मॉस्को: भारत ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि उसकी विदेश और ऊर्जा नीतियां किसी बाहरी दबाव के अधीन नहीं हैं. मॉस्को से एक सशक्त संदेश देते हुए भारत ने साफ कर दिया है कि रूस से कच्चे तेल और ऊर्जा संसाधनों की खरीद जारी रहेगी, चाहे अमेरिका या अन्य पश्चिमी देश इस पर कितना भी दबाव क्यों न बनाएं.
यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर रूस की यात्रा पर हैं और इस बीच भारत के राजदूत विनय कुमार ने स्पष्ट कर दिया कि रूस से तेल खरीद रोकने का सवाल ही नहीं उठता. उन्होंने कहा कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हित सबसे ऊपर हैं और वही भारत की विदेश नीति का मूल आधार हैं.
रूस से मजबूत साझेदारी: ऊर्जा संबंधों में भरोसा
भारत और रूस के बीच लंबे समय से रणनीतिक साझेदारी रही है, लेकिन हालिया वर्षों में ऊर्जा के क्षेत्र में यह संबंध और भी मजबूत हुआ है. खासकर तब, जब पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए, तब भी भारत ने अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए रूसी तेल की खरीद में कोई कटौती नहीं की.
रूस के उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव ने भारत के साथ द्विपक्षीय अंतर-सरकारी आयोग की बैठक में स्पष्ट किया कि रूस भारत को लगातार और भरोसेमंद तरीके से ऊर्जा संसाधन प्रदान करता रहेगा. उन्होंने भारत को रूस के "शीर्ष चार व्यापारिक साझेदारों" में से एक बताया और कहा कि दोनों देशों के संबंध स्थिर, पारदर्शी और दीर्घकालिक हैं.
रूस से भारत को क्या-क्या मिलेगा?
उप-प्रधानमंत्री मंटुरोव ने इस द्विपक्षीय बैठक में कई महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं, जिनमें प्रमुख हैं:
उन्होंने यह भी कहा कि भारत भी रूस को निर्यात किए जाने वाले उत्पादों की सूची का लगातार विस्तार कर रहा है, जिससे व्यापार संतुलन बेहतर होगा.
अमेरिका को सधी हुई लेकिन साफ प्रतिक्रिया
हाल के महीनों में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने भारत पर रूस से तेल खरीद को लेकर कई बार आपत्ति जताई है. अमेरिका की ओर से चेतावनियों और टैरिफ बढ़ोतरी जैसे कदमों के बीच भारत ने स्पष्ट किया है कि उसकी विदेश नीति "दबाव नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हितों" पर आधारित है.
भारत के बयान से यह स्पष्ट होता है कि वह मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर की दिशा में काम कर रहा है, जहां वह न किसी एक ध्रुव का अनुयायी है, न किसी की कठपुतली. भारत आज अपनी ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास और रणनीतिक स्वतंत्रता के लिए विविध भागीदारों के साथ संबंधों को मजबूत कर रहा है और रूस उनमें एक अहम स्तंभ बना हुआ है.
68.7 अरब डॉलर पहुंचा भारत-रूस व्यापार
भारत और रूस के बीच का द्विपक्षीय व्यापार तेजी से बढ़ा है. पिछले वित्तीय वर्ष में यह आंकड़ा 68.7 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया जो कि 2022 से पहले की तुलना में छह गुना अधिक है.
रूस से भारत का आयात: लगभग 64 अरब डॉलर, जिसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी ऊर्जा आयात की है (तेल, गैस, कोल).
भारत से रूस का निर्यात: लगभग 5 अरब डॉलर, जिसमें फार्मास्युटिकल्स, कृषि उत्पाद, टेक्सटाइल, और मशीनरी शामिल हैं.
भारत सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि वह अब रूस को निर्यात बढ़ाने पर भी ध्यान देगी, जिससे व्यापार असंतुलन को सुधारा जा सके और यह रिश्ता अधिक टिकाऊ हो.
सहयोग को और गहराई देंगे भारत और रूस
विदेश मंत्री जयशंकर और रूसी नेताओं के बीच हुई उच्चस्तरीय बैठकों में तय किया गया कि दोनों देश केवल ऊर्जा तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि अब वे विज्ञान, टेक्नोलॉजी, अंतरिक्ष, रक्षा उत्पादन, और कृषि अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाएंगे.
जयशंकर ने एक बयान में कहा, "Doing more and doing differently यानी 'ज्यादा करना और अलग तरह से करना' अब भारत-रूस रिश्तों की नई परिभाषा होगी."
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