जब युद्ध लंबे समय तक चलता है, तो सिर्फ सैनिक ही नहीं, आम नागरिक, बच्चे, बुजुर्ग और पूरा समाज उसकी कीमत चुकाता है. रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग को अब ढाई साल से ज्यादा का समय हो चुका है. इस दौरान तमाम शांति वार्ताएं शुरू हुईं, लेकिन कोई ठोस हल नहीं निकल सका. अब रूस ने एक बार फिर पश्चिमी देशों पर गंभीर आरोप लगाए हैं कि वे जानबूझकर यूक्रेन में शांति प्रक्रिया को रोक रहे हैं. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने यह बयान ऐसे वक्त में दिया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन और रूस के शीर्ष नेताओं के साथ बातचीत की कोशिश कर रहे हैं.
रूस का आरोप: 'शांति नहीं, टकराव चाहता है पश्चिम'
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने रूसी सरकारी टीवी पर बातचीत के दौरान पश्चिमी देशों को आड़े हाथों लिया. उनका कहना है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश यूक्रेन में शांति नहीं चाहते, बल्कि हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर युद्धविराम की संभावनाओं को खत्म कर रहे हैं.
लावरोव ने यह भी आरोप लगाया कि पश्चिम की शह पर यूक्रेन के नेता वोलोडिमिर जेलेंस्की खुद भी वार्ता से बच रहे हैं और बार-बार अपनी शर्तें थोपने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे बात आगे बढ़ ही नहीं पा रही. उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि जेलेंस्की का रुख बेहद अड़ियल है और वह गंभीर शांति प्रयासों को नजरअंदाज कर रहे हैं.
ट्रंप की कोशिशें और नई उम्मीदें
हाल के महीनों में डोनाल्ड ट्रंप की सक्रियता ने दुनिया भर में उम्मीदें जगाई थीं कि शायद रूस और यूक्रेन के बीच कोई मध्यस्थता का रास्ता निकल सके. ट्रंप ने व्यक्तिगत रूप से पुतिन और जेलेंस्की दोनों से मुलाकात की है और ऐसी खबरें भी आईं कि वह एक प्रत्यक्ष द्विपक्षीय बैठक कराना चाहते हैं.
लावरोव का दावा है कि पुतिन और ट्रंप की बातचीत "सकारात्मक" रही, लेकिन वे यह भी मानते हैं कि इन प्रयासों को नाकाम करने के लिए कुछ ताकतें सक्रिय हैं और इसमें यूक्रेन और पश्चिमी देश दोनों शामिल हैं.
पुतिन-जेलेंस्की बैठक की कोई योजना नहीं: रूस
भले ही यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि वे पुतिन से आमने-सामने बात करना चाहते हैं, लेकिन रूस का कहना है कि ऐसी कोई योजना अभी मौजूद नहीं है. लावरोव ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी संभावित बातचीत से पहले कुछ मुद्दों को साफ-साफ हल करना होगा, जैसे यूक्रेन में यूरोपीय सैनिकों की मौजूदगी, जिसे रूस अस्वीकार्य मानता है.
इस बयान से यह संकेत भी मिलते हैं कि रूस अब भी शांति वार्ता को पूरी तरह नकार नहीं रहा है, लेकिन वह इसे अपनी शर्तों पर ही आगे बढ़ाना चाहता है.
दो साल से ज्यादा, लेकिन जंग अब भी जारी
रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत फरवरी 2022 में हुई थी और तब से अब तक हजारों लोग मारे जा चुके हैं, लाखों विस्थापित हुए हैं और अनगिनत जिंदगियां बर्बाद हो चुकी हैं. युद्ध का असर सिर्फ इन दो देशों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिरता, ऊर्जा आपूर्ति और वैश्विक राजनीति इस जंग की लपटों में झुलसती रही है.
अब जब ट्रंप जैसे नेता मध्यस्थ बनने की कोशिश कर रहे हैं, तब भी यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या वाकई शांति की राह इतनी आसान है, या फिर यह सिर्फ राजनीतिक मोहरे हैं जो आम लोगों की पीड़ा पर बिछाए जा रहे हैं?
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