H1B वीजा विवाद के बीच मार्को रुबियो से मिले एस जयशंकर, क्या भारत के लिए आएगी कोई गुड न्यूज?

    वैश्विक मंच पर बढ़ते व्यापारिक और वीजा संबंधी तनाव के बीच भारत और अमेरिका के शीर्ष राजनयिकों की मुलाकात ने नई संभावनाओं के संकेत दिए हैं.

    S Jaishankar meets Marco Rubio amid H1B visa row
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    न्यूयॉर्क/नई दिल्ली: वैश्विक मंच पर बढ़ते व्यापारिक और वीजा संबंधी तनाव के बीच भारत और अमेरिका के शीर्ष राजनयिकों की मुलाकात ने नई संभावनाओं के संकेत दिए हैं. भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र के मौके पर अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो से न्यूयॉर्क में मुलाकात की. इस मुलाकात को भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है, खासतौर पर जब H1B वीजा पर सख्ती और आयात शुल्क जैसे मुद्दों पर तनाव गहराया हुआ है.

    यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब अमेरिका ने हाल ही में भारत पर कुछ कड़े आर्थिक फैसले लागू किए हैं. इनमें आयात शुल्क में भारी वृद्धि और H1B वीजा पर महंगा आवेदन शुल्क जैसी कार्रवाइयां शामिल हैं. खासकर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 50% तक के टैरिफ और एच-1बी वीजा शुल्क में भारी बढ़ोतरी ने भारत की चिंता को बढ़ा दिया है.

    भारत और अमेरिका के राजनयिक आमने-सामने

    यह पहली बार है जब इन फैसलों के बाद भारत और अमेरिका के वरिष्ठ राजनयिक आमने-सामने बैठे हैं. इससे पहले जयशंकर और रुबियो की पिछली मुलाकातें जुलाई में वाशिंगटन में हुई क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक और जनवरी 2025 की शुरुआत में द्विपक्षीय चर्चा के दौरान हुई थीं.

    हालांकि, इस मुलाकात के बाद दोनों देशों की सरकारों की ओर से कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया गया है कि किस विषय पर चर्चा हुई, लेकिन कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार इस बातचीत में टैरिफ, वीजा नीतियों, और रणनीतिक साझेदारी जैसे मुद्दों पर गंभीर विमर्श हुआ हो सकता है.

    H1B वीजा: आईटी प्रोफेशनल्स की मुश्किलें बढ़ीं

    अमेरिका की वीजा नीति में हाल ही में किए गए बदलावों ने भारत की आईटी इंडस्ट्री और प्रोफेशनल्स को गहरी चिंता में डाल दिया है. डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने H1B वीजा के लिए आवेदन शुल्क को 100,000 डॉलर तक बढ़ा दिया, जिससे हजारों भारतीय पेशेवरों को अमेरिका में काम करने का सपना महंगा और अनिश्चित बन गया है.

    भारत हमेशा से इस बात को लेकर आवाज उठाता रहा है कि H1B वीजा प्रोग्राम केवल भारतीय हित के लिए नहीं, बल्कि अमेरिका की तकनीकी अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहद जरूरी है. भारतीयों की बड़ी संख्या में मौजूदगी से न सिर्फ अमेरिकी कंपनियों को विश्वस्तरीय टैलेंट मिलता है, बल्कि इससे अमेरिकी टेक्नोलॉजी सेक्टर में वैश्विक प्रतिस्पर्धा भी बनी रहती है.

    अब जबकि आवेदन शुल्क अत्यधिक बढ़ा दिया गया है, इससे न केवल टैलेंट की आवाजाही प्रभावित होगी, बल्कि दोनों देशों के बीच सॉफ्ट पावर संबंधों पर भी असर पड़ सकता है.

    टैरिफ विवाद: व्यापारिक रिश्तों में खटास

    H1B विवाद से पहले अमेरिका ने भारत पर कई सामानों पर 50% तक का आयात शुल्क लगाया था. इसमें खासकर रूसी तेल की खरीद पर 25% का दंडात्मक टैरिफ भी शामिल था. अमेरिका के इस कदम को भूराजनीतिक दबाव के रूप में देखा गया, जिसमें भारत को रूस से संबंधों को सीमित करने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से मजबूर किया गया.

    भारत ने हमेशा स्वतंत्र विदेश नीति की वकालत की है और ऊर्जा सुरक्षा के लिए विभिन्न स्रोतों से तेल खरीदना अपनी संप्रभुता का हिस्सा माना है. ऐसे में अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ से भारत को आर्थिक झटका लगा और दोनों देशों के संबंधों में तनाव की स्थिति बन गई.

    पाकिस्तान-सऊदी रक्षा समझौते पर अमेरिका की चुप्पी

    एक और महत्वपूर्ण मामला जो भारत को असहज कर रहा है, वह है पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हाल ही में सामने आया संभावित रक्षा समझौता, जिसे लेकर अमेरिका की चुप्पी को भारत में रणनीतिक उदासीनता के रूप में देखा गया है.

    हालांकि इस समझौते को अभी तक सार्वजनिक तौर पर पुष्टि नहीं मिली है, लेकिन अमेरिका द्वारा इस पर कोई टिप्पणी न करना, भारत के लिए संकेत है कि वॉशिंगटन की प्राथमिकताएं बदल रही हैं.

    यह भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन बनाए रखने के लिए अमेरिका की भूमिका लंबे समय से अहम रही है. अगर यह संतुलन बिगड़ता है, तो भारत को सुरक्षा और विदेश नीति में नए समीकरणों की ओर देखना पड़ सकता है.

    क्या आ सकती है कोई राहत की खबर?

    एस. जयशंकर और मार्को रुबियो की मुलाकात के बाद भारत की नजर इस बात पर है कि क्या अमेरिका अपनी कठोर नीतियों पर पुनर्विचार करेगा.

    विशेषज्ञों की मानें तो इस मुलाकात के जरिए भारत ने स्पष्ट रूप से अपनी नाराजगी और चिंताएं अमेरिका के समक्ष रखी होंगी, खासकर H1B वीजा और टैरिफ से जुड़े मुद्दों पर.

    भारत यह भी उम्मीद कर रहा है कि अमेरिका इन कदमों की आर्थिक और मानव संसाधन पर पड़ने वाली वास्तविकताओं को समझेगा और प्रशासनिक स्तर पर कुछ नरमी लाने के उपाय करेगा.