अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में व्हाइट हाउस में अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच ऐतिहासिक शांति समझौता करवाया. इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव और आर्मेनियाई प्रधानमंत्री निकोल पशिनियन ने ट्रंप की सराहना करते हुए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की अपील तक कर दी. लेकिन इस शांति पहल का एक हिस्सा ऐसा है, जिसने ईरान को नाराज़ कर दिया है—‘जांगेजुर कॉरिडोर’.
समझौते के तहत अजरबैजान से आर्मेनिया के रास्ते एक नए कॉरिडोर के निर्माण का फैसला हुआ है, जिसे अमेरिका तैयार करेगा. यह कॉरिडोर अजरबैजान को उसके नकचिवान एन्क्लेव से सीधे जोड़ देगा. फिलहाल, इस रूट पर ईरान का भौगोलिक और रणनीतिक महत्व काफी ज्यादा है, लेकिन नया कॉरिडोर बनने से उसकी अहमियत घट सकती है. ईरान का मानना है कि यह परियोजना दक्षिणी कॉकस में अमेरिकी प्रभाव और नाटो की सैन्य मौजूदगी को उसकी उत्तरी सीमाओं तक ले आएगी. इससे न केवल ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा होगा, बल्कि उसके व्यापार और ट्रांजिट रूट्स पर भी असर पड़ेगा.
ईरान की सख्त चेतावनी
ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह सैयद अली खामेनेई के वरिष्ठ सलाहकार अली अकबर वेलायती ने खुलकर कहा कि उनका देश इस अमेरिकी-नियंत्रित परिवहन और ऊर्जा कॉरिडोर का विरोध करेगा. तस्नीम न्यूज़ एजेंसी से बातचीत में वेलायती ने कहा “यह तथाकथित जांगेजुर कॉरिडोर दक्षिणी कॉकस की स्थिरता के लिए गंभीर खतरा है... रूस के साथ या उसके बिना भी, ईरान क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए कदम उठाएगा.” वेलायती, जो 1981 से 1997 तक ईरान के विदेश मंत्री रहे हैं, का कहना है कि रूस भी इस योजना का रणनीतिक रूप से विरोध कर रहा है. उनका आरोप है कि इस प्रोजेक्ट के पीछे आर्मेनिया को कमजोर करने और वहां नाटो की सैन्य मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश है.
भू-राजनीतिक समीकरणों में बदलाव
अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच दशकों पुरानी तनातनी में यह कॉरिडोर एक नया मोड़ ला सकता है. जहां अमेरिका और उसके सहयोगी इसे क्षेत्रीय संपर्क और आर्थिक विकास का साधन मानते हैं, वहीं ईरान इसे अपने प्रभाव क्षेत्र और सुरक्षा के लिए सीधा खतरा देख रहा है. आने वाले समय में यह प्रोजेक्ट दक्षिणी कॉकस में शक्ति संतुलन को बदल सकता है.
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