भारत और पाकिस्तान के बीच 10 मई को हुए युद्धविराम को लेकर जितना शांत माहौल सरहद पर देखने को मिला, उतनी ही गर्मागर्मी कूटनीतिक गलियारों में है. भले ही सीमाओं पर गोलियां थमी हों, लेकिन इस संघर्षविराम का श्रेय किसे दिया जाए — इस सवाल पर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में रस्साकशी जारी है.
जहां एक ओर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर इसे अपने प्रशासन की जीत बताया, वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस दावे का समर्थन करते हुए ट्रंप को खुलेआम धन्यवाद दे डाला. लेकिन, असली मोड़ तब आया जब इस घटनाक्रम में चीन की नाराज़गी सामने आई — क्योंकि पाकिस्तान ने इस बार अपने पुराने रणनीतिक साझेदार बीजिंग को दरकिनार कर सीधे वॉशिंगटन से संपर्क साधा.
भारत की स्थिति साफ: DGMO स्तर की बात से बनी सहमति
भारत ने इस पूरे प्रकरण को लेकर शुरू से ही साफ रुख अपनाया. भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने स्पष्ट किया कि यह युद्धविराम भारत और पाकिस्तान के DGMO (डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस) के बीच सीधी बातचीत का परिणाम था.
विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को यह भी साफ किया कि अमेरिका द्वारा कथित "ट्रेड प्रेशर" या व्यापारिक दबाव की कोई भूमिका इस मामले में नहीं रही. भारत ने साफ कहा कि अमेरिका से कोई व्यापारिक समझौता या शर्तें बातचीत का हिस्सा नहीं थीं.
मध्यस्थ की भूमिका छिनने से झल्लाया बीजिंग
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन इस बात से खफा है कि उसने खुद को वैश्विक शांति का मध्यस्थ साबित करने की योजना बनाई थी, लेकिन अमेरिका की अचानक हुई एंट्री ने उसका सारा खेल बिगाड़ दिया.
बीजिंग को इस बात का भी मलाल है कि संकट के समय पाकिस्तान ने पहले उसे नहीं, बल्कि अमेरिका को प्राथमिकता दी. जानकारी के मुताबिक, युद्धविराम के बाद इस्लामाबाद ने बीजिंग को फोन कर इस घटनाक्रम की जानकारी दी और सहयोग की मांग की.
चीन को मनाने की कोशिश, फिर ड्रोन गतिविधियों पर विराम
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि युद्धविराम के तुरंत बाद ही पाकिस्तान की ओर से सीमा पर ड्रोन गतिविधियों में तेजी आई. इसके बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया जिसमें चीनी विदेश मंत्री वांग यी और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच हुई बातचीत का जिक्र था.
इस पर भारत की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई, लेकिन कुछ ही समय बाद ड्रोन गतिविधियां बंद हो गईं, जिसे विशेषज्ञ पाकिस्तान की चीन को खुश करने की एक 'राजनीतिक सफाई' के रूप में देख रहे हैं.
शांति की कोशिश या रणनीतिक मोर्चेबंदी?
भले ही भारत-पाक युद्धविराम फिलहाल स्थिरता का संकेत दे रहा हो, लेकिन इसके पीछे की राजनीतिक चालें इस बात का संकेत हैं कि हर देश अपनी छवि, प्रभाव और हितों के लिए काम कर रहा है.
भारत का रुख स्पष्ट है — यह एक द्विपक्षीय मामला है और किसी तीसरे पक्ष की भूमिका न पहले थी, न अब है. लेकिन पाकिस्तान के दोमुंहे रुख और अमेरिका-चीन के बीच हो रही रस्साकशी यह दिखाती है कि दुनिया की बड़ी ताकतें इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं.
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