अफगानिस्तान में मिला भारत में बना मशीन गन, तालिबानी पुलिस ने किया जब्त, पाकिस्तान की बढ़ेगी चिंता?

    अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत से एक ऐसा घटनाक्रम सामने आया है, जिसने दक्षिण एशिया की पहले से जटिल भू-राजनीतिक स्थिति में एक नया मोड़ ला दिया है.

    Indian made machine gun found in Afghanistan
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- X

    काबुल: अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत से एक ऐसा घटनाक्रम सामने आया है, जिसने दक्षिण एशिया की पहले से जटिल भू-राजनीतिक स्थिति में एक नया मोड़ ला दिया है. तालिबान नियंत्रित पक्तिका पुलिस ने पहली बार एक ‘मेड इन इंडिया’ मशीन गन जब्त करने का दावा किया है, जिससे पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों में हलचल तेज हो गई है.

    तालिबान की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि भारत निर्मित ‘पिका’ (PKM) मशीन गन को माता खान ज़िले में एक छापेमारी के दौरान जब्त किया गया. यह इलाका पाकिस्तान की सरहद से सटा हुआ है, और इस तथ्य ने इस पूरे मामले को और अधिक संवेदनशील बना दिया है.

    PKM: सोवियत डिज़ाइन, भारतीय निर्माण

    बरामद किया गया हथियार मूलतः सोवियत संघ की डिजाइन की गई PK (Pulemyot Kalashnikova) सामान्य-उद्देश्य मशीन गन है, जिसे भारत में आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB), तिरुचिरापल्ली में लाइसेंस के तहत निर्मित किया जाता है. यह गन 7.62×54mmR बेल्ट-फेड कारतूस का इस्तेमाल करती है और भारतीय सशस्त्र बलों में दशकों से फ्रंटलाइन हथियार के रूप में उपयोग की जाती रही है.

    भारतीय निर्माण वाली PKM गनों का उपयोग आमतौर पर पैदल सेना, बख्तरबंद वाहनों, और सैन्य चौकियों पर रक्षात्मक फायर सपोर्ट के रूप में होता है.

    हथियार की मौजूदगी या पहुंच:

    हालांकि तालिबान सुरक्षा अधिकारियों ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि यह हथियार किस समूह या व्यक्ति के पास था, लेकिन यह सवाल अत्यंत महत्वपूर्ण है:

    • भारत निर्मित हथियार अफगानिस्तान में कैसे पहुंचा?
    • क्या यह किसी गैर-राज्यीय नेटवर्क के जरिए तस्करी के माध्यम से पहुंचा?
    • या क्या यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सैन्य समर्थन का संकेत हो सकता है?

    तालिबान अधिकारियों का यह भी कहना है कि इससे पहले जिरूक जिले से भी हथियार बरामद हुए थे, लेकिन तब उनके स्रोतों पर चुप्पी साधी गई थी.

    क्या है पाकिस्तान की रणनीतिक चिंता?

    भारत निर्मित हथियार का पाकिस्तान से लगे अफगान सीमावर्ती क्षेत्र में बरामद होना एक ऐसी सूचना है, जो पाकिस्तानी खुफिया और सैन्य प्रतिष्ठान के लिए एक रणनीतिक चेतावनी के रूप में देखी जा रही है.

    विशेषकर ऐसे समय में जब पाकिस्तान और भारत, दोनों काबुल में तालिबान प्रशासन के साथ अपने-अपने राजनयिक संपर्कों को तेज कर रहे हैं, यह घटनाक्रम भू-राजनीतिक तनाव को और बढ़ा सकता है.

    पाकिस्तान ने हाल ही में काबुल में अपने राजनयिक मिशन को 'चार्ज डी अफेयर्स' से राजदूत स्तर तक बढ़ाया है, जबकि भारत ने चार वर्षों के अंतराल के बाद अफगान नागरिकों को वीज़ा जारी करना फिर से शुरू किया है.

    क्या यह रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का संकेत है?

    भारत और पाकिस्तान, दोनों की अफगान रणनीति अब तेजी से स्पष्ट होती जा रही है:

    • भारत मानवीय सहायता और विकास परियोजनाओं के जरिए 'सॉफ्ट पावर' को आगे बढ़ा रहा है.
    • पाकिस्तान तालिबान से सांस्कृतिक, राजनीतिक और रणनीतिक नजदीकियों का लाभ उठाकर 'सुरक्षा गारंटर' की भूमिका निभाना चाहता है.

    इसी पृष्ठभूमि में यह घटना- एक भारतीय हथियार की अफगान सरजमीं पर मौजूदगी, सीमित सैन्य उपस्थिति या इन्फिल्ट्रेशन नेटवर्क की आशंका को जन्म दे सकती है, खासकर जब यह स्पष्ट न हो कि हथियार किस पक्ष या किन उद्देश्यों से इस्तेमाल किया जा रहा था.

    हालिया घटनाएं संयोग नहीं, संकेत हैं!

    पिछले कुछ हफ्तों में:

    • कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने काबुल का दौरा किया.
    • तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी से पाकिस्तान और चीन, दोनों के उच्च स्तरीय अधिकारी मिल चुके हैं.
    • भारत भी धीरे-धीरे अफगानिस्तान में अपने मानवीय व वाणिज्यिक हितों को फिर से स्थापित कर रहा है.

    इस घटनाक्रम को यदि इन प्रवृत्तियों के साथ जोड़कर देखा जाए, तो यह स्पष्ट है कि अफगानिस्तान एक बार फिर भारत-पाकिस्तान की छाया युद्धभूमि बनता जा रहा है, भले ही दोनों देश प्रत्यक्ष सैन्य टकराव से बचते रहें.

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