नई दिल्ली: भारतीय सेना ने स्वदेशी तकनीक से निर्मित FPV (First Person View) ड्रोन को आधिकारिक रूप से अपनी क्षमताओं में शामिल कर लिया है. यह कदम भारत की सैन्य नवाचार नीति और एसिमेट्रिक युद्धक्षेत्र की बदलती आवश्यकताओं को दर्शाता है, जहां छोटे, किफायती और घातक प्लेटफॉर्म अब निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं.
यह ड्रोन सेना की 9 कोर की फ्लूर-डी-लिस ब्रिगेड और टर्मिनल बैलिस्टिक रिसर्च लेबोरेटरी (TBRL), चंडीगढ़ द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है. तकनीकी रूप से उन्नत और रणनीतिक दृष्टि से प्रभावशाली इस परियोजना को 2024 में प्रारंभ किया गया था और 2025 की पहली तिमाही तक इसके 100 से अधिक यूनिट्स का निर्माण हो चुका है.
तकनीकी क्षमताएं और संरचना
विस्फोटक भार क्षमता: FPV ड्रोन में लगभग 400 ग्राम विस्फोटक ले जाने की क्षमता है. इसका उपयोग टारगेटेड एंटी-टैंक या स्ट्रक्चरल हमलों के लिए किया जा सकता है.
कमांड एंड कंट्रोल: यह ड्रोन पूर्णतः पोर्टेबल है और इसके संचालन के लिए किसी केंद्रीकृत नियंत्रण कक्ष की आवश्यकता नहीं होती. इसे अग्रिम मोर्चे से 3–5 किमी की दूरी से संचालित किया जा सकता है.
दृष्टिकोण और नियंत्रण: लाइव फीडबैक सिस्टम और FPV गॉगल्स के माध्यम से ड्रोन ऑपरेटर को उच्चतम स्तर की सिचुएशनल अवेयरनेस मिलती है, जिससे निर्णय लेने की गति और सटीकता दोनों में वृद्धि होती है.
ड्युअल सेफ्टी मैकेनिज्म: ड्रोन को केवल प्रशिक्षित पायलट ही सक्रिय कर सकता है, और इसके डिजाइन में ट्रांसपोर्टेशन और हैंडलिंग के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करने के विशेष प्रावधान हैं.
एसिमेट्रिक वॉरफेयर में क्रांतिकारी बदलाव
FPV ड्रोन उस युद्ध प्रणाली का प्रतिनिधित्व करता है जिसे आज एसिमेट्रिक वॉरफेयर कहा जाता है, जहां कम संसाधनों से अधिक प्रभाव डाला जा सकता है. उदाहरणस्वरूप, 500 डॉलर की लागत वाला एक ड्रोन अगर करोड़ों की कीमत वाले एयरक्राफ्ट को निष्क्रिय कर सकता है, तो यह लागत-प्रभावशीलता की दृष्टि से अत्यधिक मूल्यवान सिद्ध होता है.
यह रणनीति न केवल युद्ध के स्वरूप को बदल रही है, बल्कि डिटेरेंस सिद्धांत को भी पुनर्परिभाषित कर रही है. यदि उच्च तकनीक वाले एयर डिफेंस सिस्टम को हर बार कम लागत वाले ड्रोन को रोकने के लिए तैनात किया जाए, तो वह आर्थिक रूप से अव्यवहारिक साबित होता है.
ऑपरेशन सिंदूर और ड्रोन की भूमिका
हाल में हुए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने चीन और पाकिस्तान के ड्रोन और एंटी-ड्रोन तकनीक का सफलतापूर्वक मुकाबला किया. यह सफलता न केवल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर और एयर डिफेंस क्षमता को दर्शाती है, बल्कि इस तथ्य को भी रेखांकित करती है कि भारत अब केवल युद्ध का उपभोक्ता नहीं, निर्माता भी बन चुका है.
स्वदेशीकरण और सामरिक स्वावलंबन
इस परियोजना के बूटकैम्प, ट्रेनिंग और असेम्बली का कार्य राइजिंग स्टार ड्रोन बैटल स्कूल द्वारा किया गया, जो भविष्य के लिए भारत के ड्रोन स्पेशलिस्ट कमांडर्स तैयार कर रहा है.
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