कुदरत का कहर! आसमानी बिजली गिरने से हर साल दुनिया में होता है कितना नुकसान? जानकर रह जाएंगे दंग

    आकाशीय बिजली न केवल प्रकृति का एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए एक गंभीर संकट भी बन चुकी है. एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हर साल आकाशीय बिजली के कारण दुनियाभर में 32 करोड़ पेड़ नष्ट हो जाते हैं.

    Every year around 320 million trees are destroyed in the world due to lightning
    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    नई दिल्ली: आकाशीय बिजली न केवल प्रकृति का एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए एक गंभीर संकट भी बन चुकी है. एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हर साल आकाशीय बिजली के कारण दुनियाभर में 32 करोड़ पेड़ नष्ट हो जाते हैं. इन पेड़ों के नष्ट होने से दुनिया के कुल जैविक द्रव्यमान (बायोमास) में 2 से 3 प्रतिशत की कमी आती है, जो जलवायु परिवर्तन की दिशा में एक खतरनाक संकेत है.

    आखिरकार, कितना कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होता है?

    जर्मनी की ‘टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख’ के शोधकर्ताओं ने यह खुलासा किया कि इन नष्ट हुए पेड़ों से हर साल लगभग 0.77 से 1.09 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है. यह उत्सर्जन जंगलों में आग लगने से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के करीब है, जो हर साल 1.26 अरब टन के आसपास होता है. इस प्रकार, यह आकाशीय बिजली और उसके द्वारा नष्ट किए गए पेड़ों के प्रभाव को जलवायु परिवर्तन के लिए एक गंभीर चुनौती बना देता है.

    आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं में बढ़ोतरी

    वैज्ञानिकों के मुताबिक, जैसे-जैसे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं और भी आम हो रही हैं. एंड्रियास क्राउज, जो इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता हैं, ने कहा कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आकाशीय बिजली से पेड़ों का नष्ट होना अधिक आम है. लेकिन भविष्य में मध्य और उच्च अक्षांश क्षेत्रों में भी इन घटनाओं की संख्या बढ़ सकती है, जिससे शीतोष्ण और बोरियल वनों पर भी प्रभाव पड़ सकता है.

    वैज्ञानिकों का नजरिया: पेड़ों के नुकसान का आकलन

    इस अध्ययन को करने वाली टीम ने कहा कि हालांकि यह अनुमान लगाना कठिन है कि आकाशीय बिजली से कितने पेड़ प्रत्यक्ष रूप से नष्ट होते हैं, लेकिन उन्होंने एक नई विधि विकसित की है जिससे इन घटनाओं का अनुमान लगाया जा सकता है. शोधकर्ता अब यह भी जान सकते हैं कि कौन से क्षेत्र इस समस्या से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं और इस स्थिति का वैश्विक कार्बन भंडारण पर क्या असर पड़ सकता है.

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