नई दिल्लीः दुनिया की बड़ी रक्षा प्रदर्शनी में रूस ने एक बार फिर अपनी सैन्य ताकत का लोहा मनवाया है. मलेशिया के लैंगकावी में आयोजित लिमा डिफेंस शो 2025 में रूस ने अपने उन्नत फाइटर जेट्स की जबरदस्त मौजूदगी दर्ज कराते हुए वैश्विक हथियार बाजार में अपनी वापसी का ऐलान कर दिया.
फाइटर जेट्स की पावरफुल लाइनअप
रूस ने इस शो में Su-35S, Su-57E और अपकमिंग Su-75 जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों को प्रदर्शित किया, जो न केवल तकनीकी रूप से उन्नत हैं बल्कि सामरिक दृष्टि से भी रूस की मजबूत स्थिति को दर्शाते हैं. इस प्रदर्शनी में अमेरिका, भारत, फ्रांस जैसे 25 देशों ने हिस्सा लिया, लेकिन रूसी विमानों ने जो प्रदर्शन किया, उसने सबकी नजरें खींच लीं.
Su-35S: तकनीक और ताकत का मेल
Su-35S रूस का 4 पीढ़ी का मल्टीरोल फाइटर है, जो अपनी उच्च गतिशीलता, लंबी रेंज और हथियारों की विविधता के लिए जाना जाता है. इसका इरबिस-ई रेडार सिस्टम 400 किमी दूर तक के हवाई लक्ष्यों को पकड़ सकता है और एक साथ कई टारगेट ट्रैक कर सकता है. इसमें R-77 जैसी हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और KH-31 जैसी एंटी-शिप मिसाइलें शामिल हैं, जो सुपरसोनिक स्पीड (मैक 3.5) से दुश्मन को चौंका देती हैं.
Su-57E: भारत के लिए एक रणनीतिक विकल्प?
रूस ने इस प्रदर्शनी में Su-57E का भी प्रदर्शन किया—जो कि इसका पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ फाइटर है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात के लिए तैयार किया गया है. अमेरिका के F-35 और चीन के J-20 जैसे फाइटर्स को टक्कर देने के लिए बनाए गए इस जेट में रडार से बचने की बेहतरीन क्षमता है. रिपोर्ट्स के अनुसार, रूस ने इस विमान को भारत को ऑफर भी किया है, जहां भारतीय वायुसेना नई पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की तलाश कर रही है.
Su-75 भी आया चर्चा में
रूस ने अपने नए प्रोजेक्ट Su-75 (Checkmate) को भी शोकेस किया, जो भविष्य में हल्के स्टेल्थ फाइटर के रूप में उभरेगा. यह खासतौर पर उन देशों के लिए है जो सस्ती कीमत में उच्च तकनीक चाहते हैं.
दक्षिण एशिया पर रूस की नजरें
भारत, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देश पहले से ही रूसी फाइटर जेट्स का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. ऐसे में रूस की कोशिश है कि वह अपने पुराने रक्षा सहयोगियों को Su-35S और Su-57E जैसे उन्नत विकल्प देकर अपनी पकड़ को फिर से मजबूत करे.
क्या भारत रूस की ओर झुकेगा?
भारत के पास Su-57E एक ऐसा विकल्प हो सकता है जो अमेरिका और यूरोपीय देशों के विकल्पों से न सिर्फ सस्ता हो, बल्कि उसमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की संभावनाएं भी ज्यादा हों—एक ऐसा पहलू जो भारत जैसे देश के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है.
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