भारत और चीन के बीच रिश्तों की जटिलता कोई नई बात नहीं है. सीमाओं पर तनाव, व्यापारिक प्रतिस्पर्धा और भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं — ये सब वर्षों से इन दोनों एशियाई महाशक्तियों को आमने-सामने लाते रहे हैं. लेकिन अब ड्रैगन यानी चीन, भारत के खिलाफ एक नई चाल चलता हुआ दिख रहा है. पाकिस्तान के बाद अब बांग्लादेश चीन की रणनीति का अगला मोहरा बनता जा रहा है.
भारत ने जब-जब चीन की विस्तारवादी नीति को चुनौती दी है, बीजिंग ने कभी परोक्ष तो कभी प्रत्यक्ष तौर पर भारत को घेरने की कोशिशें की हैं. अब बांग्लादेश में बदली राजनीतिक परिस्थितियों के बीच चीन को एक और मौका मिलता दिख रहा है.
बदलती सरकार, बदलती प्राथमिकताएं
जब तक बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार थी, भारत और बांग्लादेश के संबंध स्थिर और सहयोगात्मक रहे. लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में नई सरकार के आने के साथ ही चीन को बांग्लादेश में अपने पांव फैलाने का नया अवसर मिल गया है. नए शासन ने चीनी निवेश को खुले दिल से स्वीकार किया है. पद्मा ब्रिज, स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन, जल प्रबंधन परियोजनाएं, और बंदरगाहों के विस्तार जैसे कई क्षेत्रों में चीन की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है. यह वही रणनीति है जो उसने पहले पाकिस्तान में अपनाई थी. बड़े निवेश के बदले रणनीतिक पकड़.
BRI से भारत का इंकार, चीन की बौखलाहट
चीन की महत्वाकांक्षी योजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में शुरू में बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार (BCIM) आर्थिक गलियारे का प्रस्ताव भी शामिल था. लेकिन भारत ने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के विरोध में BRI से खुद को अलग कर लिया. भारत की यह स्पष्ट नीति चीन को रास नहीं आई और उसने दक्षिण एशिया में वैकल्पिक रास्ते तलाशने शुरू कर दिए. भारत के पश्चिम में पहले से ही पाकिस्तान चीन का करीबी साथी है. अब पूर्व की ओर बांग्लादेश में पैर जमाकर वह भारत को एक रणनीतिक घेरे में लेने की कोशिश कर रहा है.
धार्मिक कट्टरपंथ और चीन की कूटनीति
पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों ही देश इस्लामिक बहुलता वाले हैं, और भारत विरोधी भावनाएं इन देशों के कुछ कट्टरपंथी वर्गों में गहरी जड़ें जमाए हुए हैं. अब जब चीन इन देशों में आर्थिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय हो रहा है, तो यह समीकरण भारत के लिए और भी चुनौतीपूर्ण बन जाता है. चीन को इन देशों की न केवल सरकारों का, बल्कि कुछ कट्टरपंथी समूहों का भी परोक्ष समर्थन मिल सकता है. जो भारत की सुरक्षा और आंतरिक स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है.
नेपाल और म्यांमार भी निगरानी में
चीन की रणनीति केवल पाकिस्तान या बांग्लादेश तक सीमित नहीं है. नेपाल में भी वह लंबे समय से अपनी प्रभावशीलता बढ़ा रहा है. वहीं म्यांमार में भी चीन की सैन्य और आर्थिक गतिविधियां भारत को चौकन्ना कर रही हैं. दक्षिण एशिया में चीन की यह आक्रामक नीति भारत के लिए एक बहु-स्तरीय रणनीतिक चुनौती बन चुकी है.
भारत को चाहिए सतर्कता और सक्रिय कूटनीति
भारत के लिए यह वक्त केवल प्रतिक्रिया देने का नहीं, बल्कि बहुपक्षीय रणनीति अपनाने का है. सीमा सुरक्षा, राजनयिक संवाद, आर्थिक निवेश, और पड़ोसी देशों के साथ सहयोग को नई ऊर्जा देने की जरूरत है. भारत को यह समझना होगा कि दक्षिण एशिया में उसकी स्थिति केवल भूगोल नहीं, बल्कि भू-राजनीति भी तय करती है. अपने पड़ोसियों को जोड़कर रखना अब केवल कूटनीति नहीं, बल्कि सुरक्षा का हिस्सा है.
फिलहाल चीन के सुर बदले हुए हैं, लेकिन...
हालिया घटनाओं में चीन के भारत के प्रति सुर थोड़ा नरम नजर आ रहे हैं. अमेरिकी नीतियों और टैरिफ विवादों के बीच चीन ने भारत के साथ खड़ा होने की बात तक कही है. भारत में चीन के राजदूत शू फेइहोंग ने कहा था, “चुप्पी केवल धमकाने वालों को बढ़ावा देती है. चीन भारत के साथ मजबूती से खड़ा रहेगा.” हालांकि, भारत को यह समझना चाहिए कि यह बयान स्थायी रणनीति का हिस्सा नहीं हो सकता. चीन की असली नीति उसके जमीनी निवेश और पड़ोसी देशों के साथ व्यवहार से सामने आती है.
यह भी पढ़ें: ट्रंप की बढ़ने वाली मुसिबत! पुतिन के खास किम जोंग ने तैयार किया 'S-400', इतना शक्तिशाली कांप जाएंगे दुश्मन