ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर एक बार फिर हालात तनावपूर्ण हो गए हैं. जहां इजरायल ने ईरान की प्रमुख न्यूक्लियर साइट्स पर बड़ा सैन्य हमला किया और शीर्ष सैन्य कमांडरों को मौत के घाट उतार दिया, वहीं अमेरिका ने इस कार्रवाई को ‘ज़रूरी’ ठहराया. ईरान ने साफ कर दिया है कि वह अमेरिका और इजरायल के दबाव में झुकने वाला नहीं है और किसी भी नई परमाणु डील पर हस्ताक्षर नहीं करेगा.
लेकिन, इस घटनाक्रम के बीच एक सवाल फिर से चर्चा में आ गया है — जब पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया था, तब अमेरिका ने इतनी कड़ी प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी थी, जितनी आज ईरान को झेलनी पड़ रही है?
ट्रंप की धमकी और ईरान की जिद
साल 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका-ईरान परमाणु समझौते से खुद को अलग कर लिया था. इस डील के तहत ईरान को अपने न्यूक्लियर कार्यक्रम पर रोक लगानी थी, बदले में उसे आर्थिक राहत दी जा रही थी. लेकिन ट्रंप के हटते ही ईरान ने फिर से यूरेनियम संवर्धन तेज कर दिया. अब ट्रंप दोबारा सत्ता में आने की संभावना के बीच ईरान से एक नई डील चाहते हैं, लेकिन ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई इसके लिए तैयार नहीं हैं. इसी तनाव के बीच इजरायल ने सैन्य कार्रवाई की, और ट्रंप ने खुले तौर पर ईरान को चेतावनी दी: “समझौता करो, वरना अंजाम भुगतो.”
पाकिस्तान को क्यों नहीं झेलनी पड़ी ऐसी सख्ती?
1998 में भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद पाकिस्तान ने भी चागई-I और II के ज़रिए न्यूक्लियर टेस्ट किए थे. उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान को 5 से 6 बिलियन डॉलर की मदद की पेशकश की थी ताकि वो परीक्षण न करे, लेकिन पाकिस्तान नहीं माना. अमेरिका ने ग्लेन और प्रेसलर संशोधनों के तहत आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध लगाए, लेकिन इनकी सख्ती जल्द ही कम हो गई.
अमेरिका की रणनीतिक मजबूरी
उस दौर में पाकिस्तान अमेरिका की अफगान नीति और मध्य एशिया में सामरिक हितों के लिए बेहद अहम था. सोवियत-अफगान युद्ध के बाद से अमेरिका को पाकिस्तान के समर्थन की ज़रूरत थी — यही कारण था कि प्रतिबंधों के बावजूद कोई सैन्य हस्तक्षेप नहीं किया गया और कूटनीतिक संबंध बनाए रखे गए.
वहीं ईरान के साथ अमेरिका के रिश्ते दशकों से तल्ख रहे हैं — 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से ईरान को अमेरिका का घोषित विरोधी माना गया है. ट्रंप प्रशासन की नीति पाकिस्तान के मामले में डिप्लोमैटिक बैलेंसिंग पर आधारित थी, जबकि ईरान के लिए उन्होंने सीधी सैन्य धमकी और विनाशकारी भाषा का इस्तेमाल किया.
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