नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि यदि दो वयस्क आपसी सहमति से रिश्ते में रहते हैं और बाद में वह रिश्ता टूट जाता है, तो केवल शादी का वादा टूटने के आधार पर रेप का मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता.
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में न्यायिक प्रणाली पर अनावश्यक दबाव पड़ता है और आरोपी की सामाजिक प्रतिष्ठा को भी गहरा आघात पहुंचता है. कोर्ट ने दोहराया कि जब तक यह साबित न हो कि शुरुआत से ही आरोपी की मंशा धोखे की थी, तब तक ऐसा आरोप टिकाऊ नहीं होता.
शादी का वादा टूटना रेप नहीं
बेंच ने अपने फैसले में कहा कि धारा 376 (रेप) के तहत मुकदमा तब तक नहीं बनता जब तक यह स्पष्ट न हो कि आरोपी ने शुरू से ही शादी का झूठा वादा कर महिला को शारीरिक संबंध के लिए प्रेरित किया. यदि दो व्यस्कों के बीच सहमति से संबंध बने और बाद में किसी वजह से रिश्ता टूट गया, तो उसे जबरदस्ती या धोखा कहना उचित नहीं होगा.
इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने महाराष्ट्र के अमोल भगवान नेहुल पर दर्ज रेप का केस खारिज कर दिया. बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश पलट दिया.
लिव-इन के बाद रेप का आरोप भी खारिज
मार्च 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने एक और चर्चित मामले में अहम फैसला सुनाया था, जिसमें 16 वर्षों तक लिव-इन में रहने के बाद महिला ने अपने पूर्व पार्टनर पर रेप का आरोप लगाया था.
महिला ने आरोप लगाया कि 2006 में आरोपी ने जबरन उसके साथ संबंध बनाए और फिर शादी का वादा कर 16 साल तक उसका शोषण किया, लेकिन बाद में किसी और से विवाह कर लिया.
कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा, "अगर कोई महिला इतने लंबे समय तक किसी रिश्ते में रहती है, तो यह खुद उसके फैसले का हिस्सा था. इसे जबरदस्ती नहीं कहा जा सकता."
शिक्षित महिला धोखे में नहीं रह सकती
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने इस मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि एक शिक्षित और आत्मनिर्भर महिला इतने लंबे समय तक किसी व्यक्ति के झूठे वादे पर भरोसा कर रिश्ते में नहीं रह सकती, खासकर तब जब दोनों लिव-इन में रह रहे हों.
कोर्ट ने यह भी कहा कि रिश्ते खत्म होने के बाद केस दर्ज कराना कई बार केवल बदले की भावना या निराशा का नतीजा हो सकता है, जो कानून का अनुचित उपयोग है.
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