दिल्ली एनसीआर की सड़कों पर आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई है. कोर्ट का फोकस मुख्य रूप से रेबीज जैसी खतरनाक बीमारियों के बढ़ते मामलों पर है. अदालत ने स्पष्ट किया कि आवारा कुत्तों को सुरक्षित तरीके से हटाकर एनिमल शेल्टर्स में रखा जाना चाहिए. हालांकि, पशु प्रेमियों और एनिमल राइट्स संगठनों का मानना है कि यह कोई स्थाई समाधान नहीं है. इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों से सीख लेने की भी जरूरत है.
भारत में आवारा कुत्तों और रेबीज की गंभीर स्थिति
सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में साल 2024 में रेबीज के कारण 54 मौतें हुईं, जबकि 2023 में यह संख्या 50 थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, देश में हर साल लगभग 18-20 हजार लोग रेबीज के शिकार होते हैं. आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और रेबीज के खतरे ने सरकार और न्यायपालिका की चिंता बढ़ा दी है. भारत में आवारा कुत्तों को नियंत्रित करने के प्रयास कई बार किए गए, लेकिन अभी भी इस दिशा में ठोस और व्यापक नियमों की आवश्यकता है.
अमेरिका और ब्रिटेन में नियमों का उदाहरण
दुनिया के कई देशों में आवारा कुत्तों के लिए स्पष्ट नियम बनाए गए हैं. अमेरिका में केंद्र, राज्य और स्थानीय प्रशासन मिलकर आवारा पशुओं को सुरक्षा देते हैं. उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क में एनजीओ एनिमल केयर सेंटर्स कुत्तों को शेल्टर्स में रखते हैं, उन्हें घर दिलाते हैं और वापस सड़कों पर नहीं छोड़ा जाता.
ब्रिटेन में स्थानीय प्रशासन आवारा कुत्तों की जिम्मेदारी संभालता है. 2023-24 में ब्रिटेन के स्थानीय प्रशासन ने लगभग 36 हजार कुत्तों को संभाला. लंदन में सभी पालतू कुत्तों को आठ हफ्तों की उम्र से माइक्रोचिप लगाना अनिवार्य है, जो मालिक के संपर्क नंबर से जुड़ी होती है. यदि कुत्ता किसी मालिक का नहीं पाया जाता है, तो प्रशासन उसे कुछ समय तक अपने पास रखता है और फिर उचित कार्रवाई करता है.
सुरक्षित और स्थायी समाधान की जरूरत
भारत में आवारा कुत्तों के मुद्दे को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं. अंतरराष्ट्रीय उदाहरण यह दिखाते हैं कि आवारा जानवरों को सुरक्षित शेल्टर्स में रखना और उनके लिए घर ढूंढना सबसे कारगर तरीका है. अब जरूरत है कि भारत में भी ऐसे ठोस नियम और व्यवस्थाएं लागू हों, जिससे न सिर्फ लोगों की सुरक्षा बनी रहे बल्कि पशुओं का संरक्षण भी सुनिश्चित हो.
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