'जर्मनी के बिना...', तैयार करेंगे धाकड़ फाइटर जेट, 100 बिलियन यूरो के प्रोजेक्ट पर राफेल वाली Dassault का चैलेंज

    यूरोप का अब तक का सबसे महत्त्वाकांक्षी रक्षा प्रोजेक्ट फ्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम (FCAS) अभी अपने ही सहयोगी देशों के बीच मतभेदों की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है. करीब 100 अरब यूरो की लागत से तैयार होने वाले इस प्रोजेक्ट में फ्रांस, जर्मनी और स्पेन मिलकर अगली पीढ़ी का लड़ाकू विमान विकसित करने की योजना बना रहे थे.

    Next-gen Fighter Jet France remarks we can make fighter jet without you
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    यूरोप का अब तक का सबसे महत्त्वाकांक्षी रक्षा प्रोजेक्ट फ्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम (FCAS) अभी अपने ही सहयोगी देशों के बीच मतभेदों की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है. करीब 100 अरब यूरो की लागत से तैयार होने वाले इस प्रोजेक्ट में फ्रांस, जर्मनी और स्पेन मिलकर अगली पीढ़ी का लड़ाकू विमान विकसित करने की योजना बना रहे थे. लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने इस साझेदारी को अस्थिर कर दिया है.

    इस परियोजना में मुख्य भूमिका निभा रही फ्रांसीसी कंपनी Dassault Aviation और जर्मनी-स्पेन की ओर से प्रतिनिधित्व कर रही Airbus के बीच लंबे समय से वर्चस्व की खींचतान जारी है. Dassault के CEO एरिक ट्रैपियर ने हाल में एक बयान देकर इस मतभेद को और हवा दे दी. उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि उनकी कंपनी अकेले भी अगली पीढ़ी का फाइटर जेट बना सकती है. उनका कहना था, हम A से Z तक पूरा विमान खुद बना सकते हैं. हमारे पास सात दशक का अनुभव है. अगर जर्मन अपनी राह अलग करना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसा करने दीजिए.

    कैसे शुरू हुआ था यह प्रोजेक्ट?

    इस बहुचर्चित रक्षा परियोजना की शुरुआत 2017 में फ्रांस और जर्मनी ने की थी, जिसे 2019 में स्पेन ने भी जॉइन किया. उस समय इसे यूरोपीय एकता की मिसाल माना जा रहा था. लेकिन समय के साथ कंपनियों के बीच नियंत्रण और हिस्सेदारी को लेकर मतभेद गहराते चले गए. जर्मनी का आरोप है कि Dassault प्रोजेक्ट पर पूरा नियंत्रण चाहता है और मुख्य काम फ्रांस में केंद्रित करना चाहता है. वहीं फ्रांसीसी कंपनी का मानना है कि लीड रोल उसी को मिलना चाहिए, क्योंकि उसके पास राफेल और मिराज जैसे सफल फाइटर जेट्स बनाने का सिद्ध अनुभव है.

    क्या जर्मनी की योजना B पर है काम?

    ऐसी चर्चाएं ज़ोरों पर हैं कि जर्मनी अब फ्रांस के साथ भविष्य साझा करने के बजाय ब्रिटेन और स्वीडन के साथ मिलकर GCAP (Global Combat Air Programme) पर विचार कर रहा है. हालांकि जर्मन रक्षा मंत्री ने इस खबर की पुष्टि नहीं की, लेकिन यह जरूर कहा कि FCAS पर निर्णय इस साल के अंत तक ले लिया जाएगा. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह साझेदारी टूटी, तो फ्रांस के लिए अकेले इतने बड़े प्रोजेक्ट को आर्थिक रूप से संभालना मुश्किल हो सकता है. दूसरी ओर, जर्मनी के पास हालिया वर्षों में लड़ाकू विमान तकनीक का ज्यादा अनुभव नहीं है, जिससे इसकी प्रगति भी प्रभावित हो सकती है.

    भारत के लिए क्या है इसका महत्व?

    भारत पहले ही Dassault का रणनीतिक साझेदार है और राफेल जेट्स की खरीद से दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध और गहरे हुए हैं. ऐसे में अगर Dassault सचमुच अगली पीढ़ी का फाइटर जेट अकेले बनाता है, तो भारत को इसमें सीधे भागीदारी का अवसर मिल सकता है. यह ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों को भी बल देगा. साथ ही यह घटनाक्रम एक बड़ा सबक भी देता है—कि रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भरता और रणनीतिक स्वतंत्रता ही सबसे बड़ी ताकत है.

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