9 नवंबर 2014 को इस देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी ने आयुष का मंत्रालय बनाया. आयुष की विधाएं हमारे इसके पूर्व भी मंच पर लोग बता रहे थे. आयुष में देश की वो सनातन से जुड़ी हुई और अतीत के भारत की जो चिकित्सा की पद्धतियां हैं सबको मोदी जी ने एक जगह कर दिया. चाहे वह आयुर्वेद हो, होम्योपैथ हो, सिद्ध हो, स्विक्पा हो, योग हो, प्राकृतिक चिकित्सा हो, इन सबको एक जगह उन्होंने कर दिया. उत्तर प्रदेश का दुर्भाग्य था कि उत्तर प्रदेश में सरकार उस समय जिस दल की थी, उन लोगों ने आयुष मंत्रालय को उत्तर प्रदेश में मंत्रालय बनाना उचित नहीं समझा. 2017 में जब हमारे यशस्वी मुख्यमंत्री आदरणीय योगी आदित्यनाथ जी की सरकार बनी. तो पहली बार उत्तर प्रदेश में 17 में आयुष का मंत्रालय बना. देश के तमाम राज्यों में आयुष का मंत्रालय बन चुका है. सभी लोग मिलकर काम कर रहे हैं. पहले हमारे अस्पताल जो बनते थे वह अलग-अलग आयुर्वेद अलग होता था और होम्योपैथ अलग होता था. यूनानी अलग होता था. अब क्या है कि अब हम प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से हम इंटीग्रेटेड हॉस्पिटल बना रहे हैं. एक ही अस्पताल के परिसर में होम्योपैथ भी है, यूनानी भी है, आयुर्वेद भी है, योग भी है. तो इस तरह के कर उत्तर प्रदेश के 16 जिला मुख्यालयों पर हमारे अस्पताल 50 बेड के चल रहे हैं. और कुल आठ अस्पताल हमारे और बहुत जल्दी शुरू होने वाले हैं. दिन में चार अस्पताल तो हम पिछले अगले एक महीने दो महीने में शुरू कर लेंगे. हमारा लक्ष्य है कि उत्तर प्रदेश के 70 जिला मुख्यालयों पर इस तरह के इंटीग्रेटेड हॉस्पिटल बन जाए. दूसरा यह है कि जितने भी पुराने अस्पताल 4000 से ज्यादा उत्तर प्रदेश में हॉस्पिटल हैं चार बेड के 25 बेड के 15 बेड के 30 बेड के उन सारे अस्पतालों को हमकोकि स्वास्थ्य मंत्रालय से अलग होने के बाद हमको अपने अस्पतालों को अपनी जमीन पर बनाना है. तो हर वर्ष हम करीब 400 500 अस्पताल हम धीरे-धीरे बना. अब तक 1200 अस्पताल हम आरोग्य सेंटर के रूप में आरोग्य मंदिर के रूप में जिसको नया नाम प्रधानमंत्री जी ने दिया है. आयुष वेलनेस सेंटर को आरोग्य मंदिर का नाम दिया. तो करीब 1200 अस्पताल हम ऐसे अभी तक बदल चुके हैं. जमीनें मिलती जा रही हैं. हम नए-नए अस्पताल बनाते जा रहे हैं. और कुल 19 राजकीय मेडिकल कॉलेज हैं उत्तर प्रदेश में. दो नए मेडिकल कॉलेज हमको और भी बनके जैसे अयोध्या में होम्योपैथ का मेडिकल कॉलेज था तो आयुर्वेद का मेडिकल कॉलेज वहां बन के तैयार है जो मुझको लगता है कि इसी महीने उद्घाटित हो जाएगा.
