F-35 जेट से लेकर पनडुब्बियां, कबाड़ बनते जा रहे हैं ब्रिटेश सेना के एडवांस हथियार और लड़ाकू विमान?

    एक समय था जब ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकत था. ब्रिटिश साम्राज्य का परचम विश्व के कई देशों पर लहराता था और ब्रिटिश आर्मी के पास दुनिया के सबसे उन्नत हथियार हुआ करते थे.

    How British army become hollow force is big concern
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    एक समय था जब ब्रिटेन दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकत था. ब्रिटिश साम्राज्य का परचम विश्व के कई देशों पर लहराता था और ब्रिटिश आर्मी के पास दुनिया के सबसे उन्नत हथियार हुआ करते थे. लेकिन आज की बात करें तो ब्रिटिश सेना पुराने और कई बार खराब हो चुके हथियारों पर निर्भर होती जा रही है. 

    हाल ही में केरल के बाद अब जापान में भी ब्रिटेन के एफ-35बी लड़ाकू विमान को इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी, जो HMS प्रिंस ऑफ वेल्स नामक एयरक्राफ्ट कैरियर से उड़ान भरकर आया था. यह विमान ब्रिटिश नौसेना के एक ऐसे जहाज से उड़ान भर रहा था जो अपनी सेवा के अंतिम दिनों में है. यह पहली बार नहीं है जब ब्रिटिश लड़ाकू विमान को तकनीकी खराबी के कारण उतरना पड़ा हो. जून महीने में भी केरल में इसी प्रकार के एक विमान को इमरजेंसी लैंड करना पड़ा था, जिसकी मरम्मत में एक महीने से अधिक समय लग गया था. 

    ब्रिटेन की एफ-35बी लड़ाकू विमानों में तकनीकी खामियां और चिंता

    विशेषज्ञों का मानना है कि अत्याधुनिक विमानों में तकनीकी खराबी आम है, लेकिन ब्रिटेन के रक्षा विभाग की नीतियां इस समस्या को और गंभीर बना रही हैं. ब्रिटेन ने कम संख्या में महंगे और अत्याधुनिक हथियार खरीदे हैं, जिससे जहाज, विमान और उपकरण कबाड़ में तब्दील होते जा रहे हैं. कई डिफेंस एक्सपर्ट्स एफ-35बी को ही एक कमजोर और विश्वसनीयता में कमतर विमान मानते हैं.

    ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय की रणनीति में बड़ी चूक

    जितना ज्यादा हथियार तकनीकी रूप से उन्नत होता है, उसकी मरम्मत और रखरखाव उतना ही महंगा और जटिल होता है. इसके अलावा, इन हथियारों को लगातार अपग्रेड भी करना पड़ता है, जिससे लागत बढ़ती रहती है और इस्तेमाल में आने वाले उपकरणों की संख्या कम होती जाती है. उदाहरण के लिए, ब्रिटिश नौसेना के पास केवल छह डेस्ट्रॉयर जहाज हैं, जबकि वास्तविक जरूरत लगभग 45 की है. सक्रिय जहाजों की संख्या कम होने के कारण उनमें से एक जहाज में खराबी आने पर ऑपरेशन की आधी क्षमता ही खत्म हो जाती है. न्यूक्लियर पनडुब्बियों की स्थिति और भी गंभीर है. पाँच में से अक्सर सिर्फ एक पनडुब्बी ही चालू रहती है.

    लड़ाकू विमानों के मामले में भी ब्रिटेन के पास 18 स्क्वाड्रन हैं, लेकिन उनमें विमान पर्याप्त संख्या में नहीं हैं. ऐसे में नुकसान की संभावना इतनी अधिक होती है कि सेना संसाधनों का सही उपयोग करने से भी डरने लगती है. इसी वजह से ब्रिटिश नौसेना के बड़े जहाज HMS क्वीन एलिजाबेथ और प्रिंस ऑफ वेल्स के संचालन को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.

    भविष्य के लिए गंभीर चिंता: टेम्पेस्ट लड़ाकू विमान

    ब्रिटेन की अगली पीढ़ी के टेम्पेस्ट लड़ाकू विमान भी अत्यंत महंगे होने वाले हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इतने महंगे विमानों का इस्तेमाल करने से पहले ही सरकार कई बार सोच सकती है, जिससे उनकी क्षमता सीमित रह जाएगी. वर्तमान में ब्रिटेन के पास पर्याप्त संख्या में जहाज, विमान, टैंक और सैनिक नहीं हैं. जब रक्षा बजट बढ़ाने की बात आती है, तो सरकार आवश्यक धनराशि बढ़ाने में अनिच्छुक दिखाई देती है. इस वजह से कई विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि ब्रिटेन को कम कीमत वाले विमानों की बड़ी संख्या खरीदनी चाहिए ताकि अपनी सैन्य ताकत को बहाल किया जा सके.

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