दुनिया की 'ट्रेड लाइफलाइन' मलक्का स्ट्रेट में इंडियन नेवी करेगी पेट्रोल‍िंग, चीन को घेरने की तैयारी?

    भारत ने समुद्री ताकत और रणनीतिक सोच के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अब मलक्का स्ट्रेट में नौसैनिक पेट्रोलिंग की तैयारी कर ली है.

    Indian Navy will do patrolling in Malacca Strait
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    अब वो दौर आ गया है जिसका कभी केवल अनुमान लगाया जाता था. भारत ने समुद्री ताकत और रणनीतिक सोच के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अब मलक्का स्ट्रेट में नौसैनिक पेट्रोलिंग की तैयारी कर ली है. यह वही इलाका है जिसे दुनिया की सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण समुद्री रेखा कहा जाता है.

    इस फैसले से भारत ने न केवल अपनी रणनीतिक सोच को स्पष्ट किया है, बल्कि यह भी दिखा दिया है कि वह हिंद महासागर से आगे बढ़कर अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी प्रमुख भूमिका निभाने को तैयार है. खास बात यह है कि इस पहल का सिंगापुर ने खुले दिल से स्वागत किया है.

    क्या है मलक्का स्ट्रेट, और क्यों है ये इतना अहम?

    मलक्का स्ट्रेट एक संकरा लेकिन बेहद अहम समुद्री रास्ता है, जो हिंद महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ता है. यह मार्ग मलेशिया और इंडोनेशिया के बीच से होकर गुजरता है और इसे दुनिया की 'सी-लाइन ऑफ कम्युनिकेशन' या समुद्री धमनी भी कहा जाता है.

    यह क्षेत्र इतना महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि दुनिया का लगभग 40% समुद्री व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति विशेषकर तेल और गैस इसी मार्ग से होकर गुजरती है. भारत का भी लगभग 80% कच्चा तेल और गैस इसी रास्ते से आता है.

    चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे ऊर्जा पर निर्भर देशों के लिए मलक्का स्ट्रेट किसी जीवनरेखा से कम नहीं है. लेकिन इसी के साथ यह क्षेत्र कई सुरक्षा जोखिमों से भी घिरा हुआ है, जैसे:

    • समुद्री लूट (पाइरेसी)
    • हथियारों की तस्करी
    • आतंकवाद
    • ड्रग्स की तस्करी

    इन्हीं कारणों से इसे एक "चोक पॉइंट" भी कहा जाता है. अगर यहां कोई रुकावट आती है तो इसका असर सीधे-सीधे वैश्विक व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति पर पड़ता है.

    भारत का ऐतिहासिक कदम, क्यों है यह बड़ा फैसला?

    भारत ने अब आधिकारिक रूप से घोषणा कर दी है कि उसकी नौसेना मलक्का स्ट्रेट में पेट्रोलिंग करेगी. ये सिर्फ एक सुरक्षा ऑपरेशन नहीं है, बल्कि इससे भारत की भू-राजनीतिक पकड़ और स्ट्रैटेजिक पहुंच का दायरा भी बहुत बड़ा हो जाएगा.

    पहले तक इस तरह की गश्त इस क्षेत्र के मूल देशों मलेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर तक सीमित थी. लेकिन अब भारत का इसमें जुड़ना कई मायनों में एक बड़ा और ऐतिहासिक बदलाव है.

    'सागर' से लेकर 'हिंद-प्रशांत' तक भारत

    भारत ने पिछले कुछ वर्षों में समुद्री क्षेत्र में अपनी भूमिका को लगातार मजबूत किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'SAGAR' नीति (Security and Growth for All in the Region) के तहत भारत ने:

    • मालदीव, श्रीलंका, मॉरीशस और सेशेल्स जैसे देशों को समुद्री सुरक्षा मुहैया कराई
    • क्वाड (Quad) देशों अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संतुलन और स्थिरता बनाए रखने की दिशा में कदम बढ़ाया
    • अपने समुद्री संसाधनों की रक्षा के साथ-साथ वैश्विक व्यापार मार्गों की सुरक्षा को भी प्राथमिकता दी

    अब मलक्का स्ट्रेट में भारत की मौजूदगी यह दिखाती है कि नई दिल्ली अब सिर्फ हिंद महासागर की नहीं, बल्कि पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की प्रमुख समुद्री ताकत बन रही है.

    चीन के लिए क्यों है चिंता की बात?

    चीन के लिए मलक्का स्ट्रेट एक बेहद संवेदनशील क्षेत्र है. उसका लगभग 80% तेल और गैस इस रास्ते से गुजरता है. अगर किसी कारणवश इस मार्ग में रुकावट आती है, तो चीन की ऊर्जा आपूर्ति और आर्थिक मशीनरी दोनों प्रभावित हो सकते हैं.

    यही कारण है कि चीन के सामरिक विशेषज्ञ इसे "मलक्का डिलेमा" कहते हैं, यानी अगर यह रास्ता बाधित हो गया, तो चीन की धड़कन थम सकती है.

    भारत अब इस चोक पॉइंट पर सक्रिय हो रहा है. इसका मतलब है कि भविष्य में किसी भी संकट की स्थिति में भारत चीन की आपूर्ति शृंखला को नियंत्रित करने में सक्षम हो सकता है. इससे न केवल भारत को रणनीतिक बढ़त मिलेगी, बल्कि चीन को भी संतुलन बनाए रखने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

    सिंगापुर का साथ, भारत के लिए कूटनीतिक जीत

    मलक्का स्ट्रेट की सुरक्षा में सिंगापुर की भूमिका बेहद अहम रही है. उसकी नौसेना इस क्षेत्र की सबसे सक्षम और तकनीकी रूप से उन्नत ताकतों में गिनी जाती है.

    जब भारत ने मलक्का में पेट्रोलिंग की बात कही, तो सिंगापुर ने इसका खुले दिल से समर्थन किया. उसका कहना है कि भारत की भागीदारी से इस क्षेत्र की सुरक्षा को और मजबूती मिलेगी.

    यह समर्थन भारत के लिए केवल सैन्य सहयोग नहीं, बल्कि एक बड़ी कूटनीतिक जीत है. क्योंकि:

    • सिंगापुर का प्रभाव ASEAN देशों में काफी मजबूत है
    • उसकी स्वीकृति से भारत की भूमिका को क्षेत्रीय समर्थन मिल जाता है
    • इससे चीन पर कूटनीतिक दबाव भी बढ़ता है

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