बनारस में पहले से आयुर्वेद का मेडिकल कॉलेज था तो एक नया मेडिकल कॉलेज होम्योपैथ का तो कुल उत्तर प्रदेश में 19 वर्किंग मेडिकल कॉलेज हैं. 86 से ज्यादा प्राइवेट कॉलेज हैं. मेडिकल कॉलेज हैं. विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश में नहीं था तो महायोगी गुरु गोरक्षनाथ आयुष विश्वविद्यालय गोरखपुर में बन गया है. और वो शुरू हो चुका है. पूरे उत्तर प्रदेश के हमारे सारे 105 से ज्यादा कॉलेजे हैं. राजकीय और प्राइवेट मिलाकर उन सबका एफिलिएशन शुरू हो गया. उनकी पढ़ाई, उनका सत्र सब कुछ रेगुलराइज हो गया और प्राकृतिक चिकित्सा के लिए बनारस में एक बहुत एडवांस सेंटर हम लोग बना रहे हैं. वो भी मुझको लगता है कि साल भर एक साल के अंदर जनता को उत्तर प्रदेश के मिल जाएगा क्योंकि प्राकृतिक चिकित्सा का कोई भी हॉस्पिटल हमारे पास नहीं था. सारे लोग दक्षिण भारत की तरफ जाते थे. चाहे वो केरला हो, कर्नाटका हो. तो अब उत्तर प्रदेश के लोग हमारे मुख्यमंत्री जी का यह सपना है कि हम बड़े अस्पताल बनाएं और प्राकृतिक चिकित्सा भी हमारे अस्पतालों की एक विशेष जान हो. तो प्राकृतिक चिकित्सा का एक सेंटर बना रहे हैं. देश के प्रधानमंत्री जी से माननीय मुख्यमंत्री जी ने मांगा है कि जैसे अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान अैया है. जैसे हम एम्स कहते हैं दिल्ली में है. तो आयुर्वेद का भी एम्स आप कह सकते हो. एम्स के बराबर का आयुर्वेद का अस्पताल है. अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान सरिता विहार दिल्ली में है. आप उसको देखिएगा तो चमत्कृत हो जाएगा. इतना एडवांस सेंटर है वो. उसी की एक शाखा अभी गोवा में भी बनी. जयपुर में भी अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान है. गोवा में भी अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान है. उसी की एक शाखा हम लोग अभी बनारस में जमीन मिल चुकी है. उसको बनाने जा रहे हैं. तो मुझको लगता है कि बड़े अस्पताल बनाना और एक ऐसा अस्पताल कि एक परिसर में जाकर सबको सारी दवाएं मिले. योग भी सिखाया जाए. पंचकर्म भी करा जाए उनका. तो कुल मिला के समाज में जो भरोसा बढ़ा है आयुष के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ा है व्यक्तिगत जिंदगी में लोगों ने उसको जिस तरीके से अपनाया है कोरोना के काल में जैसे लोगों का जुड़ाव था लोगों ने आयुष के काढ़े से लेकर गिलोय से लेकर घरों में अपने जो अपने किचन के मसाले हैं उसको ही आयुर्वेद कहता है कि आपके घर का किचन ही हमारा आधा औषधालय होता है. बिल्कुल तो इंसान की जिंदगी में आयुष कहीं अलग से कुछ ऐसी विदाई जीवन शैली अभी जीवन शैली की चर्चा हो रही थी तो आयुर्वेद के हिसाब से जीना खानपान आपका आहार विहार ऋतुचर्या मौसम के मुताबिक खानपान वर्तमान की जो जिंदगी है इंसान की भागदौड़ की आधुनिकता की शहरों की जिंदगी शहरों में भी विशेषकर मेट्रोपॉलिटन शहरों की वो बड़ी भागदौड़ की जिंदगी है.
महर्षि सुश्रुत ने दुनिया का पहला सर्जरी का अस्पताल खोला
