'अमेरिका के दबाव में ईरान झुकेगा नहीं', खामेनेई ने ट्रंप-नेतन्‍याहू को फ‍िर से ललकारा, भड़केगी जंग?

    ईरान के सर्वोच्च धार्मिक और राजनीतिक नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने अमेरिका और इज़रायल को एक बार फिर सीधे शब्दों में चेतावनी दी है कि ईरान किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है.

    Khamenei again challenged Trump and Netanyahu
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ Sociel Media

    तेहरान/वॉशिंगटन/यरुशलम: मध्य-पूर्व में एक बार फिर से तनाव की लहर दौड़ गई है. ईरान के सर्वोच्च धार्मिक और राजनीतिक नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने अमेरिका और इज़रायल को एक बार फिर सीधे शब्दों में चेतावनी दी है कि ईरान किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकने को तैयार नहीं है. यह बयान उस समय आया है जब ईरान और पश्चिमी देशों के बीच परमाणु समझौते को लेकर तनाव लगातार गहराता जा रहा है.

    खामेनेई का स्पष्ट संदेश था कि वॉशिंगटन और तेल अवीव के नेताओं डोनाल्ड ट्रंप और बेंजामिन नेतन्याहू की धमकियों या कूटनीतिक हथकंडों से तेहरान विचलित नहीं होगा. उन्होंने उन लोगों की भी आलोचना की जो अमेरिका के साथ सीधे संवाद की बात करते हैं, यह कहते हुए कि वे केवल सतही समस्याओं को देख रहे हैं, जबकि असली चुनौती उस लंबे ऐतिहासिक टकराव में छिपी है, जिसे पश्चिम लगातार अनदेखा करता आया है.

    यूरोपीय देश कर रहे हैं मध्यस्थता की कोशिश

    इस बीच, ईरान के उपविदेश मंत्री अब्बास अराकची ने ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के प्रतिनिधियों से मुलाकात की है और दोनों पक्षों के बीच अगले सप्ताह परमाणु वार्ता फिर से शुरू करने की सहमति बनी है. यह बैठक उस समय हो रही है जब पश्चिमी यूरोपीय देश ईरान की बढ़ती परमाणु गतिविधियों से चिंतित हैं और उन्हें संदेह है कि ईरान का इरादा शांतिपूर्ण उद्देश्यों से आगे बढ़ चुका है.

    यूरोपीय संघ के सूत्रों का कहना है कि अगर ईरान बातचीत में लचीला रुख नहीं दिखाता तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पुराने प्रतिबंध फिर से लागू किए जा सकते हैं, जिसे 'स्नैपबैक मैकेनिज्म' कहा जाता है. यह व्यवस्था ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर नियंत्रण के लिए बनाई गई थी ताकि तेहरान के किसी भी उल्लंघन पर तत्काल सख्त कार्रवाई की जा सके.

    ईरान के संवर्धन कार्यक्रम को लेकर चिंताएं

    वर्तमान में ईरान ने 60% शुद्धता तक यूरेनियम संवर्धन कर लिया है, जो कि हथियार-ग्रेड 90% यूरेनियम से बस एक कदम पीछे है. यह संवर्धन स्तर केवल नागरिक परमाणु ऊर्जा के लिए आवश्यक नहीं माना जाता, और यही कारण है कि पश्चिमी देश इसे लेकर काफी चिंतित हैं.

    जून महीने में हुए 12-दिन के इज़रायल-ईरान संघर्ष में इज़रायल ने ईरानी परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाया था. इसके बाद ईरान ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ सहयोग सीमित कर दिया. परिणामस्वरूप, ईरान की परमाणु गतिविधियां अब वैश्विक निरीक्षण से बाहर हो गई हैं और विशेषज्ञों के लिए यह एक "ब्लैक बॉक्स" बन चुका है.

    दोनों के बीच भरोसे की भारी कमी

    ईरान और अमेरिका के बीच विश्वास की दीवारें पहले ही कमजोर थीं, लेकिन अब वे लगभग पूरी तरह ढह चुकी हैं. तेहरान का मानना है कि अमेरिका हमेशा उसे एक अधीनस्थ देश की तरह देखता है, जिसकी भूमिका केवल आदेश मानने की है. वहीं, अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को लगता है कि ईरान धीरे-धीरे परमाणु हथियार क्षमता विकसित कर रहा है, जबकि उसका दावा केवल नागरिक उपयोग का है.

    ईरान के अनुसार, यूरोपीय देशों के पास अब परमाणु समझौते के उल्लंघन पर कोई नैतिक या कानूनी अधिकार नहीं बचा है, क्योंकि अमेरिका 2018 में खुद इस समझौते से बाहर निकल चुका है. वहीं यूरोपीय देश यह मानते हैं कि अगर बातचीत विफल होती है तो उनके पास कार्रवाई के सिवाय कोई विकल्प नहीं रहेगा.

    अंतरराष्ट्रीय दबाव और संभावित परिणाम

    अगर आने वाले सप्ताह में होने वाली वार्ता में कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय ईरान पर फिर से कड़े प्रतिबंध लगाने की दिशा में बढ़ सकता है. ये प्रतिबंध ईरान की अर्थव्यवस्था को और अधिक प्रभावित करेंगे, जो पहले ही महंगाई, बेरोजगारी और अंतरराष्ट्रीय अलगाव से जूझ रही है.

    IAEA को परमाणु साइट्स तक पहुंच न मिलने से संदेह और बढ़ेगा, जिससे वैश्विक स्तर पर तनाव और बढ़ सकता है. खामेनेई का हालिया बयान इस ओर इशारा करता है कि तेहरान आत्मसमर्पण करने के मूड में नहीं है. यानी कि आगामी समय में टकराव और भी तीखा हो सकता है.

    क्या फिर जंग की ओर बढ़ रहा है मामला?

    परमाणु कार्यक्रम को लेकर बढ़ती आशंकाएं, संवाद की विफलताएं और नेतृत्व स्तर पर कठोर बयानबाजी ये सभी संकेत इस ओर इशारा कर रहे हैं कि अगर कोई संतुलन नहीं बना तो मध्य-पूर्व एक बार फिर सैन्य टकराव की ओर बढ़ सकता है.

    वहीं अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी अब "डेडलाइन डिप्लोमेसी" की रणनीति अपना रहे हैं, यानी बातचीत के लिए सीमित समय और उसके बाद निर्णायक कार्रवाई. ऐसे में अगली वार्ता की सफलता ही यह तय करेगी कि क्षेत्र में शांति बनी रहेगी या फिर एक और संकट की शुरुआत होगी.

    ये भी पढ़ें- मोसाद ने बनाया था पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक एक्यू खान को मारने का प्लान, अमेरिका ने कैसे बचाई जान?