संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र में इस बार वैश्विक राजनीति के मंच पर कई अहम मुद्दे उठाए गए, लेकिन जिस बात ने सबसे ज्यादा ध्यान खींचा, वह था अमेरिका की नीतियों को लेकर भारत और रूस की स्पष्ट प्रतिक्रिया इस मंच से दोनों देशों ने अमेरिका की व्यापारिक और राजनीतिक नीतियों पर अप्रत्यक्ष, लेकिन मजबूत हमला बोला.
भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अमेरिकी नीतियों के प्रति अपनी असहमति जाहिर करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि आज की बदलती दुनिया में किसी भी एक देश की मनमानी स्वीकार्य नहीं होगी, चाहे वह कितना भी ताकतवर क्यों न हो.
जयशंकर का अमेरिका को संकेत
डॉ. एस. जयशंकर ने अपने भाषण में किसी देश का नाम लिए बिना अमेरिका की व्यापार नीतियों और ‘एकतरफा फैसलों’ पर सवाल उठाए उन्होंने कहा कि आज वैश्विक व्यापार प्रणाली अस्थिरता के दौर से गुजर रही है. "टैरिफ में उतार-चढ़ाव और बाजारों तक पहुंच की अनिश्चितता" जैसी चुनौतियां कई विकासशील देशों के लिए चिंता का विषय बन चुकी हैं.
उन्होंने कहा कि जब कोई देश अपनी राजनीतिक सोच को व्यापार पर थोपने लगता है, तो वैश्विक सप्लाई चेन पर सीधा असर पड़ता है. खासकर विकासशील देशों के लिए यह स्थिति अधिक खतरनाक साबित हो सकती है क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था पहले से ही कई चुनौतियों से जूझ रही होती है.
जयशंकर ने यह भी कहा कि व्यापार को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना दीर्घकालीन वैश्विक स्थिरता के लिए खतरनाक हो सकता है. यह संदेश साफ तौर पर अमेरिका की उन नीतियों की आलोचना था जिसमें वह अक्सर अपने आर्थिक हितों को लेकर दूसरे देशों पर दबाव डालता रहा है, चाहे वह रूस से तेल खरीद का मामला हो या तकनीकी सहयोग की सीमाएं.
रूस का समर्थन: भारत के साथ अटूट संबंध
भारत के बाद रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी इसी मंच से भारत के प्रति समर्थन व्यक्त किया और अमेरिका की ‘दबाव की राजनीति’ की आलोचना की उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत-रूस के संबंधों को कोई तीसरा देश तय नहीं कर सकता.
लावरोव ने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की सराहना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक संतुलित और स्वतंत्र भूमिका निभाई है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिका की तरफ से लगाए गए "सेकेंडरी सैंक्शन" या आर्थिक प्रतिबंध भारत-रूस रिश्तों को प्रभावित नहीं कर पाएंगे.
भारत-रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी
रूस के विदेश मंत्री ने भारत के साथ अपने रिश्तों को सिर्फ आर्थिक संबंधों तक सीमित नहीं बताया उन्होंने इसे एक "विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी" करार दिया लावरोव ने बताया कि दोनों देशों के बीच रक्षा, ऊर्जा, विज्ञान और तकनीक, स्वास्थ्य, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और वैश्विक मंचों पर समन्वय जैसे क्षेत्रों में गहरा सहयोग है.
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की मुलाकात शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन के दौरान हुई थी और आने वाले दिसंबर में पुतिन के भारत दौरे की भी योजना है. इसका मतलब है कि दोनों देशों के रिश्ते लगातार मजबूत हो रहे हैं, भले ही अमेरिका जैसे देशों का इस पर क्या रुख हो.
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