आयुर्वेद किसी भी इलाज की बात नहीं करता आयुर्वेद कहता है कि आप अपनी जीवन शैली को बदल लीजिए जो लाइफस्ट कहा जाता है जीवन शैली में परिवर्तन खानपान में परिवर्तन और फिर उसके मुताबिक ऋतुचर्या के मुताबिक अगर आपने जीवन अपना लिया तो आप वैसे ही आपका जीवन निरोग हो जाएगा तो निरोग व्यक्ति ही जो देश की कल्पना है आत्मनिर्भर भारत की स्वदेशी की बात देश में हो रही है. तो ये स्वदेशी आज विदेशी दवाओं का जो व्यापार है चाहे अंग्रेजी दवाओं का व्यापार है. सारी दुनिया में भारत में हमारे जैसे हमारी नानी दादी हमारी मां दरवाजे पे चाहे वो नीम हो चाहे वो आंगन की तुलसी हो चाहे वो जितने प्रकार के पौधे हैं वही तो आयुर्वेद है. उन्हीं की जड़ी, किसी की पत्ती, किसी की किसी का तना, किसी की जड़े और वह आपके दरवाजे पे है. आपके घर में है, आपके गांव में है, आपके इर्द-गिर्द के वातावरण को ही आप कह सकते हो कि आयुर्वेद है. तो समाज का जो झुकाव बड़ा है, दवाओं का कोई रिएक्शन नहीं होता, कोई साइड इफेक्ट नहीं होता. तो आयुर्वेद का जिक्र तो हमारे पुराणों में भी है. किस तरीके से ऋषि मुनियों के वक्त से हम इसको सुन रहे हैं. पढ़ रहे हैं. आप कह सकते हैं कि वेदों से आयुर्वेद है. राइट. वेद को वेद का शाब्दिक अर्थ होता है विज्ञान. और आयुर्वेद का मतलब आयु का विज्ञान. तो ये उम्र का विज्ञान है. आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ ही होता है कि आयु का विज्ञान, उम्र का विज्ञान. तो अपने आप जो लोग जुड़े हैं जो जो लोग इन चीजों पर गौर कर रहे हैं आजकल वेदों से आयुर्वेद है. वेदों में के बाद हमारे ऋषि मुनियों ने व्यक्तिगत चाहे चरक ऋषि ने लिखा हो चरक संहिता चाहे महर्षि सुश्रुत दुनिया के पहले प्लास्टिक सर्जन थे और वर्तमान में प्लास्टिक सर्जरी भी उनको फादर ऑफ सर्जरी कहती है. तो महर्षि सुश्रुत ने काशी में दुनिया का पहला सर्जरी का अस्पताल खोला. महर्षि सुश्रुत की संहिता है सुश्रुत संहिता. तो चरक संहिता सुश्रुत संहिता हमारे इस इलाज की पद्धति का आधार है. सारी दुनिया धीरे-धीरे जिस तरीके से चुक रही है. दुनिया के मुझे लग रहा है आज जो देश का युवा की अगर हम बात करें क्योंकि भारत की बात करते हैं तो एक युवा देश है और ऐसे में हम देखते हैं सोशल मीडिया पर भी लोग इसको लेकर बहुत जागरूक हो रहे हैं. वो अपनी जीवन शैली को बदल रहे हैं.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक पर GST कितना कम हुआ?
जीएसटी जिन चीजों पर 12% या 18% हुआ करती थी. चार स्लैब हुआ करते थे. पांच, 12, 18 और 28 अब या तो पांच जिन चीजों के जैसे खाने पीने की चीजें थी, दवाएं थी, कृषि के उपकरण हो, कृषि के खाद हो, बीज हो इन सारी चीजों को 5% पे कर दिया. किसी पे 18 था, किसी पे 12 था. और खाने की मैक्सिमम अधिकांश वस्तुएं चाहे वो चावल, गेहूं, राशन हो, चाहे वो आटा हो, चाहे वो पनीर हो, वो दूध की बनी चीजें हो उन सबको जीरो कर दिया. तो इससे खानपान की चीजें दवाएं सस्ती हुई हैं और किसान के लिए उसके बीज खाद सस्ते हुए उसके सारे कृषि के उपकरण चाहे वो ट्रिप्टर इरीगेशन के सिस्टम हो चाहे वो किसी भी प्रकार की जो उसके औजार होते कृषि के उपकरण होते थे वो सस्ते हुए तो व्यक्तिगत जिंदगी में ऐतिहासिक रूप से इस रिफॉर्म के बाद परिवर्तन हुआ है और मुझको लगता है कि गरीब की थाली सस्ती हुई है. घर का घर की सबसे ज्यादा तो खुशी घर के मातृशक्ति में है कि लोगों को लग रहा है कि हमारा घर के रोज के खानपान की रोजमर्रा की जिंदगी की चीजें खान-पान की चीजें तो वो एक ऐतिहासिक रूप से कल परसों से नवरात्रि के प्रथम दिन इस देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी ने उसकी शुरुआत किया. निश्चित ही ये इसको नाम दिया उन्होंने बचत उत्सव. तो यह बचत का उत्सव जिसकी शुरुआत नवरात्रि के प्रथम दिन से हुई है. नवरात्रि में हम मां दुर्गा की पूजा करते हैं. तो यह निश्चित ही देश की मातृशक्ति को और पूरे देशवासियों को स्पेशली गरीबों के लिए मध्यम वर्ग के लिए इतनी बड़ी सुविधा इतना बड़ा लाभ मिला है.
