इस्लामाबाद: दुनिया जब पोलियो को बीते जमाने की बीमारी मान चुकी है, पाकिस्तान में यह अब भी डरावनी सच्चाई बना हुआ है. सिर्फ पिछले 18 महीनों में पोलियो के 81 नए मामले सामने आ चुके हैं, और इस साल अब तक 11 बच्चे इस घातक वायरस का शिकार बन चुके हैं. इससे भी अधिक चिंताजनक है कि इन मामलों के पीछे कोई जैविक विफलता नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक भ्रांतियां जिम्मेदार हैं.
‘दो बूंद जिंदगी की’ से दूर भागते लोग
भारत और अधिकांश देशों ने पोलियो पर काबू पाने में ‘ओरल पोलियो वैक्सीन’ की भूमिका को ऐतिहासिक बताया है. लेकिन पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में यह अब भी विरोध का कारण बन गया है. खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान और सिंध जैसे इलाकों में आज भी टीकाकरण टीमों का स्वागत फूलों से नहीं, बल्कि धमकियों और हिंसा से होता है.
गिलगित-बाल्टिस्तान जैसे अपेक्षाकृत शांत इलाके में भी अब पोलियो के केस सामने आने लगे हैं, जो दर्शाता है कि संक्रमण अब सीमाओं और पर्वतों को भी पार कर चुका है.
टीमों पर हमले, सुरक्षा में मौतें
टीकाकरण सिर्फ वायरस से नहीं, बंदूकों और कट्टरपंथी विचारधाराओं से भी लड़ रहा है. बीते हफ्ते ही पोलियो ड्राइव में तैनात एक पुलिसकर्मी की हत्या कर दी गई. ऐसे हमले कोई नई बात नहीं. पिछले एक दशक में दर्जनों स्वास्थ्यकर्मी और सुरक्षाकर्मी जान गंवा चुके हैं. लेकिन इसके बावजूद स्वास्थ्य कर्मी बार-बार उन इलाकों में जाते हैं, जहां उनकी जान जोखिम में होती है सिर्फ इसलिए कि कोई बच्चा विकलांग न हो.
यह हमारे मजहब के खिलाफ है
पोलियो वैक्सीन को लेकर कट्टरपंथी मौलवियों द्वारा फैलाई जा रही गलत जानकारी इस संकट की जड़ है. कुछ धार्मिक नेता दावा करते हैं कि यह टीका एक ‘पश्चिमी साजिश’ है. उनका कहना है कि मुसलमानों को नपुंसक बनाने की यह दवा है ताकि उनकी जनसंख्या को कंट्रोल किया जा सके. ये कहानियां इतनी गहराई तक फैल चुकी हैं कि अब कई माता-पिता अपने बच्चों को टीका पिलाने से मना कर देते हैं, चाहे सरकार लाख प्रयास कर ले.
तीन बार अभियान, फिर भी संकोच
इस साल पाकिस्तान में तीन राष्ट्रीय पोलियो ड्राइव्स चलाई जा चुकी हैं, जिनमें 159 जिलों को कवर करने का लक्ष्य था. लेकिन कई संवेदनशील क्षेत्रों में लोगों का प्रतिरोध, अफवाहें और जान का डर — ये सब मिलकर नतीजों को कमजोर बना रहे हैं.
दुनिया में अकेले बचे दो देश
पाकिस्तान के साथ सिर्फ अफगानिस्तान ऐसा देश है जहां पोलियो अब भी मौजूद है. बाकी दुनिया ने इस बीमारी को पीछे छोड़ दिया है. लेकिन पाकिस्तान के हालात बताते हैं कि किसी भी महामारी को खत्म करने के लिए सिर्फ दवा नहीं, सामाजिक विश्वास और शिक्षा भी जरूरी है.
खतरा सिर्फ पाकिस्तान का नहीं
जैसे-जैसे संक्रमण फैलता है, खतरा सिर्फ पाकिस्तान तक सीमित नहीं रहेगा. अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि अगर पोलियो को अब नहीं रोका गया, तो यह फिर से वैश्विक संकट बन सकता है.
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