ईरान और इजराइल के बीच 12 दिन तक चले युद्ध का असर दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक महसूस किया गया है, और इसका प्रभाव ताइवान पर भी गहरा पड़ा है. इजराइल की सैन्य रणनीति, अमेरिका का समर्थन, और ईरान की जवाबी कार्रवाई ने ताइवान को बहुत कुछ सिखाया. अब, ताइवान अपने लिए एक मजबूत सुरक्षा ढांचा तैयार कर रहा है ताकि चीन जैसे बड़े और ताकतवर दुश्मन से मुकाबला कर सके.
इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ताइवान का "हान कुआंग ड्रिल्स" सैन्य अभ्यास, जो इस हफ्ते से शुरू हो चुका है. इसमें 22,000 रिजर्व सैनिक शामिल हैं, और यह अभ्यास साइबर हमलों, मिसाइल हमलों और जमीनी युद्ध की विभिन्न स्थितियों पर आधारित है. ताइवान का यह अभ्यास, चीन से निपटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.
ईरान-इजराइल युद्ध से ताइवान ने क्या सीखा?
13 जून से 24 जून तक चले ईरान-इजराइल युद्ध ने दुनियाभर में एक नया सुरक्षा दृष्टिकोण पेश किया. इजराइल ने अपनी खुफिया जानकारी के आधार पर ईरान की एयर डिफेंस को पहले ही चरण में भारी नुकसान पहुंचाया. इजराइल ने सैकड़ों एयरस्ट्राइक किए, जबकि ईरान ने 550 से ज्यादा मिसाइलें और 1,000 से अधिक ड्रोन दागे. अमेरिकी सेना ने इस युद्ध में हस्तक्षेप किया और ईरान के तीन प्रमुख न्यूक्लियर ठिकानों पर हमला किया.
इस पूरी लड़ाई से ताइवान ने यह सीखा कि समय से पहले जानकारी हासिल करना, साइबर सुरक्षा को मजबूत बनाना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है. इन तीनों पहलुओं का संयोजन दुश्मन को कमजोर करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
चीन से मुकाबला करने के लिए नई रणनीति
चीन की सेना हर मामले में ताइवान से बड़ी और ताकतवर है. हालांकि, ताइवान अब "असिमेट्रिक डिफेंस" यानी स्मार्ट और तेज तकनीकों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहा है. इसमें प्रमुख रूप से एंटी-ड्रोन सिस्टम, साइबर हमलों के दौरान कमांड और नियंत्रण बनाए रखने की रणनीतियाँ, और अमेरिकी M1A2T अब्राम्स टैंक जैसे उन्नत उपकरण शामिल हैं. ताइवान इन नई तकनीकों का इस्तेमाल चीन से मुकाबला करने के लिए कर रहा है, ताकि वह पारंपरिक युद्ध के बजाय तकनीकी रूप से बेहतर स्थिति में रहे.
अमेरिका से रिश्ते: मजबूत सुरक्षा का आधार
ताइवान को यह समझ में आ चुका है कि अपनी सैन्य ताकत बढ़ाए बिना कोई भी बाहरी सहयोग नहीं मिलेगा. इसलिए, ताइवान ने अमेरिका के साथ सैन्य ट्रेनिंग, खुफिया जानकारी साझा करने और फॉरेन मिलिट्री फाइनेंसिंग जैसे समझौतों को तेज किया है. ताइवानी सैनिक अब अमेरिका में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं, जबकि अमेरिकी विशेषज्ञ ताइवान आकर वहां की सेना को ट्रेनिंग दे रहे हैं. इस सहयोग से ताइवान की सैन्य क्षमता और सुरक्षा तैयारियों में तेजी से सुधार हो रहा है.
सिविल डिफेंस की तैयारी: जनता को सतर्क बनाना
इजराइल में मिसाइल हमले के समय नागरिकों को पता होता है कि कहां जाना है और किस प्रकार से सुरक्षा प्राप्त करनी है. ताइवान अब अपने सरकारी और सार्वजनिक भवनों में बम-रोधी शेल्टर बना रहा है और पुरानी इमारतों को भी भविष्य में मजबूत बनाने की योजना बना रहा है. इसके साथ ही, ट्रेन स्टेशनों और मेट्रो में सेफ स्पेस बनाए जा रहे हैं, ताकि अगर कभी हमला हो तो नागरिक सुरक्षित रह सकें.
मानसिक और मेडिकल तैयारी: युद्ध के मानसिक प्रभाव से निपटना
ताइवान केवल शारीरिक सुरक्षा पर ही नहीं, बल्कि मानसिक तैयारियों पर भी जोर दे रहा है. ताइवान अपने नागरिकों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए मेडिकल इमरजेंसी, रेस्क्यू सिस्टम और ट्रॉमा थैरेपी जैसे पहलुओं पर काम कर रहा है. ताइवान के विशेषज्ञ अब इजराइल में जाकर सीख रहे हैं कि जंग जैसी परिस्थितियों में सामान्य लोग मानसिक रूप से कैसे शांत और तैयार रह सकते हैं.
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