आने वाले दिनों में आपको फर्क उसका दिखेगा. सरकार को जरूर ढाई लाख करोड़ से ज्यादा जो हमारा जीएसटी का कलेक्शन था. जब से जीएसटी लागू हुई है जीएसटी पहली जीएसटी का कलेक्शन जो प्रथम वर्ष में हुआ था 5.44 लाख करोड़ इस वर्ष 2025 में जीएसटी का कलेक्शन था 22.08 लाख करोड़ तो यह चमत्कृत करने वाला कनेक्शन था उसमें भी सरकार ने अपने को कहीं ना कहीं से जनता के हित को सर्वोपरि रखा और ढाई लाख करोड़ से ज्यादा के कमी होगी जीएसटी के कलेक्शन में उसके बावजूद सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला जनहित में लिया है जनता के लिए लिया है. अपने गरीब के लिए लिया है. मध्यम वर्ग के लिए लिया है. तो ऐतिहासिक फैसला और उसके पूरे जीवन पे इसका असर होगा. दवाएं सस्ती होंगी. दवाएं चाहे मॉडर्न मेडिसिन की दवाएं हो, चाहे आयुर्वेद की दवाएं हो सब पे जीएसटी में कमी आने के बाद से बहुत फर्क आएगा.
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आयुर्वेद को कैसे आगे बढ़ाया जाएगा?
अतीत की विधा मैंने आपसे कहा कि सनातन से जुड़ी हुई देश आप अगर किसी पैथी की बात करिएगा तो उस पैथी की उम्र पता कर लीजिए कि उस पैथी की उम्र क्या है इस देश में हजारों साल से जब से भारत का इतिहास हम सब ने पढ़ा है जाना है दों हजार साल पुराना देश का इतिहास है तो वो मानव कैसे जिंदा था देश का किस विधा से जिंदा था तब आपको लगेगा कि ये आयुर्वेद देश के पर्वतीय अंचलों में चाहे कश्मीर से लेकर हिमाचल से लेकर उत्तरांचल से लेकर देश के पर्वतीय राज्यों में वो जो पूर्वोत्तर के राज्य हैं उन सब में भगवान गौतम बुद्ध के द्वारा शुरू की गई एक विधा है जिसका नाम है सुवारिकपा दक्षिण भारत में एक विधा प्रचलित है जो सिद्धि मतलब कहते हैं कि सिद्ध नाम है उसका वो दक्षिण भारत में महर्षि अगस्त जो काशी के जन्मे ऋषि थे उन्होंने जाकर तमिलनाडु में शुरू किया दक्षिण भारत में उस विधा का बहुत प्रचलन सिद्ध का होम्योपैथ सर हेनीमैन जो जर्मन में जर्मनी के रहने वाले और एलोपैथ के डॉक्टर थे. उनकी बेटी बीमार पड़ी तो उन्होंने अपनी बेटी के इलाज के लिए इस पैथी को जन्म दिया. 270 साल हुए इस विधा को जिसका नाम है होम्योपैथी. लेकिन जब आप आयुर्वेद की बात करिएगा तो वेदों से आयेद वेदों की कोई उम्र कोई नहीं बता पाता क्योंकि यह दैवी ग्रंथ माने जाते हैं. तो तब से भारत आयुर्वेद के भरोसे ही जिंदा था. अतीत में अगर आप पढ़ते हैं कि महाभारत काल में भगवान लक्ष्मण को भगवान राम के जो भाई थे लक्ष्मण उनको मूर्छा लगी तो उनके इलाज के लिए सुशैन वैद्य आए. सुशैन वैद्य ने एक संजीवनी बूटी के बारे में बताया.
