दुनिया में जब भी दो देशों के बीच युद्ध होता है, उसकी आंच अक्सर कहीं और भी पहुंचती है. इजराइल और ईरान के बीच हाल ही में खत्म हुए 12 दिनों के भीषण युद्ध ने एक ऐसी खामोश लेकिन गहरी चोट दी है, जो सीधे यूक्रेन तक जा पहुंची है.
इस संघर्ष में इजराइल का एयर डिफेंस सिस्टम बुरी तरह प्रभावित हुआ. इसके तुरंत बाद अमेरिका हरकत में आ गया और इजराइल को फिर से खड़ा करने के लिए बम गाइडेंस किट समेत करीब 510 मिलियन डॉलर की सैन्य सहायता मंजूर कर दी. अमेरिका ने यह भी कहा कि वह इजराइल के एयर डिफेंस की मरम्मत में भी मदद करेगा. लेकिन इस मदद का असर किस पर पड़ा? यूक्रेन पर.
अमेरिका की प्राथमिकता: अब किसे बचाए, किसे छोड़े?
‘पोलिटिको’ की रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका के सैन्य गोदाम अब खाली होते जा रहे हैं. पेंटागन ने यूक्रेन को जरूरी एयर डिफेंस मिसाइलें और पिन-पॉइंट हथियार देना फिलहाल रोक दिया है. इस समय अमेरिका के पास दो मोर्चे हैं – इजराइल और यूक्रेन. लेकिन उसके पास इतना सैन्य स्टॉक नहीं है कि दोनों को एक साथ पूरी ताकत से मदद दे सके. ऐसे में अमेरिका अब धीरे-धीरे इजराइल की तरफ झुक रहा है.
पूर्व पेंटागन नीति प्रमुख एलब्रिज कोल्बी के अनुसार, अमेरिका का सैन्य भंडार कई अहम हथियारों के मामले में निचले स्तर पर आ गया है. खासकर पैट्रियट इंटरसेप्टर मिसाइल, हेलफायर मिसाइल और आधुनिक आर्टिलरी गोले अब अमेरिकी भंडार में बेहद सीमित हैं. कोल्बी ने साफ कहा, "अमेरिका के लिए सबसे पहले उसके अपने हित हैं. हमारी ताकत पर कोई सवाल नहीं उठ सकता, बस ईरान से पूछ लीजिए.”
यूक्रेन के सामने अब और बड़ा संकट
यूक्रेन वैसे ही पिछले एक साल से लगातार रूसी हवाई हमलों का सामना कर रहा है. अमेरिका से जो एयर डिफेंस की मदद यूक्रेन को मिलती थी, उसमें अब धीरे-धीरे कटौती हो रही है. डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद यूक्रेन के लिए पहले से ही हालात मुश्किल हो गए हैं. ट्रंप प्रशासन की नीति साफ दिख रही है कि अमेरिका अब इजराइल को प्राथमिकता दे रहा है और यूक्रेन की सहायता सीमित कर रहा है. इसका सीधा मतलब है – यूक्रेन अब पूरी तरह यूरोपीय देशों की मदद पर निर्भर हो जाएगा. अगर समय रहते यह सहयोग पर्याप्त नहीं मिला, तो यूक्रेन में हताहतों की संख्या बढ़ना तय है.
अमेरिका का असली गणित
इस पूरी रणनीति के पीछे अमेरिका की सोच बेहद व्यावहारिक है. अमेरिका अपने हथियारों का भंडार तेजी से खत्म नहीं करना चाहता, क्योंकि उसकी अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा प्राथमिकताएं हैं. अब अमेरिका के सामने विकल्प कम हैं – या तो वो इजराइल का एयर डिफेंस बचाए या यूक्रेन को पूरा समर्थन दे. फिलहाल, संकेत यही मिल रहे हैं कि अमेरिका इजराइल को पहले चुन चुका है.
क्यों महत्वपूर्ण है यह स्थिति?
इजराइल और ईरान के युद्ध में अमेरिका की यह भूमिका सिर्फ सैन्य समर्थन की नहीं है, यह उसकी विदेश नीति का नया चेहरा भी दिखाता है. अमेरिका अब साफ तौर पर बता रहा है कि उसके लिए प्राथमिकता क्या है. यूक्रेन के लिए यह संकेत बेहद खतरनाक है. अगर रूस के हमले इसी तरह जारी रहे और अमेरिका की सैन्य मदद कमजोर होती रही, तो यूक्रेन की सुरक्षा दीवार धीरे-धीरे दरक सकती है. इस युद्ध की सबसे बड़ी विडंबना यही है – जहां एक देश अपने एयर डिफेंस को मजबूत करने के लिए खड़ा हो रहा है, वहीं दूसरा देश अब अपने बचाव के लिए नई राहें तलाशने को मजबूर हो गया है.
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