अब बदले की बारी है! ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमलों के बाद अमेरिका से कैसे बदला लेगा तेहरान? जानिए

    जहां बम गिरे हैं, वहां अब सवाल गूंज रहे हैं – क्या ईरान अब अमेरिका पर पलटवार करेगा? और अगर हां, तो कैसे?

    How will Tehran take revenge from America after attacks on Iran three nuclear bases
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    तेहरानः रविवार की सुबह पूरी दुनिया के लिए चौंकाने वाली थी. अमेरिका ने ईरान के सबसे सुरक्षित और संवेदनशील परमाणु ठिकानों पर एक साथ हमला बोल दिया—फोर्डो, नतांज़ और इस्फहान. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया मंच 'ट्रुथ सोशल' पर यह दावा किया कि यह हवाई हमले पूरी तरह सफल रहे और अब उनके सभी विमान ईरान के हवाई क्षेत्र से सुरक्षित बाहर निकल चुके हैं. उन्होंने यह भी लिखा—"FORDOW IS GONE."

    अपमान के धुएं में झुलस रहा ईरान

    ईरान, जो इन परमाणु ठिकानों को दशकों से अपनी संप्रभुता का प्रतीक मानता था, अब अपमान के धुएं में झुलस रहा है. उसका यह अपमान सिर्फ ज़मीन पर नहीं, बल्कि उसकी कूटनीतिक हैसियत, उसकी सामरिक सोच और पूरे खाड़ी क्षेत्र में उसकी रणनीतिक पकड़ पर भी एक करारा तमाचा है.

    अब सवाल यह नहीं है कि अमेरिका ने क्यों हमला किया. असली सवाल यह है कि ईरान अब क्या करेगा. क्या वह चुप बैठकर इस हमले को निगलेगा, या इतिहास की तरह एक बार फिर बदले की आग में जल उठेगा? क्या वह अमेरिका को उसकी ही भाषा में जवाब देगा? क्या वह अमेरिका की धरती तक पहुंचने की हिम्मत जुटा पाएगा?

    ईरान के सामने फिलहाल तीन रास्ते

    • प्रत्यक्ष सैन्य हमला, 
    • प्रॉक्सी नेटवर्क के ज़रिए घेराबंदी, 
    • या साइबर युद्ध.

    सबसे पहले बात करें प्रत्यक्ष सैन्य हमले की, तो ईरान के पास पर्याप्त मिसाइल क्षमता है जो उसे खाड़ी के देशों में स्थित अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की शक्ति देती है. इराक, कुवैत, क़तर और बहरीन में अमेरिका के सैन्य बेस हैं, जहां पहले भी ईरान अपनी ताकत का प्रदर्शन कर चुका है. 2020 में जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद ईरान ने इराक के ‘अइन अल-असद’ बेस पर मिसाइलें बरसाकर यह साबित कर दिया था कि वह न सिर्फ धमकी देता है, बल्कि जवाब देना भी जानता है. उसके पास फतेह-110, जुल्फीकार और सेजील जैसी मिसाइलें हैं, जो 2000 किलोमीटर तक मार कर सकती हैं. ये मिसाइलें खाड़ी के लगभग हर अमेरिकी बेस तक पहुंच सकती हैं. इस बार का बदला सुलेमानी से भी बड़ा हो सकता है, क्योंकि इस बार निशाना बना है ईरान का परमाणु स्वाभिमान.

