कितने दिन टिकेगा इजरायल-ईरान का युद्धविराम? सिलसिलेवार धमाकों से बढ़ी टेंशन, मोसाद के हाथों में जंग की चाबी!

    इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद की सक्रियता की रिपोर्टें सामने आ रही हैं, जिससे यह संभावना जताई जा रही है कि युद्धविराम के बावजूद तनाव और संघर्ष में वृद्धि हो सकती है.

    Israel-Iran ceasefire series of explosions Mossad
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    तेहरानः जून 2025 में ईरान और इजरायल के बीच हुई भीषण 12 दिनों की जंग ने दोनों देशों को भारी नुकसान पहुंचाया. इस संघर्ष के बाद, अमेरिका और कतर के हस्तक्षेप से एक नाजुक युद्धविराम स्थापित हुआ है, लेकिन स्थायी शांति की कोई स्पष्ट संभावना नहीं दिखती. हालात ज्यों के त्यों बने हुए हैं, और इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद की सक्रियता की रिपोर्टें सामने आ रही हैं, जिससे यह संभावना जताई जा रही है कि युद्धविराम के बावजूद तनाव और संघर्ष में वृद्धि हो सकती है.

    युद्धविराम के बाद विस्फोटों का सिलसिला

    24 जून को हुए युद्धविराम के बाद ईरान के विभिन्न शहरों में विस्फोटों की एक श्रृंखला शुरू हो गई है. 14 जुलाई को कोम शहर के पास एक विस्फोट हुआ, जिसमें कई लोग घायल हो गए. इसे गैस रिसाव का परिणाम बताया गया, लेकिन कुछ अन्य शहरों—जैसे तेहरान और करज में—भी इसी तरह की घटनाएँ हुईं. इन घटनाओं ने साजिश की संभावना को और मजबूत किया है. इजरायली मीडिया की रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि मोसाद अब भी ईरान में सक्रिय है और इन विस्फोटों के पीछे उसकी कोई भूमिका हो सकती है.

    विशेषज्ञों के मुताबिक ये घटनाएं संयोग नहीं

    इजरायली मीडिया आउटलेट वायनेट के अनुसार, ईरानी राजनीतिक विश्लेषक नीमा बहेली का मानना है कि ये विस्फोट तकनीकी खराबियों का नतीजा नहीं हैं, बल्कि एक सुनियोजित पैटर्न का हिस्सा हैं. उनका कहना है कि इन घटनाओं को संयोग नहीं माना जा सकता, क्योंकि ये लगातार हो रही हैं और शासन इस पर चुप है. उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अफगानिस्तान से ईरान में काम करने आए प्रवासियों को हाल के समय में निष्कासित किया गया है, और इनमें से कई ऐसे संवेदनशील स्थानों पर कार्यरत थे, जिनसे जानकारी लीक होने का खतरा था.

    मोसाद की भूमिका की आशंका

    नीमा बहेली ने आगे कहा, "ईरान के शासन को शक है कि अफगान समुदाय के कुछ लोग इजरायल को संवेदनशील जानकारी दे रहे थे." वह यह भी मानते हैं कि अब जो कुछ हो रहा है, वह विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ कम और बदले की भावना से ज्यादा संबंधित है. इन प्रवासियों को हिंसक तरीके से बाहर निकाला गया और उनके अधिकार छीन लिए गए, जो ईरान के शासन के गुस्से और नाराजगी को दिखाता है.

    इजरायली खुफिया संचालन का संकेत

    मोशे दयान सेंटर फॉर मिडिल ईस्टर्न एंड अफ्रीकन स्टडीज के डॉक्टर एयटन कोहेन ने कहा कि ईरान में हुए हालिया हमले इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के ऑपरेशनों का संकेत देते हैं. उन्होंने कहा, "ईरान में किए गए हमले ऐसे संवेदनशील स्थानों को निशाना बना रहे हैं, जो मोसाद की कार्यप्रणाली से मेल खाते हैं." उनका यह भी कहना था कि इजरायल ने ईरान को कमजोर करने के लिए अपने खुफिया संचालन को बनाए रखा है और अब भी वह इसे जारी रखे हुए है.

    कोहेन के अनुसार, मोसाद के इन ऑपरेशनों का इजरायल की दीर्घकालिक खुफिया नीति से गहरा संबंध है. ये ऑपरेशंस यह साबित करते हैं कि इजरायल सिर्फ हवाई हमलों पर निर्भर नहीं है, बल्कि वह जमीनी स्तर पर भी अपने दुश्मनों को कमजोर करने के लिए सक्रिय रहता है. इसके साथ ही, वह ईरान पर दबाव बनाए रखता है ताकि किसी प्रकार के सैन्य संघर्ष से बचा जा सके.

    संघर्ष के बावजूद इजरायल की तैयारी

    युद्धविराम के बाद भी, इजरायल पर दबाव बना हुआ है. उदाहरण के लिए, हूती विद्रोहियों ने इजरायल पर मिसाइल हमले जारी रखे हैं. इससे यह स्पष्ट होता है कि इजरायल अपनी सैन्य रणनीतियों को निरंतर परिष्कृत कर रहा है और नए खतरों से निपटने के लिए तैयार है. यह दिखाता है कि इजरायल अब केवल रक्षा के मोर्चे पर नहीं, बल्कि आक्रामक खुफिया मिशनों में भी अपनी स्थिति मजबूत करने के प्रयासों में जुटा हुआ है.

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