Bhupendra Yadav On Aravalli Mountain: अरावली पर्वतमाला को लेकर चल रहे विवाद के बीच केंद्र सरकार की ओर से बड़ा और स्पष्ट बयान सामने आया है. केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि अरावली क्षेत्र में किसी भी तरह की मनमानी छूट नहीं दी गई है और इसके संरक्षण को लेकर सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है. उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अरावली को लेकर सोशल मीडिया और कुछ यूट्यूब चैनलों पर जो बातें फैलाई जा रही हैं, वे भ्रामक और तथ्यों से परे हैं.
भूपेंद्र यादव ने बताया कि अरावली पर्वतमाला का कुल क्षेत्रफल करीब 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से सिर्फ 217 वर्ग किलोमीटर, यानी महज 0.19% क्षेत्र में ही खनन की अनुमति दी गई है. उन्होंने जोर देकर कहा कि आज की तारीख में 90 फीसदी से ज्यादा अरावली क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित है और भविष्य में भी इसे नुकसान नहीं होने दिया जाएगा. पर्यावरण मंत्री ने कहा, “अरावली की पहाड़ियों को कुछ नहीं होने वाला है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर जानबूझकर गलत व्याख्या की जा रही है.”
#WATCH | South 24 Parganas, WB: On Aravalli Hills issue, Union Minister for Environment, Forest & Climate Change, Bhupendra Yadav, says, "... There are no relaxations on the Aravalli. The Aravalli range spreads across four states of the country, including Delhi, Haryana,… pic.twitter.com/NKfaSkfTeP
— ANI (@ANI) December 21, 2025
100 मीटर की परिभाषा पर क्यों उठा विवाद?
पूरा विवाद अरावली की नई परिभाषा को लेकर खड़ा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकार की गई इस परिभाषा के अनुसार, अब केवल वही भू-आकृतियां ‘अरावली पहाड़ी’ मानी जाएंगी, जिनकी ऊंचाई आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक होगी.
भूपेंद्र यादव ने इस पर सफाई देते हुए कहा, “100 मीटर का मतलब केवल जमीन से चोटी तक की ऊंचाई नहीं है, बल्कि जमीन के भीतर फैले पर्वत से लेकर शिखर तक की संरचना को शामिल किया गया है.” सरकार का कहना है कि इसी वैज्ञानिक आधार पर आकलन किया गया है और इसी वजह से यह दावा गलत है कि अरावली का बड़ा हिस्सा संरक्षण से बाहर हो जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट और सरकार का रुख
केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया कि यह मामला कोई नया नहीं है, बल्कि 1985 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. कोर्ट ने केंद्र सरकार की समिति द्वारा सुझाई गई एक समान परिभाषा को अंतरिम रूप से स्वीकार किया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में नई माइनिंग लीज पर रोक लगा दी है, जब तक कि सतत खनन प्रबंधन योजना (MPSM) तैयार नहीं हो जाती.
सरकार का कहना है कि केवल राष्ट्रीय हित और रणनीतिक खनिजों के मामलों में ही सीमित छूट पर विचार किया जाएगा. भूपेंद्र यादव ने दोहराया, “सरकार ग्रीन अरावली मिशन के तहत संरक्षण को और मजबूत करेगी और सुप्रीम कोर्ट को हर स्तर पर पूरा सहयोग देगी.”
विरोध और पर्यावरणविदों की चिंता
इस फैसले के बाद राजस्थान के जयपुर और दिल्ली-NCR समेत कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं. सोशल मीडिया पर #SaveAravalli जैसे अभियानों के जरिए पर्यावरण कार्यकर्ता अपनी चिंता जता रहे हैं.
पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि ऊंचाई आधारित यह परिभाषा अरावली जैसे प्राचीन पर्वत तंत्र के लिए खतरनाक हो सकती है. उनका दावा है कि इससे अरावली का बड़ा हिस्सा कानूनी सुरक्षा से बाहर आ सकता है, जिससे खनन, रियल एस्टेट और व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा.
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