एशिया की भू-राजनीतिक तस्वीर में एक बार फिर हलचल मच गई है. एक ओर अमेरिका चीन के साथ कूटनीतिक बातचीत की बातें कर रहा है, तो दूसरी ओर वह ताइवान के साथ टेक्नोलॉजी साझेदारी कर रहा है. हाल ही में अमेरिका ने ताइवान के साथ एक महत्वपूर्ण ड्रोन निर्माण समझौता किया है, जिसने चीन को असहज कर दिया है. ये डील न केवल ताइवान की सैन्य क्षमता को बढ़ाएगी, बल्कि ड्रोन उद्योग में चीन की वर्चस्व को भी चुनौती दे सकती है.
वैश्विक ड्रोन बाज़ार पर चीन की पकड़ और अमेरिका की चिंता
नेशनल इंटरेस्ट की रिपोर्ट बताती है कि चीन का ड्रोन बाज़ार पर अब तक लगभग 90% कब्जा है, क्योंकि उसके ड्रोन अमेरिकी ड्रोनों की तुलना में 50% से 75% तक सस्ते हैं. हालांकि, इन सस्ते ड्रोन के जरिए साइबर जासूसी और जियो-स्पेशियल इंटेलिजेंस का खतरा भी बना रहता है, क्योंकि इन्हें चीन सरकार के सहयोग से विकसित किया जाता है. यही वजह है कि अमेरिका अब ताइवान जैसे वैकल्पिक साझेदारों की ओर रुख कर रहा है, जिससे वह न सिर्फ सुरक्षा खतरे को टाल सके, बल्कि टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता भी बढ़ा सके.
ताइवान बन रहा है अमेरिका का टेक्नोलॉजिकल साथी
ताइवान पहले ही मिसाइल निर्माण में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कर चुका है. 2022 में उसने 1,000 से अधिक मिसाइलों का निर्माण लक्ष्य पार कर लिया. अब ताइवान की नजर ड्रोन निर्माण पर है. मार्च 2025 में, ताइवानी कंपनी CSBC ने एंडेवर महाटा नामक पूरी तरह स्वदेशी ड्रोन लॉन्च किया. अमेरिका न केवल तकनीकी सहयोग बढ़ा रहा है, बल्कि ताइवान के ड्रोन पर लगने वाले 32% टैरिफ को हटाने पर भी विचार कर रहा है. यह कदम ताइवान के लिए वैश्विक बाज़ार के रास्ते खोल सकता है और चीन के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है.
भारत के लिए छिपा है रणनीतिक और आर्थिक अवसर
इस पूरी डील के बीच भारत के सामने एक सुनहरा मौका है. भारत, जो पहले से ही ड्रोन तकनीक में आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है, गैर-चीनी सप्लाई चेन का हिस्सा बन सकता है. भारत की उभरती कंपनियां जैसे IdeaForge और Small Sparks Technologies ताइवानी कंपनियों के साथ मिलकर संयुक्त ड्रोन उत्पादन कर सकती हैं.
इस सहयोग से भारत न केवल अपने सैन्य और सीमा सुरक्षा को मज़बूत कर सकता है, बल्कि एक नया हाई-टेक उत्पादन हब भी बन सकता है. स्टार्टअप इकोसिस्टम को इससे गति मिलेगी और नौकरी के नए अवसर भी उत्पन्न होंगे. भारत अगर रणनीतिक रूप से इस अवसर का उपयोग करता है, तो यह न केवल उसे ड्रोन टेक्नोलॉजी में वैश्विक खिलाड़ी बना सकता है, बल्कि चीन के बढ़ते प्रभाव को भी सीमित कर सकता है.
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