नई दिल्ली: पश्चिम एशिया में ईरान और इजरायल के बीच जारी तनाव अब खतरनाक स्तर पर पहुंचता जा रहा है. ताजा घटनाक्रम में इजरायली डिफेंस फोर्स (IDF) ने ईरान की एक अत्यधिक महत्वपूर्ण एयरबेस और उसकी संवेदनशील परमाणु सुविधाओं पर हमले किए हैं. रिपोर्टों के अनुसार, इजरायल ने हमदान एयरबेस और फोर्दो स्थित भूमिगत परमाणु साइट को निशाना बनाया है, जिसे ईरान की सबसे सुरक्षित परमाणु सुविधा माना जाता है.
इजरायल के हमले में ईरान के कई सैन्य और परमाणु प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचा है, जिनमें कासर-ए-शीरिन और कांजावर के ठिकाने भी शामिल हैं. साथ ही, इजरायल ने साइबर हमलों और लक्षित हमलों के माध्यम से ईरान की सैन्य क्षमताओं को कमजोर करने का प्रयास किया है. यह घटनाक्रम ईरान-इजरायल टकराव को एक नए और अधिक खतरनाक चरण में ले जा सकता है.
वैश्विक प्रतिक्रिया: दुनिया बंटी नजर आ रही है
इस गंभीर स्थिति के बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने आपात बैठक बुलाने का निर्णय लिया है, जो भारतीय समयानुसार आज रात 1:23 बजे आयोजित होगी. इस मुद्दे पर वैश्विक स्तर पर दो स्पष्ट धड़े बनते दिखाई दे रहे हैं.
अमेरिका और यूरोप का समर्थन इजरायल को:
अमेरिका ने इजरायल को खुफिया जानकारी और उच्च तकनीक वाले हथियार प्रदान किए हैं. यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने भी कहा है कि इजरायल को आत्मरक्षा का अधिकार है.
चीन और रूस का समर्थन ईरान को:
दूसरी ओर, चीन और रूस खुलकर ईरान के साथ खड़े हैं. चीन के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि वह ईरान के साथ खड़ा है और बातचीत के जरिये समाधान का समर्थन करता है. रूस ने ईरान को ‘क्षेत्रीय स्थिरता का समर्थक’ बताया है.
भारत की तटस्थ भूमिका:
भारत ने इस पूरे विवाद पर संतुलित रुख अपनाया है. भारत दोनों देशों इजरायल और ईरान के साथ गहरे रणनीतिक और आर्थिक संबंध रखता है, और फिलहाल तटस्थ रहने की नीति पर कायम है.
ट्रंप की पुरानी चेतावनी की पृष्ठभूमि
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले ही स्पष्ट कर चुके थे कि यदि ईरान परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने पर सहमत नहीं होता, तो भविष्य में ईरान को और कठोर सैन्य कार्रवाइयों का सामना करना पड़ सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि फोर्दो न्यूक्लियर साइट पर हालिया हमला इसी रणनीतिक दबाव का हिस्सा हो सकता है.
क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा
ईरान और इजरायल के बीच इस तरह की सैन्य झड़पों ने न केवल मध्य पूर्व, बल्कि वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और सामरिक संतुलन के लिए भी गंभीर जोखिम पैदा कर दिए हैं. खाड़ी क्षेत्र में तेल की आपूर्ति पहले से ही संवेदनशील है, और ऐसे समय में इस तरह के सैन्य हमलों से बाजार में अनिश्चितता और बढ़ सकती है.
आगे क्या?
अब सबकी निगाहें ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई और ईरानी नेतृत्व की अगली रणनीति पर टिकी हैं. यह देखना अहम होगा कि क्या ईरान इस हमले का प्रत्यक्ष जवाब देगा या अपने प्रॉक्सी नेटवर्क, कूटनीति और साइबर हथियारों के जरिये इजरायल और उसके सहयोगियों पर दबाव बढ़ाएगा.
संभावना यह भी है कि ईरान संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक मंचों का सहारा लेकर खुद को "आक्रांत" के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करेगा, ताकि चीन, रूस और कुछ गैर-पश्चिमी देशों का समर्थन और मजबूत कर सके.
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