भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान एक दिलचस्प लेकिन चौंकाने वाला घटनाक्रम सामने आया — तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया. इस पर भारत में काफी नाराज़गी देखी गई. ज़्यादातर लोगों का मानना है कि तुर्की का पाकिस्तान की तरफ झुकाव महज़ धार्मिक कारणों से है. लेकिन हकीकत इससे कहीं ज़्यादा गहरी और रणनीतिक है.
तुर्की की बड़ी सोच: सिर्फ उम्मा नहीं, सामरिक विस्तार
तुर्की का पाकिस्तान को समर्थन केवल इस्लामी 'उम्मा' की एकता का प्रतीक नहीं है, बल्कि उसकी एक बड़ी भू-राजनीतिक योजना का हिस्सा है. तुर्की अब खुद को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है — और इसका अगला टारगेट है हिंद महासागर क्षेत्र. वह इस इलाके में चीन और अमेरिका जैसी स्थायी मौजूदगी चाहता है.
दशकों पुरानी दोस्ती, अब एक नई दिशा में
तुर्की और पाकिस्तान के रिश्ते नए नहीं हैं. दोनों पिछले 40 वर्षों से न सिर्फ मित्र हैं, बल्कि सामरिक सहयोगी भी हैं. वहीं, भारत और तुर्की के बीच सामान्य संबंध रहे हैं, लेकिन कश्मीर मुद्दे पर तुर्की की स्पष्ट पाकिस्तान-समर्थक भाषा ने इन रिश्तों में खटास बढ़ा दी है. यह भी समझना ज़रूरी है कि कश्मीर को लेकर तुर्की का रवैया उसकी हिंद महासागर नीति से जुड़ा हुआ है.
हिंद महासागर में सभी की नजर, तुर्की की भी
हिंद महासागर आज दुनिया की सबसे रणनीतिक जगहों में से एक है. अमेरिका के पास डिएगो गार्सिया जैसे बेस हैं, चीन ग्वादर और हम्बनटोटा के जरिए दबाव बना रहा है, और फ्रांस रीयूनियन द्वीप पर अपनी मौजूदगी बनाए हुए है. तुर्की अब इस दौड़ में शामिल होने की कोशिश कर रहा है, और उसने मालदीव को इस रणनीति का गेटवे बना लिया है.
मालदीव: तुर्की की घुसपैठ की पहली सीढ़ी
तुर्की ने मालदीव से संबंध गहराने के लिए बहुत से कदम उठाए हैं. राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का पहला विदेश दौरा तुर्की का ही था. तुर्की ने मालदीव को भारत द्वारा गिफ्ट किए गए विमानों के बदले ड्रोन और एक मिसाइल-लांचर युद्धपोत दिया. इतना ही नहीं, मालदीव को एक साल का खाद्य आपूर्ति पैकेज देने की पेशकश भी की, जिससे उसे भारत की जरूरत न पड़े.
पर तुर्की की रणनीति पर भारत चुप नहीं
भारत जानता है कि हिंद महासागर की यह जंग सिर्फ बंदरगाहों या सैन्य अड्डों की नहीं है, बल्कि डिप्लोमेसी, रणनीतिक साझेदारी और विश्वास की लड़ाई है. यही वजह है कि भारत ने 'बहिष्कार मालदीव' जैसे भावनात्मक नारों से दूरी बनाई और मालदीव के साथ अपने संबंधों को फिर से सामान्य करने में सफलता पाई.
तुर्की: नाटो का सदस्य, पर मुस्लिम पहचान का झंडाबरदार
तुर्की एक अनोखे स्थान पर खड़ा है — वो भौगोलिक रूप से यूरोप और एशिया के बीच बसा है, नाटो का सदस्य है, लेकिन इस्लामी पहचान रखता है. उसकी राजनीति में राष्ट्रवाद और नया ऑटोमन विचार गहराता जा रहा है. राष्ट्रपति एर्दोगन की 'विजन 2023' और '2053 विजय योजना' उसी विस्तारवादी सोच को दर्शाती है, जिसमें हिंद महासागर भी एक अहम हिस्सा बन गया है.
CENTO से लेकर तुर्किए तक: रणनीति बदली, उद्देश्य वही
अतीत में तुर्की अमेरिका-समर्थित सैन्य गठबंधन CENTO का हिस्सा था और पाकिस्तान के साथ मिलकर रक्षा सहयोग को मज़बूत किया था. अब वही रणनीति तुर्किए (तुर्की का नया नाम) के तहत और आक्रामक रूप में लौट रही है — लेकिन इस बार लक्ष्य है समुद्रों में सत्ता.
सिर्फ धर्म के चश्मे से नहीं देखना चाहिए तुर्की को
विशेषज्ञ एन साथिया मूर्ति चेतावनी देते हैं कि भारत को तुर्की को केवल इस्लामी नज़रिए से देखना एक बड़ी भूल होगी. तुर्की अब एक भू-राजनीतिक खिलाड़ी है जो IOR में पैर जमाना चाहता है. उसे रोकने के लिए भारत को सामरिक, कूटनीतिक और रणनीतिक मोर्चों पर तैयार रहना होगा.
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