भगवान हनुमान लेने गए तो तब भी वह वैद्य थे. महाभारत की लड़ाई को आप पढ़िएगा कि सुबह दिन में युद्ध होता था. शाम को युद्ध रोक दिए जाते थे. शाम को फिर वो सारे वैद्य उनके नाम है. अगर आप कभी महाभारत में गीता पढ़िएगा तो आपको लगेगा कि वह वैद्य फिर रात भर अपने लोगों की घायल सैनिकों की मलहम पट्टी करते थे. फिर वो सुबह युद्ध के लिए तैयार थे. दक्षराज की कटी हुई गर्दन बकरे का धड़ लगना चाहे आपने पढ़ा भगवान गणेश जिनकी हम पूजा करते हैं. उनको हाथी के बच्चे का धड़ लगाया गया. वो ट्रांसप्लांट है और उस अतीत के भारत के का ट्रांसप्लांट है जब कोई पैथी दुनिया की जिंदा नहीं थी तो हम बड़े गर्व से कहते हैं कि सनातन की विदा है और देश उसी के भरोसे हजारों साल तक था बीच का एक ऐसा कालचक्र है जिसमें कि एक पैथी के चलते और वो मॉडर्न मेडिसिन से जोड़ दिया गया तो फिर जो बीच का दौर था लेकिन हम बधाई देना चाहते हैं देश के प्रधानमंत्री जी को कि उन्होंने आयुष को अलग एक नई जिंदगी दिया नई विधा के रूप में उसको फिर से नया मंत्रालय बना दिया. अब आयुष के सपनों को जो पंख लगे हैं, देश में जिस तरीके से लोगों का भरोसा बढ़ा है और एक बात आपको कहूंगा तो अच्छा लगेगा कि WHO ने सारे दुनिया के संयुक्त राष्ट्र से जुड़े 180 से ज्यादा देशों की परंपरागत दवाओं के लिए भारत को अपना हब माना है. भारत में जामनगर में इंटरनेशनल इंस्टट्यूट ऑफ ट्रेडिशनल मेडिसिन. तो कल्पना करिए कि भारत ही वह देश था जो इन देशों की सारे देशों की परंपरागत दवाओं पर शोध के लिए WHO ने भारत में इंस्टट्यूट बनाया है. वो काम कर रहा हम भी उसमें शामिल हैं. तो देश में वर्तमान में शोध की बात होती है कि इन ग्रंथों में आखिर में इनका आधार क्या है? क्या शोध हुआ? कि दुनिया के किस मानक प्रदान करने वाली किस कंपनी ने इन दवाओं को शोध किया? तो ये मानव शरीर ही उसकी प्रयोगशाला थी. दुनिया में ऋषि संतों ने महात्माओं ने इसको प्रूफ किया और यह दैवी विधायक भगवान धनवंतरी जो ईश्वरी वैद्य कहे जाते हैं समुद्र मंथन में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए वही आयुर्वेद के देवता हैं. उन्हीं के मानवीय अवतार के रूप में काशी के राजा दीवोदास को हम लोग भगवान धनवंतरी का मानवीय अवतार मानते हैं. उन्हीं के योग्यतम शिष्य थे महर्षि सुश्रुत जिनको कि दुनिया फादर ऑफ प्लास्टिक सर्जरी कहती है. हम उनकी ग्रंथों के आधार पर इलाज करते हैं. जहां तक शोध का विषय है, हम लगातार इंस्टट्यूट, शोध परक संस्थाएं, विश्वविद्यालय और शोध को बढ़ावा दे रहे हैं.
इन चीजों से आपको लगेगा कि दुनिया को शोध के बगैर किसी पद्धति को संसार मान्यता नहीं देता. तो हम भी आयुर्वेद में देश के प्रधानमंत्री जी हमारे मुख्यमंत्री जी के लगातार प्रेरणा से शोध परक दवाएं और बहुत यहां पिछले बैठकों में आपने देखा कि आयुष से जुड़े हुए लोग बात कर रहे थे तो अब सब हमारी जो दवाएं हैं उनके प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा इसलिए कि वो मान्यता प्राप्त संस्थानों से अप्रूवल उनका होता है. तो आने वाला कल दुनिया के लिए संसार के लिए मोदी जी ने एक संकल्प लिया योग के लिए. योग हमारी उसी योगियों की विधाएं जो सम देश के ऋषि मुनियों के द्वारा कहते थे योग योगियों की विधा है. आज वो जन सुलभ है. सारे संसार भारत ने अपनाया और सारे विश्व ने जिस तरीके से योग को 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाया. कल का दिन जो 23 सितंबर था. विश्व योग दिवस 21 जून को होता है. वह दुनिया का सबसे 365 दिनों का सबसे लंबा दिन होता है. आपको बताऊं तो अच्छा लगेगा. कल जो 23 सितंबर थी वो वर्ष का एक ऐसा दिन होता है जब दिन और रात दोनों बराबर होते हैं. यही आयुर्वेद है कि जीवन का जो संतुलन है मन का मस्तिष्क का शरीर का उसी संतुलन को बनाए रखने के लिए 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस के रूप में हम सभी मनाते हैं तो हमको लगता है कि ये वो विधा है जो हमारी जीवन शैली में परिवर्तन से एक दिन हमको एहसास होगा.
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