नई दिल्ली/तेल अवीव: बीते दो महीनों में दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया में हुए दो महत्वपूर्ण सैन्य अभियानों ने वैश्विक सैन्य रणनीति की दिशा में एक उल्लेखनीय परिवर्तन को उजागर किया है. भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर और इज़राइल द्वारा ईरान के खिलाफ ऑपरेशन राइजिंग लायन न केवल सैन्य सफलता के उदाहरण बने, बल्कि इन्होंने पारंपरिक युद्ध की परिभाषा को भी चुनौती दी.
तकनीक और रणनीति का संयोजन
इन दोनों अभियानों में एक समान रणनीति देखने को मिली: विरोधी के एयर डिफेंस सिस्टम, संचार नेटवर्क और साइबर क्षमता को पहले निशाना बनाकर उसकी जवाबी क्षमता को प्रारंभ में ही बाधित करना. इसके बाद स्टैंड-ऑफ हथियारों, ड्रोन और मिसाइलों का प्रयोग करते हुए दूर से सटीक हमले किए गए.
खुफिया सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान और ईरान जैसे देशों के एयरस्पेस पर उनका नियंत्रण लगभग समाप्त हो गया था. दोनों ही देशों की वायु सेनाएं प्रतिक्रिया देने में असमर्थ रहीं और हवाई गतिविधि लगभग ठप पड़ गई.
ऑपरेशन सिंदूर: हवाई प्रभुत्व की नई परिभाषा
भारत ने 7 मई 2025 को ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत की. इस दौरान बहावलपुर, मुरीदके, सर्गोधा और रफीकी जैसे प्रमुख पाकिस्तानी वायुसेना ठिकानों को टारगेट किया गया. राफेल फाइटर जेट्स द्वारा SCALP क्रूज मिसाइल और AASM हैमर बम का इस्तेमाल किया गया. इसके साथ ही ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइलें और हारोप कामिकाज़ी ड्रोन भी ऑपरेशन का हिस्सा थे.
भारतीय वायुसेना के SPECTRA इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम ने पाकिस्तान के रडार और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणालियों को निष्क्रिय कर दिया. नतीजा यह रहा कि पाकिस्तान का हवाई क्षेत्र लगभग 38 घंटे तक बंद रहा और हवाई यातायात ठप हो गया.
सैटेलाइट इमेजरी और ओपन-सोर्स खुफिया विश्लेषणों के मुताबिक, हवाई अड्डों की गतिविधियां लगभग शून्य थीं और रनवे गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुए.
ऑपरेशन राइजिंग लायन: उच्च तकनीक की मार
इज़राइल ने 12–13 जून 2025 की रात को ऑपरेशन राइजिंग लायन लॉन्च किया. इस अभियान में F-35I स्टील्थ फाइटर जेट्स ने गुप्त रूप से ईरानी वायु क्षेत्र में प्रवेश किया और देश के प्रमुख वायु रक्षा प्रणालियों को निष्क्रिय कर दिया. इनमें रूस निर्मित S-300 और ईरान द्वारा विकसित Bavar-373 जैसे सिस्टम शामिल थे.
SPICE प्रिसिजन गाइडेड म्यूनिशन के उपयोग से इज़राइल ने 72 घंटों के भीतर 200 से अधिक लक्ष्यों पर हमला किया, जिनमें मिसाइल साइट्स, रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की सुविधाएं और परमाणु कार्यक्रम से संबंधित ढांचे शामिल थे.
ईरानी वायुसेना के फाइटर जेट्स — जैसे F-14s और MiG-29s — प्रतिक्रिया नहीं दे सके. वायु क्षेत्र लगभग 120 घंटों (5 दिन) तक बंद रहा. जवाब में ईरान ने मिसाइलों से हमला किया, लेकिन हवाई प्रतिक्रिया सीमित रही.
तकनीकी प्रभुत्व बनाम पारंपरिक सैन्य क्षमता
इन दोनों अभियानों में यह स्पष्ट हुआ कि आधुनिक युद्ध की सफलता अब केवल फिजिकल एयरस्ट्राइक या टैंक मूवमेंट से तय नहीं होती. इसके बजाय, साइबर क्षमताएं, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर, सैटेलाइट नेटवर्क और सूचना नियंत्रण युद्ध के नए निर्णायक कारक बन चुके हैं.
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और इज़राइल ने मल्टी-डोमेन ऑपरेशंस की अवधारणा को सफलता से लागू किया — जिसमें भूमि, वायु, साइबर और अंतरिक्ष एक साथ समन्वित होते हैं.
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