    दूसरा रास्ता है ईरान का सबसे खतरनाक और चुपचाप काम करने वाला हथियार—उसका प्रॉक्सी नेटवर्क. हिज़बुल्लाह, हौथी विद्रोही, इराक की पॉपुलर मोबिलाइज़ेशन फोर्स, अफगानिस्तान में फैली क़ुद्स फोर्स—ये सभी ईरान के हाथ हैं जो अमेरिका या उसके सहयोगियों को किसी भी समय, किसी भी जगह काट सकते हैं. लेबनान में हिज़बुल्लाह पहले से ही इज़राइल को निशाना बना रहा है. हौथी विद्रोहियों के पास ड्रोन और मिसाइल तकनीक है, जो सऊदी अरब जैसे देशों के तेल प्लांट्स पर पहले भी हमला कर चुकी है. अब अगर इन ग्रुप्स को ईरान से "हरकत का आदेश" मिलता है, तो अमेरिका एक से अधिक मोर्चों पर जलने लगेगा. एक चिंगारी सीरिया में उठेगी, दूसरी इराक में धमाके करेगी, और तीसरी शायद यमन की रेत में अमेरिका के युद्धपोत को डुबो दे.

    ईरान के पास तीसरा और सबसे आधुनिक रास्ता है—साइबर युद्ध. एक ऐसा रास्ता जहां कोई मिसाइल नहीं गिरती, पर देश की अर्थव्यवस्था, पावर ग्रिड, बैंकिंग सिस्टम, एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम और यहां तक कि डेमोक्रेसी का भी तंत्र चरमरा सकता है. ईरान की APT-34 और Charming Kitten जैसी साइबर यूनिट्स पहले भी अमेरिका और इज़राइल को निशाना बना चुकी हैं. 2012 में 'Shamoon' वायरस के ज़रिए ईरान ने सऊदी अरामको के 30,000 कंप्यूटरों को तबाह किया था. अब अगर यही हमले अमेरिका की वॉल स्ट्रीट, ऊर्जा नेटवर्क या डिफेंस कम्युनिकेशन पर हों, तो उनके प्रभाव बम से भी ज़्यादा घातक हो सकते हैं.

    क्या ईरान अमेरिका की घरेलू धरती पर हमला कर सकता है? 

    इन तीनों विकल्पों के अलावा ईरान एक और कार्ड भी खेल सकता है, जो पूरी दुनिया की सांसें रोक सकता है—हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य को बंद करना. दुनिया के 20 प्रतिशत तेल की आपूर्ति इस जलडमरूमध्य से होती है. अगर ईरान इसे बंद करता है तो तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं. महंगाई से जूझ रही अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ये एक ज़बरदस्त झटका होगा. इससे न केवल अमेरिका, बल्कि पूरे पश्चिमी जगत की आर्थिक मशीनरी चरमरा सकती है.

    अब एक बड़ा सवाल यह उठता है—क्या ईरान अमेरिका की घरेलू धरती पर हमला कर सकता है? इसका सीधा जवाब है—फिलहाल नहीं. उसके पास ऐसी ICBM मिसाइलें नहीं हैं जो अमेरिकी मुख्य भूमि तक पहुंच सकें. लेकिन वह अमेरिका के भीतर साइबर या सामाजिक डर पैदा करने के लिए अपने समर्थकों या sleeper cells को सक्रिय कर सकता है. आज के समय में युद्ध सिर्फ मिसाइलों से नहीं, माइक्रोचिप्स और मनोविज्ञान से भी लड़ा जाता है.

    डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी घोषणा में कहा—"अब शांति का समय है." लेकिन जिस आग को उन्होंने छेड़ा है, उसमें शांति की कोई भाषा नहीं होती. ईरान अब चुप नहीं रहेगा. वह इंतज़ार करेगा—सही समय, सही जगह और सबसे ज़्यादा चुभती हुई चोट के लिए. और जब वो चोट आएगी, तो शायद इतिहास एक बार फिर खुद को दोहराएगा—एक और खाड़ी युद्ध, एक और अशांत दशक. शब्दों से युद्ध शुरू नहीं होते, लेकिन कभी-कभी शब्द ही युद्ध की चिंगारी होते हैं. अमेरिका के बयानों ने बारूद को हवा दी है, अब यह देखना बाकी है कि ईरान उस चिंगारी को कैसे भड़काता है.

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