Naxalite Anant Vikas Nagpure Surrender: महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में सुरक्षा एजेंसियों को बड़ी सफलता मिली है. प्रतिबंधित संगठन CPI (माओवादी) के प्रमुख नेताओं में गिने जाने वाले अनंत, जिन्हें विकास नागपुरे और विनोद राधास्वामी के नाम से भी जाना जाता है, ने 11 साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. अनंत पर 25 लाख रुपये का इनाम घोषित था और उन्हें माओवादी तंत्र के उन महत्वपूर्ण चेहरों में गिना जाता था, जो संगठन के कई संवेदनशील ऑपरेशनों में शामिल रहे.
इस आत्मसमर्पण को महाराष्ट्र पुलिस के लिए रणनीतिक बढ़त माना जा रहा है. सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि इससे न केवल एमएमसी यानी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के त्रिकोणी नक्सल क्षेत्र के लगभग नक्सल-मुक्त होने का रास्ता साफ हुआ है, बल्कि उन मामलों की जांच भी आगे बढ़ सकती है जिनमें माओवादी हस्तक्षेप की आशंका जताई जाती रही है, जैसे कि खैरलांजी हत्याकांड (2006) और भीमा कोरेगांव हिंसा (2018).
किसके सामने हुआ आत्मसमर्पण?
अनंत ने अपना सरेंडर महाराष्ट्र के डीआईजी अंकित गोयल के समक्ष किया. उनके साथ शामिल 11 सदस्यों में तकनीकी इकाई के प्रमुख प्रताप, जिन्हें हथियार निर्माण में विशेषज्ञ माना जाता था और महिला विंग की कमांडर रानू, जिसने माओवादी संगठन में महिला दस्तों का नेटवर्क मजबूत किया, जैसे कई महत्वपूर्ण नाम शामिल थे.
सरेंडर के साथ ही इन सभी ने अपने हथियार भी जमा कर दिए. अधिकारियों के अनुसार, यह घटना नक्सलियों के उस प्रभाव क्षेत्र को निर्णायक रूप से कमजोर करेगी जहाँ वे वर्षों से सक्रिय रहे.
ग्रामीण नक्सली परिवार से मुंबई के छात्र जीवन तक
करीब 50 वर्षीय अनंत का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जो आंध्र प्रदेश में माओवादी गतिविधियों से जुड़ा था. उनके माता-पिता भूमिगत जीवन जीते हुए अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय रहे. अनंत की शुरुआती शिक्षा संगठन की ओर से सरकारी स्कूलों में करवाई गई.
12वीं के बाद उन्हें मुंबई भेजा गया, जहां उन्होंने 1999 से 2002 के बीच आर्ट्स में स्नातक की पढ़ाई पूरी की. नागपुर में “विकास नागपुरे” के नाम से जाने जाने वाले अनंत ने छात्र संगठनों के माध्यम से युवाओं को प्रभावित किया और माओवादी विचारधारा से जोड़ने का प्रयास जारी रखा.
उनके बारे में कहा जाता है कि वे विदर्भ और नागपुर क्षेत्र में शहरी नेटवर्क को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे. सुरक्षा एजेंसियां मानती हैं कि उनके सरेंडर से शहरी नक्सल ढांचे से जुड़े कई तत्वों पर प्रकाश डाला जा सकता है.
खैरलांजी: क्या सामने आएंगे नए खुलासे?
2006 में महाराष्ट्र के भंडारा जिले के खैरलांजी गांव में दलित परिवार के चार सदस्यों की हत्या ने पूरे देश को हिला दिया था. यह मामला दलित उत्पीड़न की क्रूर मिसाल के तौर पर सामने आया और इसे लेकर व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. अदालत ने मामले में कई आरोपियों को कड़ी सजा दी, जिसे बाद में उच्च न्यायालय ने संशोधित किया और सर्वोच्च न्यायालय ने भी उस फैसले को बरकरार रखा.
रिपोर्टों के अनुसार, खैरलांजी की घटना के बाद माओवादी संगठनों ने इस असंतोष का उपयोग युवाओं में आक्रोश भड़काने के लिए किया. दावा किया जाता है कि अनंत ने छात्र इकाइयों के जरिये विरोध प्रदर्शनों को दिशा दी और संगठन के लिए भर्ती बढ़ाने का प्रयास किया. सुरक्षा एजेंसियां उम्मीद कर रही हैं कि अनंत के बयान से इस कालखंड से जुड़ी कई कड़ियाँ सामने आ सकेंगी.
भीमा कोरेगांव 2018: शहरी नेटवर्क की पहेली
1 जनवरी 2018 को हुई भीमा कोरेगांव की हिंसा भी महाराष्ट्र की राजनीति और समाज के लिए बड़ा झटका थी. घटनाक्रम को लेकर कई तरह की जांच हुई और कई एंगल सामने आए. उस समय अनंत महाराष्ट्र के शहरी क्षेत्रों में सक्रिय माना जाता था.
एजेंसियों के अनुसार, माओवादी संगठनों ने जातीय तनाव को भुनाने की कोशिश की थी. अनंत जैसे नेताओं के सरेंडर से जांच एजेंसियों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि शहरी इलाकों में माओवादी नेटवर्क किस तरह से काम करता था और इनमें कौन-कौन से संपर्क सक्रिय थे.
अनंत के आत्मसमर्पण के बाद दिए गए बयान
सरेंडर के बाद अनंत ने एक बयान में कहा कि सुरक्षाबलों का दबाव तो है, लेकिन असली कारण यह है कि जनता अब हथियारबंद संघर्ष को समर्थन नहीं देती. हथियार अब समाधान नहीं हैं. उनके इस बयान को सुरक्षा एजेंसियां इस रूप में देख रही हैं कि पिछले एक दशक में सरकार द्वारा किए गए विकास कार्य, सड़कें, स्वास्थ्य सुविधाएँ, मोबाइल नेटवर्क और शिक्षा ने जनमानस को बदल दिया है, जिससे नक्सलियों का आधार क्षेत्र सिकुड़ता गया.
एमएमसी ज़ोन नक्सल-मुक्त होने की दहलीज़ पर
महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ का त्रिकोणी जंगल क्षेत्र लंबे समय तक माओवादी गतिविधियों का गढ़ रहा है. हाल के वर्षों में लगातार अभियानों, बढ़ते विकास कार्यों और स्थानीय जनसहयोग के चलते इस क्षेत्र में नक्सली प्रभाव तेजी से कम हुआ है. अनंत जैसे वरिष्ठ कैडर का आत्मसमर्पण इसे एक निर्णायक मोड़ माना जा रहा है. उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार जल्द ही इस क्षेत्र को नक्सल-मुक्त घोषित कर सकती है.
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