भारतीय वायुसेना को फ्रांसीसी कंपनी देगी धोखा! राफेल डील में क्यों उठ रहे ये सवाल? जानिए पूरा मामला

भारत और फ्रांस के बीच 110 राफेल फाइटर जेट्स की एक बड़ी डिफेंस डील लगभग तय हो चुकी है.

Indian Air Force Rafale deal
प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

नई दिल्लीः भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान बेड़े को मजबूत करने की तैयारी जोरों पर है. इसी कड़ी में भारत और फ्रांस के बीच 110 राफेल फाइटर जेट्स की एक बड़ी डिफेंस डील लगभग तय हो चुकी है. यह सौदा सीधे सरकार से सरकार (G2G) फॉर्मेट में किया जाएगा, जिससे बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी और डील में पारदर्शिता बनी रहेगी.

लेकिन, सवाल ये है कि क्या राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन भारत को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और आत्मनिर्भरता का सपना दिखाकर कहीं सिर्फ एक असेंबली प्लांट बना रही है?

क्या है इस नई डील की खासियत?

  • डील G2G मॉडल में होगी, जैसे 2016 की 36 राफेल विमानों की डील हुई थी.
  • डील के तहत भारत को 110 नए राफेल फाइटर जेट्स मिलेंगे, जो भारतीय वायुसेना की ताकत को जबरदस्त बढ़ावा देंगे.
  • इस समय वायुसेना के पास 36 राफेल हैं और स्क्वाड्रन की संख्या 31 के आसपास है, जबकि आवश्यकता 42 स्क्वाड्रन की है.
  • चीन के J-20 और पाकिस्तान के JF-17 जैसे खतरों के जवाब में ये फाइटर जेट्स बेहद जरूरी हो गए हैं.

DRAL: असेंबली प्लांट या आत्मनिर्भर भारत का प्लेटफॉर्म?

राफेल बनाने वाली कंपनी डसॉल्ट एविएशन, भारत में अपनी संयुक्त कंपनी DRAL (Dassault Reliance Aerospace Limited) में अब 100% हिस्सेदारी लेने जा रही है. यानी ये कंपनी अब पूरी तरह से डसॉल्ट के नियंत्रण में होगी.

डसॉल्ट का दावा है कि DRAL सिर्फ एक असेंबली यूनिट नहीं रहेगा, बल्कि

  • भारत में ही राफेल जेट्स का उत्पादन,
  • उनके कॉम्पोनेंट्स की मैन्युफैक्चरिंग,
  • और सर्विसिंग व अपग्रेडिंग भी यहीं होगी.
  • इससे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ को बूस्ट मिलेगा.

लेकिन कहां है टेक्नोलॉजी ट्रांसफर?

भारतीय रक्षा मंत्रालय को इस डील में कुछ बड़े शक हैं:

  • DRAL कहीं सिर्फ फ्रांस से आए पुर्जों को जोड़ने वाला प्लांट बनकर न रह जाए.
  • राफेल में 40,000 से ज्यादा पुर्जे होते हैं, जिन्हें भारत में बनाना आसान नहीं है.
  • मंत्रालय चाहता है कि कम से कम 70-75% पार्ट्स भारत में ही बनें, लेकिन डसॉल्ट की क्षमता पर शक है.
  • टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की उम्मीद जितनी है, उतनी शायद मिले नहीं.
  • इसलिए डर ये है कि डसॉल्ट सारी अहम तकनीक अपने पास रखकर, भारत को सिर्फ स्क्रू ड्राइवर असेंबली में ही उलझा दे.

पिछली डील से क्या सीखा?

2013-14 में जब MRCA डील पर बात चल रही थी, तब डसॉल्ट ने HAL (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) की क्षमताओं पर सवाल उठाए थे और राफेल निर्माण से पीछे हट गया था. अब वो कह रहे हैं कि अगर DRAL का पूरा कंट्रोल उन्हें दिया जाए, तो

  • वो भारत में क्वालिटी राफेल जेट्स बनाएंगे,
  • हर महीने 2 जेट्स का उत्पादन करेंगे,
  • और भारत से राफेल निर्यात भी किया जा सकेगा.
  • लेकिन एक्सपर्ट्स को इस वादे पर भरोसा नहीं है, क्योंकि 2023 में डसॉल्ट फ्रांस में 15 की जगह सिर्फ 13 जेट्स ही बना सका.

भारत को क्या मिलेगा?

अगर सब कुछ योजना के मुताबिक चला, तो—

  • भारत को तकनीक में आत्मनिर्भरता मिलेगी,
  • भारत में एक मजबूत डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम खड़ा होगा,
  • L&T, महिंद्रा, गोदरेज, HAL जैसी भारतीय कंपनियों को बड़ा मौका मिलेगा,
  • और DRAL, भारत का स्थायी फाइटर जेट हब बन सकता है.

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