इन 5 शर्तों को मानने के बाद सुशीला कार्की बनीं पीएम, जानें Gen-Z की क्या थी मांग

    Nepal PM Sushila Karki: नेपाल की राजनीति एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर है. केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद सत्ता का जो खालीपन बना था, अब वह भर चुका है. लेकिन ये सिर्फ एक साधारण नियुक्ति नहीं थी, यह सत्ता परिवर्तन कई परतों, शर्तों और संवैधानिक चुनौतियों से होकर गुजरा है.

    Sushila Karki became PM after agreeing to these 5 conditions know what was the demand of Gen-Z
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    Nepal PM Sushila Karki: नेपाल की राजनीति एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर है. केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद सत्ता का जो खालीपन बना था, अब वह भर चुका है. लेकिन ये सिर्फ एक साधारण नियुक्ति नहीं थी, यह सत्ता परिवर्तन कई परतों, शर्तों और संवैधानिक चुनौतियों से होकर गुजरा है.

    पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की अब नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री बन गई हैं. उन्होंने शुक्रवार देर शाम राष्ट्रपति कार्यालय में अंतरिम प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. लेकिन इससे पहले जो कुछ पर्दे के पीछे चला, वह नेपाल के लोकतांत्रिक भविष्य और संवैधानिक प्रक्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया है.

    प्रधानमंत्री बनने से पहले सुशीला कार्की ने रखीं तीन अहम शर्तें

    सुशीला कार्की की नियुक्ति कोई सहज निर्णय नहीं था. उन्होंने सत्ता स्वीकार करने से पहले कुछ स्पष्ट और ठोस शर्तें रखीं, जो यह दर्शाती हैं कि वह न केवल एक संवैधानिक चेहरा हैं, बल्कि नैतिक और सामाजिक जवाबदेही को भी प्राथमिकता देती हैं.

    1. संसद पहले भंग की जाए

    उन्होंने साफ कहा कि जब तक प्रतिनिधि सभा भंग नहीं की जाती, वे अंतरिम सरकार का नेतृत्व नहीं करेंगी. यह उनकी पहली शर्त थी. इसके बाद राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने संसद को भंग कर दिया और 21 मार्च 2026 को नए चुनाव की तारीख तय कर दी गई.

    2. राजनीतिक दलों और युवा आंदोलन का समर्थन जरूरी

    सुशीला कार्की चाहती थीं कि उन्हें केवल सत्ताधारी या विपक्षी दलों का ही नहीं, बल्कि आंदोलनरत युवाओं का भी समर्थन मिले. खासकर उन Gen-Z नागरिकों का, जो हालिया प्रदर्शनों में आगे रहे.

    3. आंदोलन में जान गंवाने वालों की निष्पक्ष जांच हो

    उनकी अंतिम लेकिन बेहद अहम शर्त थी कि प्रदर्शनों के दौरान मारे गए युवाओं की मौत की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए. उन्होंने इसे नैतिक जिम्मेदारी बताया.

    संविधान में संशोधन बना चुनौती, फिर भी बनी राह

    नेपाल के संविधान में किसी पूर्व जज को सीधे प्रधानमंत्री नियुक्त करने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है. ऐसे में यह एक संवैधानिक संकट भी था. कार्की ने शपथ लेने से पहले कानूनी विशेषज्ञों की राय और संभावित संशोधन पर चर्चा की. जब उन्हें पूरी स्पष्टता मिली, तभी उन्होंने पद स्वीकारने की मंजूरी दी.

    73 साल की सुशीला कार्की, नेतृत्व की मिसाल

    73 वर्षीय सुशीला कार्की का यह राजनीतिक सफर केवल एक औपचारिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि नेपाल में महिला नेतृत्व, संवैधानिक जागरूकता और लोकतांत्रिक मूल्यों की जीत का प्रतीक है. उनका शपथ ग्रहण समारोह राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया, जिसमें उपराष्ट्रपति राम सहाय यादव, प्रधान न्यायाधीश प्रकाश मान सिंह रावत सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे.

    नेपाल को स्थिरता की नई उम्मीद

    हालिया महीनों में भ्रष्टाचार, सोशल मीडिया सेंसरशिप और राजनीतिक अनिर्णय ने नेपाल को संकट में डाल दिया था. युवाओं के उग्र प्रदर्शनों ने सरकार की नींव हिला दी. ऐसे में सुशीला कार्की का नेतृत्व एक संतुलित, नैतिक और संवैधानिक राह दिखाने का वादा करता है.

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