ढाका: दक्षिण एशिया में उभरती एक नई चिंता के तहत लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे आतंकवादी संगठनों ने बांग्लादेश में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं. खुफिया सूत्रों के मुताबिक, इन संगठनों ने स्थानीय कट्टरपंथी समूहों के साथ गठजोड़ कर भारत में युवाओं को कट्टरपंथ की ओर धकेलने और एक नया आतंकी नेटवर्क खड़ा करने की रणनीति तैयार की है.
यह साजिश ऐसे समय सामने आई है जब भारत की सीमाओं की सुरक्षा को और मजबूत किया जा रहा है और आतंकी गतिविधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा रहे हैं. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अभियानों के चलते आतंकी संगठन बौखलाए हुए हैं और अब बांग्लादेश को एक नया आधार बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
सैफुल्लाह कसूरी का भाषण बना हथियार
लाहौर के कसूर में हाल ही में दिए गए सैफुल्लाह कसूरी उर्फ खालिद के भाषण को आतंकी समूहों द्वारा दुष्प्रचार के रूप में प्रसारित किया जा रहा है. इसमें बंगाल और क्षेत्रीय विभाजन की बातों को उकसाने वाले तरीके से पेश किया गया है, जो कट्टरपंथी विचारधारा को हवा देने का एक जरिया बन रहा है.
शिक्षण संस्थानों पर नजर: भारतीय छात्र निशाना
रिपोर्ट्स के अनुसार, बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों तक पहुंचने के लिए लश्कर और जैश को वैचारिक व शैक्षणिक मंच मिल रहे हैं. इन कैंपसों के माध्यम से युवाओं में धार्मिक कट्टरता और भारत विरोधी विचारधारा भरने का प्रयास हो रहा है.
ISI की छाया में साजिश: बहुस्तरीय नेटवर्क
ISI की फंडिंग से ये संगठन बांग्लादेश में मजबूत वैचारिक नेटवर्क और लॉजिस्टिक सपोर्ट खड़ा कर रहे हैं.
छात्र संगठनों के माध्यम से घुसपैठ
लश्कर ‘इस्लामी छात्र शिबिर’ नामक संगठन के जरिए कैंपसों में अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहा है. ये संगठन छात्रावासों और धार्मिक अध्ययन समूहों के माध्यम से युवाओं तक पहुंच बना रहा है. 2024 के बाद जमात-ए-इस्लामी की वैधता लौटने के बाद, इन नेटवर्कों की सक्रियता और बढ़ गई है.
मदरसों की भूमिका और विदेशी फंडिंग
LeT से जुड़े कई मदरसे बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों के निकट स्थापित किए गए हैं. इनका मकसद छात्रों को वहाबी और सलाफी विचारधारा से प्रभावित करना है. यूके जैसे देशों से कथित फ्रंट संगठनों द्वारा इन संस्थानों को वित्तीय सहयोग भी मिला है, जिससे कट्टरपंथी साहित्य और शिक्षण सामग्री तैयार की जाती है.
प्रचार और भर्ती के नए डिजिटल हथियार
धार्मिक चर्चाओं के दौरान छात्रों को LeT के वीडियो और संदेश दिखाए जाते हैं. टेलीग्राम और सिग्नल जैसे एन्क्रिप्टेड ऐप्स पर कश्मीर में हुए आतंकी हमलों के फुटेज भेजे जाते हैं ताकि भारत विरोधी भावना और सहानुभूति जगाई जा सके.
आर्थिक लालच और छात्रवृत्ति का जाल
आतंकी समूह आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को छात्रवृत्ति, बाढ़ राहत और नकद सहायता की पेशकश कर रहे हैं. 2024 में आई बाढ़ के बाद जमात ने राहत सामग्रियों के साथ कट्टरपंथी साहित्य भी बांटा. इसके अलावा “वरिष्ठ संरक्षक” छात्रों को अलग-थलग कर, उनकी पहचान को कट्टरपंथी सोच से जोड़ते हैं.
भारत के लिए क्या है खतरा?
यह उभरता नेटवर्क भारत की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. युवाओं में कट्टरपंथ की भावना भरकर न सिर्फ आतंकवाद के लिए भर्ती की जाती है, बल्कि सोशल मीडिया और कैंपसों में वैचारिक संघर्ष भी उकसाया जा सकता है.
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