फिलिस्तीनियों पर कहर ढाएंगे नेतन्याहू! नर्क जैसे देश में... इस प्लान से खौफ में दुनिया

    गाजा पट्टी में 22 महीनों से जारी हिंसा और हमास के खिलाफ इजरायल के सैन्य अभियान के बाद अब एक नई चर्चा उभर रही है. इजरायली सरकार फिलिस्तीनियों को गाजा से बाहर निकाल कर पूर्वी अफ्रीका के युद्ध और संकटग्रस्त देश साउथ सूडान में बसाने पर विचार कर रही है.

    Netanyahu plan to relocating palestine people from gaza
    Image Source: Social Media

    गाजा पट्टी में 22 महीनों से जारी हिंसा और हमास के खिलाफ इजरायल के सैन्य अभियान के बाद अब एक नई चर्चा उभर रही है. इजरायली सरकार फिलिस्तीनियों को गाजा से बाहर निकाल कर पूर्वी अफ्रीका के युद्ध और संकटग्रस्त देश साउथ सूडान में बसाने पर विचार कर रही है. इस खबर की पुष्टि छह विभिन्न सूत्रों ने एसोसिएटेड प्रेस को की है. यदि यह योजना अमल में आती है, तो इससे न केवल गाजा के लोगों को बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गंभीर मानवीय और राजनीतिक सवालों का सामना करना पड़ेगा.

    इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस योजना को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस सोच का विस्तार मानते हैं, जिसमें गाजा की बड़ी आबादी को ‘स्वैच्छिक प्रवास’ के जरिए अन्य देशों में बसाने की बात कही गई थी. इजरायल पहले भी अफ्रीका के कई देशों के साथ इस तरह के प्रस्तावों पर चर्चा कर चुका है, लेकिन अब यह चर्चा और गंभीर हो गई है.

    मिस्र का सख्त विरोध और मानवीय चिंताएं

    अधिकांश फिलिस्तीनी, मानवाधिकार संगठन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस योजना को जबरन निष्कासन की कोशिश मानते हुए कड़ी निंदा कर रहे हैं. खासतौर पर मिस्र, जो गाजा की सीमा से सटा हुआ है, इस योजना का कड़ा विरोध कर रहा है. मिस्र को चिंता है कि इस कदम से उसके यहां शरणार्थियों का दबाव बढ़ेगा, जिससे उसकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर विपरीत असर पड़ेगा.

    साउथ सूडान के लिए संभावित फायदे और जोखिम

    विश्लेषकों का मानना है कि साउथ सूडान, जो स्वयं ही कई वर्षों से आर्थिक संकट, भ्रष्टाचार और विदेशी सहायता पर निर्भरता जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है, इजरायल के साथ अपने संबंध मजबूत करने और अमेरिका में अपनी स्थिति सशक्त करने के लिए इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता है. पत्रकार पीटर मार्टेल के अनुसार, ‘कैश की कमी से जूझ रहे साउथ सूडान के लिए वित्तीय और कूटनीतिक समर्थन बेहद जरूरी है, इसलिए वे इस अवसर को हाथ से जाने नहीं देंगे.’

    लेकिन वहीं, साउथ सूडानी सिविल सोसायटी के नेता एडमंड याकानी ने साफ कहा है कि उनका देश ‘लोगों को फेंकने का मैदान’ नहीं बन सकता. उन्होंने यह भी बताया कि साउथ सूडान की मुस्लिम और अरब आबादी के प्रति ऐतिहासिक संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए यह तय किया जाना चाहिए कि कौन लोग आएंगे और कितनी अवधि के लिए रहेंगे.

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