भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ाने को लेकर जब भी मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) कार्यक्रम की बात होती है, तो राफेल का नाम सबसे आगे दिखाई देता है. 114 नए लड़ाकू विमानों की संभावित खरीद में राफेल को प्राथमिकता दिए जाने की वजह सिर्फ इसकी तकनीकी क्षमता नहीं, बल्कि वह भरोसा है जो यह विमान पहले से भारतीय वायुसेना के भीतर बना चुका है.
मौजूदा हालात में, जब स्क्वाड्रन संख्या एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, वायुसेना ऐसे प्लेटफॉर्म को तरजीह दे रही है जो तुरंत तैनात किया जा सके और जिसमें जोखिम न्यूनतम हो.
पहले से ऑपरेशनल होना बना सबसे बड़ा प्लस पॉइंट
राफेल पहले ही भारतीय वायुसेना में शामिल है और सीमावर्ती इलाकों में इसकी तैनाती हो चुकी है. इसका सीधा फायदा यह है कि पायलट प्रशिक्षण, मेंटनेंस सिस्टम और हथियारों का पूरा ढांचा पहले से मौजूद है. किसी नए फाइटर जेट को शामिल करने पर जहां सालों का समय और भारी लॉजिस्टिक तैयारी लगती है, वहीं राफेल के मामले में यह जरूरत नहीं पड़ती. यही कारण है कि वायुसेना इसे कम जोखिम और उच्च तत्परता वाला विकल्प मान रही है.
स्क्वाड्रन की कमी के बीच त्वरित समाधान की तलाश
भारतीय वायुसेना लंबे समय से स्वीकृत स्क्वाड्रन संख्या से कम विमानों के साथ काम कर रही है. ऐसे में वायुसेना को ऐसे फाइटर की जरूरत है जो लंबी प्रक्रिया में न फंसे और जल्दी सेवा में आ सके. राफेल इस जरूरत को पूरा करता है क्योंकि इसका उत्पादन, सप्लाई चेन और इंटीग्रेशन पहले से तय ढांचे पर आधारित है. यही वजह है कि MRFA की समय-संवेदनशील जरूरतों में राफेल एक व्यावहारिक समाधान के रूप में देखा जा रहा है.
G2G डील क्यों मानी जा रही है ज्यादा कारगर
राफेल के लिए सरकार-से-सरकार यानी G2G समझौते का रास्ता इसलिए ज्यादा आसान माना जा रहा है क्योंकि पहले हुए सौदे में कीमतों और शर्तों का ढांचा पहले से तय है. इससे नई कमर्शियल बोली प्रक्रिया में लगने वाला समय और अनिश्चितता दोनों कम हो जाती हैं. रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह मॉडल वायुसेना की तात्कालिक जरूरतों के अनुरूप तेज डिलीवरी सुनिश्चित कर सकता है.
फ्रांस के साथ रणनीतिक साझेदारी को बल
भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सहयोग बीते वर्षों में लगातार मजबूत हुआ है. दोनों देशों के बीच चल रही कूटनीतिक और औद्योगिक बातचीत इस ओर इशारा करती है कि राफेल सौदा सिर्फ खरीद तक सीमित नहीं रहेगा. यदि भारतीय वायुसेना के 114 राफेल और नौसेना के 26 राफेल-एम को जोड़ा जाए, तो यह इतना बड़ा ऑर्डर बनता है कि भारत में पूर्ण असेंबली लाइन स्थापित करना रणनीतिक और आर्थिक रूप से संभव हो सकता है.
F4 और F5 वैरिएंट पर नजर
रक्षा हलकों में यह चर्चा भी है कि भारत राफेल के उन्नत F4 वैरिएंट को मुख्य विकल्प और भविष्य में F5 वैरिएंट को संभावित अपग्रेड के रूप में देख सकता है. इन वैरिएंट्स में बेहतर सेंसर, एडवांस नेटवर्किंग और आधुनिक हथियार प्रणाली शामिल होने की संभावना है. इससे यह साफ संकेत मिलता है कि भारत केवल मौजूदा जरूरतें ही नहीं, बल्कि आने वाले दशकों की वायु युद्ध क्षमताओं को भी ध्यान में रखकर फैसला लेना चाहता है.
राफेल कार्यक्रम भारत के मेक-इन-इंडिया लक्ष्य से भी जुड़ता नजर आ रहा है. विमान के कुछ ढांचागत हिस्सों का निर्माण पहले से भारत में किया जा रहा है, जो पारंपरिक ऑफसेट से आगे बढ़कर असली एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग की दिशा में कदम है. इसके साथ ही भारत में इंजन मेंटनेंस और ओवरहॉल सुविधाएं विकसित होने से देश क्षेत्रीय सपोर्ट हब के रूप में उभर सकता है.
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