पूर्वी लद्दाख के बर्फीले मैदानों में तीन साल पहले जो सैन्य गतिरोध शुरू हुआ था, उसका असर सिर्फ सीमा तक सीमित नहीं रहा. इसने दो एशियाई महाशक्तियों—भारत और चीन—के रिश्तों को भी ठिठका दिया था. अब, जब भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर बीजिंग में अपने चीनी समकक्ष वांग यी और उपराष्ट्रपति हान झेंग से बातचीत करते हैं, तो यह केवल एक शिष्टाचार यात्रा नहीं लगती. यह उस जमे हुए रिश्ते में गर्माहट लाने की कोशिश है, जिसे सीमा पर संघर्ष और राजनीतिक अविश्वास ने लगभग ठंडा कर दिया था.
‘सहयोग की तलाश, तनाव से परहेज़’
जयशंकर और वांग यी की मुलाक़ात में बातचीत का फोकस साफ था—सीमा पर तनाव कम करना, व्यापार में अवरोधों से बचना और पारस्परिक सम्मान के आधार पर संबंधों को पटरी पर लाना. जयशंकर ने साफ शब्दों में कहा कि मतभेद विवाद में न बदलें और प्रतिस्पर्धा को संघर्ष का रूप न लेने दिया जाए.
बातचीत में जयशंकर ने चीनी प्रतिबंधों का अप्रत्यक्ष रूप से जिक्र किया—विशेष रूप से उर्वरकों की आपूर्ति और महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात में चीन की भूमिका को लेकर. उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापार में पारदर्शिता और स्थिरता की मांग की. भारत की ओर से यह स्पष्ट संदेश था कि व्यापार और रणनीतिक सहयोग अलग-अलग नहीं चल सकते.
एससीओ और आतंकवाद पर भारत का रुख
जयशंकर ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक की पृष्ठभूमि में आतंकवाद पर भारत की नीति भी दोहराई. उन्होंने उम्मीद जताई कि संगठन आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद को लेकर 'शून्य सहिष्णुता' की नीति को जारी रखेगा. उनका यह बयान पाकिस्तान की नीति की सीधी आलोचना के तौर पर देखा गया, जो अक्सर सीमापार आतंकवाद के आरोपों से घिरा रहता है.
सीमा से शांति, संबंधों में गति
भारत और चीन के बीच 2020 में पूर्वी लद्दाख में उपजे सैन्य गतिरोध के बाद यह जयशंकर की पहली चीन यात्रा थी. इस यात्रा से ठीक तीन हफ्ते पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी किंगदाओ गए थे. अब जबकि डेमचोक और देपसांग जैसे प्रमुख विवादित बिंदुओं से सेनाओं की वापसी हो चुकी है, दोनों पक्ष धीरे-धीरे संबंधों को पुनर्जीवित करने की दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं.
जयशंकर ने इस दिशा में हुई 'अच्छी प्रगति' को रेखांकित किया और कहा कि यह सीमा पर शांति बनाए रखने की कोशिशों का नतीजा है. साथ ही, उन्होंने यह भी जोड़ा कि अब वक्त है कि बाकी मुद्दों पर भी उतनी ही गंभीरता से काम हो.
व्यापार और यात्रा में व्यवहारिक कदम
वार्ता के दौरान दोनों पक्षों ने व्यापारिक बाधाओं को कम करने और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने पर सहमति जताई. इसमें सीधी उड़ानों की बहाली और यात्रा संबंधी रियायतों की बात शामिल रही. भारत की ओर से यह संकेत था कि संबंधों को सामान्य बनाना केवल कागज़ी कवायद न हो, बल्कि ज़मीनी स्तर पर असर डालने वाले ठोस कदमों के साथ हो.
विचारों का खुला आदान-प्रदान और राजनयिक संतुलन
जयशंकर ने चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग और कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता लियू जियानचाओ से भी मुलाकात की. उन्होंने इस दौरान ज़ोर दिया कि मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में भारत और चीन के बीच खुली बातचीत न सिर्फ आपसी फायदे की बात है, बल्कि इससे पूरी दुनिया को स्थायित्व का संदेश जाएगा.
उन्होंने पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच हुई पिछली बैठक का जिक्र करते हुए कहा कि उस बैठक के बाद संबंधों में सकारात्मक गति आई है, और दोनों पक्षों की जिम्मेदारी है कि इसे बनाए रखें.
नदियों और जल विज्ञान डेटा पर सहयोग की पहल
भारत ने चीन से सीमा पार बहने वाली नदियों के मामले में डेटा साझा करने की मांग को दोहराया. जयशंकर ने जल विज्ञान संबंधी सूचनाओं की बहाली को जरूरी बताया, जिससे आपदा प्रबंधन और पर्यावरणीय संतुलन सुनिश्चित किया जा सके. यह भारत की उस चिंता की झलक है जो ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के प्रवाह और उस पर चीन की गतिविधियों को लेकर समय-समय पर उठती रही है.
कैलाश मानसरोवर यात्रा की वापसी
दोनों देशों के बीच संबंधों की गर्माहट को सांस्कृतिक जुड़ाव से भी मज़बूती मिल सकती है. पांच साल के लंबे अंतराल के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली को इसी दृष्टि से देखा जा रहा है. यह सिर्फ तीर्थ यात्रा नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए एक सकारात्मक संकेत है जो रिश्तों में भरोसे की कमी को महसूस करते रहे हैं.
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