नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि भारत हर विदेशी शरणार्थी को अपने यहां बसने की अनुमति नहीं दे सकता. कोर्ट ने श्रीलंका के एक तमिल नागरिक की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि देश की जनसंख्या पहले से ही 140 करोड़ के पार है और भारत "कोई धर्मशाला नहीं" है जहाँ हर जरूरतमंद को शरण दी जा सके.
क्या था मामला?
यह याचिका श्रीलंका के एक तमिल नागरिक द्वारा दायर की गई थी, जिसे 2015 में प्रतिबंधित आतंकी संगठन LTTE (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) से जुड़े होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था. एक निचली अदालत ने उसे UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) के तहत 10 वर्ष की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में मद्रास हाईकोर्ट ने 7 साल कर दिया.
सजा पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि वह व्यक्ति भारत छोड़ दे और निर्वासन तक शरणार्थी शिविर में रखा जाए. इसी आदेश के खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उसने दलील दी कि श्रीलंका लौटने पर उसकी जान को खतरा है, इसलिए उसे भारत में शरण दी जाए.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और एससी शर्मा की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा, "क्या भारत को हर विदेशी शरणार्थी के लिए दरवाजे खोल देने चाहिए? हमारे देश की जनसंख्या पहले से ही अत्यधिक है. भारत कोई धर्मशाला नहीं है."
अदालत ने यह भी कहा कि, याचिकाकर्ता की हिरासत संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन नहीं करती, क्योंकि यह कानूनन की गई कार्रवाई थी.
अनुच्छेद 19 के तहत मिलने वाले मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होते हैं, विदेशी नागरिकों पर नहीं.
याचिकाकर्ता की दलीलें
हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि यदि श्रीलंका लौटना संभव नहीं है, तो वह किसी तीसरे देश में शरण लेने की कोशिश कर सकता है.
क्यों महत्वपूर्ण है यह मामला?
यह मामला भारत में शरणार्थी नीति की अस्पष्टता और कानूनी ढांचे की सीमाओं को उजागर करता है. भारत ने अब तक 1951 की संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जिससे देश की शरणार्थी नीति राजनीतिक और न्यायिक विवेक पर निर्भर करती है.
न्याय और जनसंख्या के बीच संतुलन
सुप्रीम कोर्ट का यह रुख दर्शाता है कि मानवीय संवेदना और राष्ट्रीय संसाधनों के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है. जबकि भारत ने अतीत में तिब्बती, अफगानी और बांग्लादेशी शरणार्थियों को शरण दी है, लेकिन प्रत्येक मामला अलग परिस्थितियों में देखा जाता है.
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