मध्य पूर्व में तनाव एक नई ऊंचाई पर पहुंच चुका है. इज़रायल और ईरान के बीच जारी संघर्ष अब उस मोड़ पर आ गया है, जिसकी आशंका लंबे समय से जताई जा रही थी. अब इस टकराव में अमेरिका भी खुलकर मैदान में उतर आया है. बीती रात अमेरिका ने ईरान के प्रमुख परमाणु ठिकानों—फोर्दो, इस्फहान और नतांज़—पर सीधा हमला किया. दावा किया जा रहा है कि इस हमले में ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को गहरी क्षति पहुंची है.
हमला रात करीब ढाई बजे अंजाम दिया गया. अमेरिकी सेना ने अपने सबसे घातक हथियारों में से एक, B-2 स्पिरिट बॉम्बर विमान का उपयोग किया, जो GBU-57A/B बंकर बस्टर बम लेकर उड़ा था. इस बम की क्षमता इतनी अधिक है कि यह जमीन के 200 फीट नीचे तक तबाही मचा सकता है. अमेरिकी सूत्रों के अनुसार, यह हमला फोर्दो जैसी अति-सुरक्षित अंडरग्राउंड साइट को निष्क्रिय करने के इरादे से किया गया.
क्या रेडिएशन का खतरा टल गया है?
हमले के बाद दुनिया भर में इस बात की चिंता बढ़ गई कि कहीं इससे परमाणु विकिरण का खतरा तो नहीं पैदा हो गया. लेकिन राहत की बात यह है कि ईरान के नेशनल न्यूक्लियर सेफ्टी सिस्टम सेंटर और सऊदी अरब—दोनों ने इस बात की पुष्टि की है कि कहीं भी रेडियोधर्मी विकिरण (Radiation) का कोई संकेत नहीं मिला है. ईरानी मीडिया का दावा है कि फोर्दो के पास रहने वाले लोगों ने किसी बड़े धमाके की आवाज तक नहीं सुनी और इलाके की स्थिति सामान्य है.
फोर्दो: ईरान का 'माउंट डूम'
फोर्दो को ईरान के सबसे रहस्यमयी और सुरक्षित परमाणु अड्डों में गिना जाता है. यह राजधानी तेहरान से लगभग 100 किलोमीटर दूर, पहाड़ियों के बीच, जमीन से करीब 80 से 100 मीटर नीचे स्थित है—यानी किसी 30-मंजिला इमारत जितनी गहराई में. इसे ‘माउंट डूम’ भी कहा जाता है क्योंकि यह ईरान के परमाणु कार्यक्रम का दिल है. ईरानी अधिकारियों ने भी स्वीकार किया है कि फोर्दो पर हमले की आशंका पहले से थी. यही कारण है कि साइट को पहले ही खाली कर लिया गया था. ईरानी संसद अध्यक्ष के सलाहकार मेहदी मोहम्मदी ने यह जानकारी साझा की है.
क्या आगे और बड़ा धमाका होगा?
फिलहाल तो इलाके में शांति की स्थिति बनी हुई है, लेकिन यह हमला इस बात का संकेत है कि अब यह टकराव महज दो देशों तक सीमित नहीं रहा. अमेरिका की सीधी दखलअंदाजी इस क्षेत्र को एक और बड़े युद्ध की ओर धकेल सकती है. अब दुनिया की निगाहें इस पर टिकी हैं कि ईरान इस हमले का जवाब किस रूप में देता है और क्या यह घटनाक्रम वाकई न्यूक्लियर संकट को जन्म देगा.
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