ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तानी पनडुब्बी बेड़े की खोली पोल, सिर्फ दिखावे की ताकत, फिसड्डी निकली PAK नेवी

    पाकिस्तान की नौसेना, जो खुद को एक मजबूत समुद्री ताकत मानती थी, अब ऑपरेशन सिंदूर के सामने आने के बाद गंभीर सवालों के घेरे में आ गई है. इस ऑपरेशन ने दुनिया को यह दिखा दिया कि पाकिस्तान का पनडुब्बी बेड़ा न केवल कमजोर है, बल्कि पूरी तरह से तैयार भी नहीं है.

    Operation Sindoor exposed the Pakistani submarine fleet
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    पाकिस्तान की नौसेना, जो खुद को एक मजबूत समुद्री ताकत मानती थी, अब ऑपरेशन सिंदूर के सामने आने के बाद गंभीर सवालों के घेरे में आ गई है. इस ऑपरेशन ने दुनिया को यह दिखा दिया कि पाकिस्तान का पनडुब्बी बेड़ा न केवल कमजोर है, बल्कि पूरी तरह से तैयार भी नहीं है. आइए सरल भाषा में समझते हैं कि आखिर क्या है यह संकट, और भारत के मुकाबले पाकिस्तान कहां खड़ा है.

    पाकिस्तान का पनडुब्बी संकट: सिर्फ दिखावे की ताकत?

    पाकिस्तान की नौसेना के पास इस समय आठ पनडुब्बियां बताई जाती हैं, जिनमें मुख्य रूप से अगोस्टा श्रेणी की डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां शामिल हैं. लेकिन हाल ही में सामने आई उपग्रह तस्वीरों और खुफिया रिपोर्ट्स ने ये दिखाया कि इनमें से सिर्फ दो ही ऑपरेशनल थीं. बाकी की पनडुब्बियां कराची शिपयार्ड में लंबे समय से रखरखाव में फंसी थीं. एक पनडुब्बी तो तटीय रेखा पर फंसी हुई भी देखी गई. यह स्थिति बताती है कि पाकिस्तान की ये 'गुप्त समुद्री ताकत' असल में कमजोर और अव्यवस्थित है.

    चीन और तुर्की पर निर्भरता बनी कमजोरी

    पाकिस्तान अपने पनडुब्बी बेड़े को अपग्रेड करने के लिए चीन और तुर्की पर निर्भर है. चीन से खरीदी जा रही हैंगर-क्लास पनडुब्बियां अब तक पाकिस्तान को नहीं मिल पाई हैं. पहली दो पनडुब्बियों की डिलीवरी 2025 और 2026 तक के लिए टल चुकी है. वहीं कराची में इन्हें असेंबल करने की योजना भी बजटीय और तकनीकी अड़चनों के कारण रुकी हुई है. इससे यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान की नौसेना अपनी रणनीतिक ज़रूरतों के लिए पूरी तरह दूसरों पर निर्भर है.

    ऑपरेशन सिंदूर में क्या हुआ?

    ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय नौसेना की तैयारियों ने पाकिस्तान को उसके ही तटीय इलाकों तक सीमित रहने पर मजबूर कर दिया. पाकिस्तानी पनडुब्बियों को आगे बढ़ाने की हिम्मत नहीं हुई. रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान को अपने पूरे नौसैनिक संचालन को स्थगित करना पड़ा, जिससे साफ है कि उसका निवारक (Deterrence) ढांचा बुरी तरह लड़खड़ा चुका है.

    जवाबी हमले की ताकत भी सवालों में

    पाकिस्तान के पास बाबर-3 नामक एक पनडुब्बी से लॉन्च की जाने वाली क्रूज मिसाइल है, जिसे वह अपनी जवाबी हमले की क्षमता का प्रतीक मानता है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों में वह स्थायित्व और छिपने की क्षमता नहीं होती, जो परमाणु पनडुब्बियों में होती है. पाकिस्तान की ये पनडुब्बियां कुछ ही दिनों तक पानी के नीचे रह सकती हैं, जिससे उसकी दूसरे हमले (Second Strike) की रणनीति कमजोर पड़ जाती है.

    भारत की समुद्री तैयारी कहीं ज्यादा मज़बूत

    जहां पाकिस्तान संघर्षों में उलझा हुआ है, वहीं भारत अपनी समुद्री क्षमताओं को लगातार मज़बूत कर रहा है. भारत के पास अरिहंत क्लास की परमाणु पनडुब्बियां हैं, जो लंबे समय तक समुद्र में रह सकती हैं और किसी भी समय जवाबी हमला कर सकती हैं. इसके अलावा, भारत ने स्कॉर्पीन क्लास की नई डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों को भी नौसेना में शामिल किया है, और प्रोजेक्ट 75I जैसी आधुनिक योजनाएं भी काम में हैं. भारत की यह स्वदेशी रणनीति और तकनीकी आत्मनिर्भरता, पाकिस्तान की आयात पर निर्भरता से बिल्कुल अलग है.

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