नई दिल्ली/मॉस्को: भारत में स्टील्थ लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर चर्चा फिर तेज हो गई है. खासकर ऐसे समय में जब फ्रांस से 114 राफेल फाइटर जेट के अधिग्रहण की प्रक्रिया पर काम चल रहा है, रूस की तरफ से भारत को Su-57 फिफ्थ जनरेशन स्टील्थ फाइटर जेट की पेशकश ने इस बहस को नया मोड़ दे दिया है. इसे पश्चिमी देशों में ‘Felon’ के नाम से जाना जाता है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस भारत को Su-57 के दो स्क्वाड्रन सीधे आपूर्ति करने और 3 से 5 स्क्वाड्रन का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के नासिक प्लांट में करने की पेशकश कर चुका है. इससे जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि रूस भारत को 100% टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, सोर्स कोड, और स्वदेशी मिसाइलों तथा हथियारों के एकीकरण की अनुमति देने के लिए तैयार है.
भारत और रूस की रक्षा साझेदारी
भारत और रूस के बीच लंबे समय से रक्षा संबंध रहे हैं. HAL दशकों से Su-30MKI जैसे लड़ाकू विमानों का निर्माण कर रहा है, जो रूस के Su-30 प्लेटफॉर्म पर आधारित है. दोनों देशों के बीच तकनीकी आदान-प्रदान और जॉइंट प्रोडक्शन का लंबा अनुभव है. यही वजह है कि Su-57 पर विचार करते समय रूस की ओर से आए प्रस्ताव को गंभीरता से देखा जा रहा है.
हालांकि, यह वही फाइटर जेट है जिसे भारत ने 2018 में FGFA (Fifth Generation Fighter Aircraft) प्रोजेक्ट के तहत खारिज कर दिया था. उस समय भारतीय विशेषज्ञों ने Su-57 की स्टील्थ और सुपरक्रूज़ क्षमताओं को अधूरा बताया था.
फिर से Su-57 पर विचार क्यों?
इसका सीधा संबंध भारतीय वायुसेना के हालिया ऑपरेशन "सिंदूर" से है, जिसमें पाकिस्तान की रणनीतिक गहराई को बिना उसकी सीमा में प्रवेश किए ही प्रभावित किया गया था. भारत ने इस मिशन में पाकिस्तान के अंदर स्थित 9 आतंकी शिविरों और 11 एयरबेस को अपनी स्टैंड-ऑफ स्ट्राइक क्षमताओं के बल पर निशाना बनाया.
इस ऑपरेशन से वायुसेना ने यह निष्कर्ष निकाला कि भविष्य के युद्धों में "गहराई में घुसकर हमला करने" की बजाय "लंबी दूरी से मारक क्षमता" ज्यादा जरूरी होगी. ऐसे में पूर्ण स्टील्थ प्लेटफॉर्म की जरूरत नहीं रह जाती, और Su-57 जैसे "लो-ऑब्ज़र्वेबल" फाइटर जेट की भूमिका बेहद अहम हो जाती है.
Su-57 की प्रमुख खूबियां
इंटरनल वेपन बे: Su-57 में हथियारों को विमान के भीतर ले जाने की क्षमता है, जिससे इसकी रडार पर पकड़ने की संभावना कम हो जाती है.
AESA रडार: इसमें N036 Byelka AESA (Active Electronically Scanned Array) रडार सिस्टम लगाया गया है, जो Su-35 के Irbis-E PESA (Passive Electronically Scanned Array) रडार की तुलना में काफी उन्नत है.
इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर क्षमता: Su-57 में आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक जामिंग और काउंटर-मेजर सिस्टम हैं, जो BVR (Beyond Visual Range) युद्ध में इसे श्रेष्ठ बनाते हैं.
R-37M मिसाइल से लैस: Su-57 का सबसे बड़ा हथियार है R-37M मिसाइल, जिसकी मारक क्षमता 300 किलोमीटर से ज्यादा है. यह मिसाइल दुनिया की सबसे लंबी दूरी की एयर-टू-एयर मिसाइलों में से एक है.
Su-57 vs Su-35: किसे चुने भारत?
रूस ने भारत को Su-35 का विकल्प भी दिया है. लेकिन दोनों विमानों की तुलना की जाए तो Su-35 एक 4.5 जेनरेशन मल्टीरोल फाइटर है, जबकि Su-57 को पांचवीं पीढ़ी के मानकों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है.
Su-35 भले ही स्पीड में थोड़ा बेहतर हो, लेकिन आधुनिक युद्ध के मानकों पर Su-57 ज्यादा प्रभावी है, खासकर जब बात BVR क्षमता और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की हो. Su-57 की सबसे बड़ी ताकत इसका लो रडार क्रॉस सेक्शन, मल्टी-स्पेक्ट्रल सेंसिंग, और इंटरनल वेपन बे है, जो इसे भविष्य की जरूरतों के लिए तैयार करता है.
क्यों नहीं लेना चाहिए Su-35?
भारतीय वायुसेना के पास पहले से ही 260 Su-30MKI फाइटर जेट हैं, जिनका अपग्रेड किया हुआ वर्जन Su-35 के कई सिस्टम्स से मेल खाता है. ऐसे में Su-35 को शामिल करना दोहराव होगा, जबकि Su-57 जैसी नई तकनीक से भारतीय वायुसेना को भविष्य की जरूरतों के अनुसार अपग्रेड किया जा सकता है.
Su-57 की कमियाँ
पूर्ण स्टील्थ नहीं: Su-57 की स्टील्थ क्षमता F-35 या F-22 जैसी नहीं है. यह "फ्रंटल सेक्टर स्टील्थ" प्रदान करता है, जिसका अर्थ है कि सामने से इसका रडार पर पकड़े जाने का खतरा कम होता है, लेकिन किनारे या पीछे से यह रडार पर आ सकता है.
इंजन इश्यू: Su-57 को अभी तक पूरी तरह से नया "Izdeliye 30" इंजन नहीं मिला है, जो इसे सुपरक्रूज (afterburner के बिना साउंड की स्पीड से तेज उड़ान) में सक्षम बना सके.
उत्पादन की गति: रूस अभी तक सीमित संख्या में Su-57 का उत्पादन कर पाया है, जो चिंता का विषय हो सकता है.
भारत के लिए संभावित रास्ता
भारत को एक ऐसी लड़ाकू विमान प्रणाली की आवश्यकता है जो:
Su-57 इन जरूरतों को बड़ी हद तक पूरा करता है. अगर रूस की ओर से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, कोड एक्सेस और भारत में निर्माण की सहमति मिलती है, तो यह डील भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण से बेहद लाभकारी हो सकती है.
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