रूस-यूक्रेन युद्ध को तीन साल से अधिक का वक्त बीत चुका है, और इस दौरान न सिर्फ सैन्य नुकसान सामने आए हैं, बल्कि एक बेहद गंभीर स्वास्थ्य संकट भी उभरकर आया है. स्वतंत्र थिंक टैंक कार्नेगी पोलिटिका की रिपोर्ट के मुताबिक, रूसी सेना के भीतर HIV और हेपेटाइटिस जैसे संक्रामक रोगों के मामले तेजी से बढ़े हैं और अब यह संख्या चिंताजनक स्तर तक पहुंच चुकी है.
रिपोर्ट बताती है कि 2022 के अंत तक HIV के मामले 13 गुना तक बढ़ चुके थे. इसके बाद 2023 में यह संख्या और अधिक बढ़ी है. ये आंकड़े दर्शाते हैं कि रूस की सैन्य स्वास्थ्य व्यवस्था युद्ध की मार के आगे चरमरा चुकी है.
स्वास्थ्य संकट के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं
घायल सैनिकों को खून चढ़ाने के दौरान सुरक्षा मानकों की अनदेखी. फील्ड अस्पतालों में एक ही इंजेक्शन का कई बार इस्तेमाल. नशे की लत और असुरक्षित यौन संबंध. ये सब मिलकर सेना के भीतर संक्रमण को बढ़ावा दे रहे हैं.
कानून तो हैं, लेकिन लागू नहीं होते
रूसी नियमों के मुताबिक, HIV, हेपेटाइटिस या टीबी से पीड़ित लोगों को सेना में भर्ती नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन युद्ध की बढ़ती जरूरतों के चलते इन नियमों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. स्वतंत्र पत्रकारों और संगठनों की मानें तो इन गंभीर बीमारियों से ग्रसित कैदियों, गरीबों और कब्ज़े वाले क्षेत्रों के नागरिकों को भी जबरन सेना में शामिल किया जा रहा है.
जबरन भर्ती और इलाज से इनकार
मानवाधिकार संगठन 'Russia Behind Bars' की संस्थापक ओल्गा रोमानोवा का कहना है कि अब तो भर्ती की प्रक्रिया इतनी ढीली हो गई है कि "जो मिल जाए, उसे उठा लिया जाता है". ऐसे लोगों को न तो समय पर दवाइयाँ दी जाती हैं और न ही इलाज, बल्कि उन्हें सीधे युद्ध में झोंक दिया जाता है. यूक्रेनी खुफिया एजेंसियों का भी दावा है कि रूस ने विशेष यूनिट्स बनाई हैं, जिनमें जानबूझकर हेपेटाइटिस बी और सी जैसे संक्रमणों से पीड़ित सैनिकों को शामिल किया गया है ताकि इनसे अधिकतम युद्ध कार्य लिया जा सके, भले ही उनकी जान को खतरा क्यों न हो.
कैदियों को सेना में भेजने का सिलसिला जारी
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में लगभग ढाई लाख कैदियों को सेना में भर्ती किया गया है. इनमें से करीब 40% सैनिक ऐसे हैं, जो पहले से ही HIV, टीबी या हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं. उन्हें हर महीने लगभग 2 लाख रूबल का भुगतान तो वादा किया जाता है, लेकिन उनके इलाज की कोई व्यवस्था नहीं की जाती.
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