नई दिल्लीः भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य तनाव के दौरान एक ऐसी घटना घटी जिसने अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा समीकरणों को झकझोर दिया है. पहली बार भारत के पास चीन की सबसे उन्नत एयर-टू-एयर मिसाइल PL-15E का मलबा पहुंचा है. यह वही मिसाइल है जिसे चीन वर्षों से ‘अजेय’ बताते हुए प्रचारित करता रहा है. अब भारत के पास इसका विश्लेषण करने का मौका है, जिससे न केवल चीन की मिसाइल टेक्नोलॉजी का डीएनए समझा जा सकता है, बल्कि यह भी जाना जा सकता है कि वह किन विदेशी या स्वदेशी तकनीकों पर आधारित है.
खेत में इस मिसाइल के टुकड़े बरामद
9 मई को पंजाब के होशियारपुर जिले के एक खेत में इस मिसाइल के टुकड़े बरामद किए गए थे. 12 मई को भारतीय वायुसेना के एयर मार्शल एके भारती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पुष्टि की कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ इस मिसाइल का प्रयोग किया था. यह मिसाइल JF-17 फाइटर जेट से दागी गई थी, लेकिन भारतीय इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम ने उसे हवा में ही निष्क्रिय कर दिया. यह पहला अवसर था जब चीन की इतनी उन्नत मिसाइल युद्ध क्षेत्र में निष्क्रिय होने के बाद किसी अन्य देश के हाथ लगी है.
PL-15E मिसाइल को चीन ने अपनी आधुनिकतम बियॉन्ड विजुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल के रूप में विकसित किया है. इसकी रेंज 200 किलोमीटर से अधिक मानी जाती है और इसमें AESA रडार सीकर जैसी अत्याधुनिक तकनीक लगाई गई है, जिससे यह बहुत लंबी दूरी से भी अपने लक्ष्य को भेदने में सक्षम है. इसे विशेष रूप से J-10C, J-16 और J-20 जैसे फाइटर जेट्स के लिए डिजाइन किया गया है. चीन इस मिसाइल को भारत की राफेल फ्लीट और Meteor तथा Astra जैसी मिसाइलों के लिए एक जवाब के तौर पर प्रचारित करता रहा है. लेकिन भारत द्वारा इसे निष्क्रिय कर दिए जाने के बाद चीन के दावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं.
रक्षा ताकतों की नजर इस मिसाइल के मलबे पर
इस घटना के बाद न केवल भारत, बल्कि वैश्विक रक्षा ताकतों की नजर इस मिसाइल के मलबे पर टिक गई है. अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड को मिलाकर बने फाइव आईज खुफिया गठबंधन ने PL-15E के अध्ययन में गहरी दिलचस्पी दिखाई है. इन देशों का उद्देश्य चीन की रडार तकनीक, गाइडेंस सिस्टम और प्रोपल्शन मैकेनिज्म को समझना है ताकि उसके खिलाफ बेहतर काउंटर सिस्टम विकसित किए जा सकें.
फ्रांस और जापान जैसे देश भी इस तकनीकी विश्लेषण में रुचि रखते हैं. फ्रांस अपने भविष्य के BVR मिसाइल सिस्टम को और बेहतर बनाने के लिए चीनी तकनीक की तुलना करना चाहता है. वहीं जापान, जो अपने F-35 जेट्स और पूर्वी चीन सागर की सुरक्षा को लेकर सजग है, वह PL-15E की कार्यक्षमता और कमजोरियों को समझ कर अपनी एयर डिफेंस रणनीति को उन्नत करना चाहता है.
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत को इस मिसाइल की गाइडेंस चिप, इंजन और रडार सिग्नेचर को पूरी तरह से डीकोड करने में सफलता मिलती है, तो न केवल वह चीनी मिसाइलों की कमजोरियों का फायदा उठा सकता है, बल्कि भविष्य में अपनी खुद की BVR मिसाइलें भी अधिक प्रभावी तरीके से विकसित कर सकता है. इससे भारतीय वायुसेना की सामरिक क्षमताएं काफी हद तक बढ़ सकती हैं.
भारत सरकार का रुख फिलहाल सतर्क
अब यह बहस भी चल रही है कि भारत को इस मलबे से प्राप्त तकनीकी जानकारियों को किन-किन देशों के साथ साझा करना चाहिए. भारत सरकार का रुख फिलहाल सतर्क है. रक्षा सूत्रों के अनुसार, भारत मलबा अपने नियंत्रण में रखे हुए है और केवल विश्वसनीय सहयोगी देशों के साथ ही यह डेटा साझा करने पर विचार किया जा रहा है, वह भी सख्त द्विपक्षीय गोपनीयता प्रोटोकॉल के तहत.
इस पूरे घटनाक्रम ने चीन की PL-15E मिसाइल के इर्द-गिर्द बनाए गए ‘अजेयता’ के नैरेटिव को झटका दिया है. अब जबकि यह मिसाइल युद्ध क्षेत्र में निष्क्रिय हुई है और उसका मलबा भारत के पास है, तो चीन की टेक्नोलॉजिकल बढ़त और उसके हथियारों के प्रचार की विश्वसनीयता पर गहरा असर पड़ा है. भारत के लिए यह अवसर है, न केवल अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने का, बल्कि क्षेत्रीय हवाई संतुलन में निर्णायक भूमिका निभाने का भी.
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