जहां भारत में विवादित बयानों के बाद भी नेता अक्सर अपने पद पर बने रहते हैं, वहीं जापान में इससे बिल्कुल उलट एक मिसाल सामने आई है. यहां के कृषि मंत्री तकु एतो ने सिर्फ एक विवादित बयान के चलते अपने पद से इस्तीफा दे दिया. यह बयान किसी गंभीर राष्ट्रीय मुद्दे पर नहीं, बल्कि चावल को लेकर था. जी हां, वही चावल जो हर घर की रसोई में आम तौर पर मिलता है.
क्या कहा था मंत्री ने?
जापान में इन दिनों महंगाई की मार सबसे ज्यादा खाद्य वस्तुओं पर पड़ी है और चावल की कीमतें भी लगातार बढ़ती जा रही हैं. इसी माहौल में कृषि मंत्री तकु एतो ने सार्वजनिक रूप से कहा कि उन्हें अपने समर्थकों से मिलने वाले उपहारों की वजह से कभी चावल खरीदने की जरूरत ही नहीं पड़ी. यह बयान ऐसे समय आया, जब आम जनता चावल की भारी कीमतों से परेशान थी. इस संवेदनशील मुद्दे पर मंत्री का गैरजिम्मेदाराना बयान लोगों को नागवार गुजरा और देशभर में उनकी आलोचना शुरू हो गई.
जनता की नाराजगी के बाद इस्तीफा
जैसे ही विवाद गहराया, तकु एतो ने बिना देर किए अपना इस्तीफा सौंप दिया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है. यह कदम जनता की नाराजगी को सम्मान देने और अपनी जवाबदेही निभाने के रूप में उठाया गया.
सरकार पर बढ़ा दबाव
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एतो के इस्तीफे से इशिबा सरकार की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं. पहले ही अल्पमत में चल रही सरकार अब जनता का भरोसा और समर्थन खोती नजर आ रही है. यह घटना जापान की राजनीति में ईमानदारी और उत्तरदायित्व की मिसाल तो है, लेकिन साथ ही एक राजनीतिक संकट की शुरुआत भी बन सकती है.
सीख क्या है?
यह घटना यह दिखाती है कि लोकतंत्र में जनता की आवाज कितनी अहम होती है. एक साधारण लेकिन असंवेदनशील बयान कैसे बड़े राजनीतिक परिणाम ला सकता है, यह जापान की इस घटना से साफ हो जाता है. यह भारतीय राजनीति के लिए भी सोचने और सीखने का विषय हो सकता है, जहां जवाबदेही को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है.
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