: 1962 का दोहराव

    जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच खूनी झड़प ने दोनों देशों के बीच हाल के वर्षों का सबसे बड़ा सैन्य टकराव पैदा कर दिया. इस झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए और इसके बाद भारत ने कई कड़े कदम उठाए- चीन के नागरिकों को वीजा देना बंद किया गया, सीधी उड़ानों पर रोक, और चीन के ऐप्स को बैन किया गया.

    LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर तनाव बढ़ने के बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे के सामने बड़ी सैन्य तैनाती की, और आज भी यह स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हुई है. दोनों देशों ने सीमावर्ती इलाकों में सड़कों और एयरबेस जैसी रणनीतिक संरचनाओं का निर्माण तेज कर दिया है.

    वर्तमान परिदृश्य: नई बातचीत, नई उम्मीदें

    2025 में हो रही SCO शिखर बैठक के दौरान भारत और चीन के शीर्ष नेताओं की द्विपक्षीय बातचीत को एक नए अध्याय की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हाल ही में तियानजिन शहर में हुई बैठक में आपसी रिश्तों को बेहतर करने की बात की गई.

    प्रधानमंत्री मोदी ने बातचीत में कहा, "हम आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता के आधार पर अपने रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं."

    वहीं, उन्होंने चीन यात्रा के निमंत्रण और SCO में सफल नेतृत्व के लिए शी जिनपिंग को बधाई भी दी. बैठक के दौरान, सीमा पर शांति की स्थिति, व्यापारिक संबंधों को फिर से सामान्य बनाने, और कैलाश मानसरोवर यात्रा को दोबारा शुरू करने जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई.

    5 साल बाद भारत और चीन के बीच सीधी फ्लाइट सेवा फिर से शुरू होने जा रही है, जिससे लोगों के बीच संपर्क में सुधार होगा और सांस्कृतिक व व्यापारिक संबंधों को गति मिल सकती है.

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