नई दिल्ली: जहां एक ओर चीन तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर विश्व का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध बनाने की तैयारी कर रहा है, वहीं भारत ने जवाबी रणनीति के तहत एक ऐसी योजना पर काम शुरू कर दिया है जो भू-राजनीतिक रूप से बेहद अहम और दूरगामी प्रभाव डालने वाली है. भारत का यह मेगा इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान सिर्फ सीमाओं को सुरक्षित करने की बात नहीं करता, बल्कि यह पूर्वोत्तर राज्यों की कनेक्टिविटी, आर्थिक ताकत और राष्ट्रीय सुरक्षा को एक नई ऊंचाई देने वाला प्रयास है.
इस रणनीति के केंद्र में है भारत का "रेल मिशन", जो 2030 तक पूर्वोत्तर भारत को देश के बाकी हिस्सों से पूरी तरह रेल नेटवर्क के माध्यम से जोड़ने का लक्ष्य रखता है. इसका उद्देश्य है न सिर्फ चीन को उसकी ‘हद’ दिखाना, बल्कि बांग्लादेश के साथ बदलते समीकरणों के बीच भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूत करना.
ब्रह्मपुत्र बांध: पड़ोसी देशों के लिए चिंता
तिब्बत में चीन द्वारा बनाए जा रहे इस विशाल बांध की लागत करीब 167.8 बिलियन डॉलर है और यह दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट माना जा रहा है. यह परियोजना यार्लुंग जांगबो नदी पर आधारित है, जो भारत में प्रवेश करने के बाद सियांग और फिर ब्रह्मपुत्र नदी बन जाती है.
इस डैम से चीन की केवल ऊर्जा जरूरतें ही नहीं पूरी होंगी, बल्कि इसके जरिए वह नीचे की ओर स्थित भारत और बांग्लादेश पर जल प्रवाह को नियंत्रित करने की स्थिति में भी आ जाएगा. यही वह बिंदु है जहां भारत की चिंता गहराती है — क्योंकि यह एक ‘जल कूटनीति’ का हिस्सा है, जो भविष्य के संघर्षों का आधार बन सकती है.
ब्रह्मपुत्र की असली शक्ति कहां है?
इसका सीधा मतलब है कि ब्रह्मपुत्र पर भारत का प्रभाव जल स्रोतों के लिहाज़ से अधिक है, जबकि चीन बांध बनाकर इस प्रभाव को सीमित करना चाहता है.
भारत का जवाब: रेल नेटवर्क के जरिए सुरक्षा
भारत ने चीन की इस हरकत का जवाब देने के लिए विकास और कनेक्टिविटी का हथियार चुना है. ‘विकास ही प्रतिरोध है’ की नीति के तहत भारत 2030 तक सभी सात पूर्वोत्तर राज्यों को रेल से जोड़ने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है.
यह योजना केवल विकास के नजरिए से नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम है, खासकर इसलिए क्योंकि पूर्वोत्तर भारत भारत के मुख्य भूभाग से केवल एक 22 किलोमीटर लंबी संकरी पट्टी – सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) के जरिए जुड़ा हुआ है.
चिकन नेक: भारत की जीवनरेखा, पर खतरे में
अगर यहां किसी भी तरह की गतिविधि हुई – चाहे वह आतंकी हो, सैन्य हो या प्राकृतिक आपदा – तो पूर्वोत्तर भारत देश से पूरी तरह कट सकता है.
बांग्लादेश के साथ चीन के बढ़ते रिश्ते और क्षेत्र में कट्टरपंथी ताकतों की बढ़ती मौजूदगी ने भारत को सतर्क कर दिया है. इसलिए, रेल संपर्क और वैकल्पिक मार्गों को तैयार करना अब केवल विकल्प नहीं, राष्ट्रीय अनिवार्यता बन चुका है.
बैराबी-सैरांग रेललाइन एक मिसाल
पूर्वोत्तर के विकास में रेलवे की भूमिका की एक शानदार मिसाल है मिजोरम की बैराबी-सैरांग रेललाइन.
इस तरह के निर्माण कार्य न केवल इंजीनियरिंग की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हैं, बल्कि यह बताते हैं कि भारत अब पूर्वोत्तर को सिर्फ सीमांत इलाका नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव का हिस्सा मानता है.
क्यों जरूरी है पूर्वोत्तर को जोड़ना?
पूर्वोत्तर भारत में लगभग 4.5 करोड़ लोग रहते हैं. यहां का भूगोल, संस्कृति और जनसंख्या भारत को भूटान, नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश जैसे देशों से जोड़ती है.
रेल कनेक्टिविटी से:
रेल कनेक्टिविटी केवल पटरियों की बात नहीं है – यह राष्ट्र की सुरक्षा, लोगों की आवाजाही, सैनिकों की तैनाती और क्षेत्रीय स्थिरता का आधार है.
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