Supreme Court on Waqf law: देश में लंबे समय से चर्चा का विषय बना वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 अब सुप्रीम कोर्ट की नजर में भी आ चुका है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम को लेकर अपना अंतरिम फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया कि पूरे कानून पर रोक लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है, लेकिन दो अहम प्रावधानों को फिलहाल निलंबित कर दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने किन प्रावधानों पर लगाई रोक?
क्या कहा गया वक्फ बोर्ड के CEO को लेकर?
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड का CEO जहां तक संभव हो, मुस्लिम होना चाहिए, लेकिन गैर-मुस्लिम की नियुक्ति पर पूरी तरह रोक लगाने से इनकार कर दिया गया है. यानि, यह प्रावधान बना रहेगा, पर प्राथमिकता मुस्लिम उम्मीदवार को दी जाए, ऐसा निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है.
क्या कहा था याचिकाकर्ताओं ने?
इस कानून को लेकर कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं. याचिकाकर्ताओं की मुख्य आपत्तियां थीं:
केंद्र सरकार का पक्ष क्या था?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार की ओर से दलील दी कि वक्फ एक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा है, और इसे धर्म का अनिवार्य हिस्सा मानना गलत होगा. वक्फ प्रणाली इस्लामी परंपरा में निहित हो सकती है, लेकिन यह संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे में फिट बैठती है. कानून में किए गए संशोधन संविधान के अनुरूप हैं और इन्हें धार्मिक अधिकार के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.
राष्ट्रपति की मंजूरी और कानून की स्थिति
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 8 अप्रैल को अधिसूचित किया गया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को इस कानून को मंजूरी दी थी. संसद के दोनों सदनों से इसे अप्रैल के पहले सप्ताह में पारित किया गया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर हुईं और कोर्ट ने 22 मई को अंतरिम आदेश सुरक्षित रखा था.
"हमें राहत की उम्मीद थी"
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा, “हमने उम्मीद की थी कि जिन बातों पर हमने अंतरिम राहत मांगी थी, उनमें से कुछ पर हमें राहत मिलेगी. विशेष रूप से वक्फ बाय यूज़र, वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिम नियुक्ति, UMEED पोर्टल, और ऐतिहासिक स्मारकों की स्थिति को लेकर स्टे की मांग की थी.”
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