भारत की सुरक्षा नीति में इन दिनों बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद जिस तरह के सुरक्षा माहौल पैदा हुए, उसने भारत को अपनी रक्षा तैयारियों को और सख्त करने के लिए मजबूर किया है. पाकिस्तान की संभावित प्रतिक्रिया, चीन की बढ़ती गतिविधियाँ और सीमा क्षेत्रों में तनाव इन सबके बीच केंद्र सरकार किसी भी तरह की देरी या लापरवाही से बचना चाहती है. इसी पृष्ठभूमि में हथियार खरीद के नियमों में व्यापक परिवर्तन किए गए हैं, और यह फैसला ऐसे समय हुआ है जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आने वाले हैं.
भारत की नई रक्षा नीति का बड़ा कदम
रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने एक कार्यक्रम में बताया कि सरकार ने आपातकालीन हथियार खरीद से जुड़े नियमों में निर्णायक बदलाव कर दिए हैं.
अब अगर किसी इमर्जेंसी डिफेंस कॉन्ट्रेक्ट के तहत ऑर्डर दिया जाता है और सप्लाई तय समय यानी एक वर्ष के भीतर नहीं मिलती, तो सरकार को उस सौदे को तुरंत रद्द करने का अधिकार होगा.
सिंह ने स्पष्ट किया कि इस नियम का उद्देश्य आपूर्तिकर्ताओं पर दबाव बढ़ाना है, ताकि वे समयसीमा का कड़ाई से पालन करें. इस निर्णय के दायरे में—
सभी शामिल होंगे.
S-400 की सप्लाई में देरी: भारत की बढ़ी चिंता
भारत ने 2018 में रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम के पांच स्क्वाड्रन खरीदने का अनुबंध किया था. यह सिस्टम भारत की हवा से सुरक्षा की रीढ़ माना जाता है. लेकिन रूस के यूक्रेन युद्ध में उलझने के बाद सप्लाई श्रृंखला प्रभावित हुई और अभी तक सिर्फ तीन स्क्वाड्रन भारत को मिल पाए हैं.
यह स्थिति भारत के लिए चिंता का विषय है, खासकर तब जब देश अपनी उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं को मजबूत करना चाहता है. भारत S-400 के और स्क्वाड्रन लेना चाहता है, लेकिन तय समय पर डिलीवरी न हो पाने की समस्या बड़ी बाधा बनकर खड़ी हो गई है.
हालांकि रक्षा सचिव ने साफ किया कि S-400 सौदा आपातकालीन श्रेणी में नहीं आता, इसलिए इस डील के रद्द होने का सवाल ही नहीं उठता. लेकिन डिलिवरी की धीमी गति को लेकर रूस से स्पष्टीकरण माँगा जाएगा.
पुतिन के दौरे में उठेगा S-400 का मुद्दा
रूसी राष्ट्रपति पुतिन अगले सप्ताह भारत दौरे पर आने वाले हैं. यह यात्रा कई महत्वपूर्ण रक्षा और रणनीतिक वार्ताओं का आधार बनेगी.
राजेश कुमार सिंह ने कहा कि भारत S-400 की लंबित डिलिवरी को लेकर रूस से स्पष्ट समयसीमा चाहता है. यह मुद्दा शीर्ष स्तर पर उठाया जाएगा, क्योंकि भारत को अपनी वायु रक्षा क्षमता में किसी प्रकार की कमी स्वीकार नहीं.
दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच अन्य सामरिक सहयोग, तकनीकी हस्तांतरण और संयुक्त परियोजनाओं पर नए समझौते भी संभव हैं.
क्यों पड़ी कठोर नियम लागू करने की जरूरत?
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने सीमा पर बढ़ते तनाव को देखते हुए कई आपात हथियार सौदे किए थे. लेकिन इनमें से कई सौदों में डिलिवरी समय पर नहीं हुई—
इसी अनुभव से सरकार ने यह कठोर नीति अपनाई.
सरकार पहले ही तीनों सेनाओं को अपने बजट का 15% हिस्सा इमर्जेंसी खरीदारी पर खर्च करने की अनुमति दे चुकी है. लेकिन जब डिलिवरी देरी से हो, तो उस मंजूरी का प्रभाव खत्म हो जाता है. नई नीति इसी कमी को दूर करती है.
कई देशों की सप्लाई चेन प्रभावित
सिंह ने स्पष्ट किया कि सप्लाई में देरी के लिए केवल भारतीय कंपनियों पर उंगली उठाना सही नहीं है.
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया—
इसलिए सरकार चाहती है कि भविष्य में कोई भी आपातकालीन कॉन्ट्रेक्ट बिना देरी के पूरा करना कंपनियों की जिम्मेदारी बने.
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