यूरोप की सुरक्षा अब सिर्फ अमेरिकी हथियारों के सहारे नहीं चलेगी — यही स्पष्ट संदेश फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने दिया है. उन्होंने यूरोपीय देशों से अपील की है कि वे अपनी सामरिक जरूरतों के लिए ‘राफेल फाइटर जेट’ जैसे घरेलू विकल्पों को प्राथमिकता दें.
मैक्रों ने हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्टर शेयर किया जिसमें एक राफेल विमान के नीचे संदेश लिखा था – “हमारे यूरोप की सुरक्षा के लिए... राफेल बुला रहा है.” यह सिर्फ एक प्रचार नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संकेत है कि अब यूरोप को अमेरिका की छाया से बाहर निकलकर सामरिक आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ना चाहिए.
अमेरिका से भरोसा टूटा, अब बारी यूरोप की है
मैक्रों लंबे समय से यूरोपीय रणनीतिक स्वायत्तता के पैरोकार रहे हैं. उनके अनुसार, अमेरिका की राजनीति — खासकर ट्रंप की वापसी की संभावना — यूरोप के लिए सुरक्षा जोखिम पैदा कर सकती है. मार्च 2025 में दिए गए एक बयान में उन्होंने साफ कहा था कि "जो देश अभी अमेरिकी हथियारों पर निर्भर हैं, उन्हें यूरोपीय विकल्प देना ज़रूरी है – इससे न केवल लागत घटेगी, बल्कि सामरिक नियंत्रण भी यूरोप के हाथ में रहेगा."
हाल ही में उन्होंने यूरोप में फ्रांसीसी परमाणु बमों की तैनाती की भी वकालत की, जिसे जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ ने समर्थन दिया. यानी यूरोप के कुछ प्रभावशाली देश अब मैक्रों की सोच के साथ कदम से कदम मिला रहे हैं.
राफेल vs F-35 – तकनीक बनाम नियंत्रण की लड़ाई
फिलहाल यूरोप के कई देश अमेरिका के F-35 स्टील्थ फाइटर जेट का इस्तेमाल करते हैं. ये 5वीं पीढ़ी के बेहद एडवांस जेट माने जाते हैं और इनकी तकनीकी क्षमताएं वाकई बेहतरीन हैं – जैसे स्टेल्थ टेक्नोलॉजी, सेंसर फ्यूजन, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर आदि.
लेकिन F-35 को लेकर सबसे बड़ा डर ‘किल स्विच’ की आशंका है – एक ऐसा कंट्रोल, जिससे अमेरिका ज़रूरत पड़ने पर इन जेट्स को निष्क्रिय कर सकता है. भले ही पेंटागन ने इसे खारिज किया हो, लेकिन यह संदेह यूरोप की रणनीतिक सोच पर भारी है. इसके उलट, राफेल 4.5 जनरेशन का मल्टीरोल फाइटर जेट है – पूरी तरह फ्रांसीसी नियंत्रण में, बिना किसी बाहरी निर्भरता के. इसका मतलब है – डेटा, सॉफ्टवेयर, सपोर्ट सिस्टम सब कुछ यूरोप के ही हाथों में.
भारत-पाक संघर्ष में भी दिखी राफेल की ताकत
राफेल की विश्वसनीयता का एक और प्रमाण हाल के भारत-पाक संघर्ष में देखा गया. भारत द्वारा इस्तेमाल किए गए राफेल ने पाकिस्तानी एयर डिफेंस को न सिर्फ चकमा दिया बल्कि उसे सटीक हमलों से पस्त भी कर दिया. इससे राफेल की युद्धक उपयोगिता पर वैश्विक भरोसा और भी मजबूत हुआ है.
यूरोपीय सुरक्षा का नया अध्याय?
राफेल को आगे बढ़ाकर मैक्रों ने यूरोप में सामरिक आत्मनिर्भरता का बिगुल फूंका है. जब अमेरिका यूक्रेन को सैन्य सहायता देने में झिझक रहा है, तब यूरोप को यह तय करना होगा कि उसकी सुरक्षा के लिए उसका अगला कदम क्या होगा?
मैक्रों की यह पहल सिर्फ एक फाइटर जेट बेचने की कोशिश नहीं है – यह एक रणनीतिक बदलाव का आह्वान है. क्या जर्मनी, इटली, स्पेन जैसे देश अब इस बदलाव में साझेदार बनेंगे? आने वाले महीनों में यूरोप की दिशा बहुत कुछ तय कर सकती है. नया नारा साफ है: यूरोप अब सिर्फ अमेरिका पर नहीं, खुद पर भरोसा करे. और राफेल इसकी पहली उड़ान बन सकता है.
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